मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ओबीसी जातियों के सब क्लासिफिकेशन को लेकर रोहिणी आयोग बनाया था। इस आयोग के एक सदस्य जीके बजाज ने जाति जनगणना का समर्थन किया है।
लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव से पहले और चुनाव नतीजे के बाद भी जाति जनगणना की मांग को जोर-शोर से उठाया है। ऐसे में सरकार के द्वारा गठित एक आयोग के सदस्य का इसका समर्थन करना निश्चित रूप से बेहद अहम है।
जाति जनगणना को लेकर मोदी सरकार घिरी हुई है और एनडीए के कई सहयोगी दल भी जाति जनगणना करने की मांग कर चुके हैं।
बजाज ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा हाल ही में एससी-एसटी समुदाय के आरक्षण के सब-क्लासिफिकेशन के लिए राज्यों को ताकत देने के फैसले का भी समर्थन किया है। जबकि कुछ दिन पहले बीजेपी और इसके सहयोगी दलों के दलित नेताओं ने खुलकर सब क्लासिफिकेशन के खिलाफ आवाज उठाई थी।
भागवत ने लांच की थी बजाज की किताब
बजाज इंडियन काउंसिल फॉर सोशल साइंस रिसर्च के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में बजाज ने एक किताब भी लिखी थी जिसका टाइटल था- ‘Making of a Hindu Patriot: Background of Gandhiji’s Hind Swaraj’। इस किताब को आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने लांच किया था। बजाज को आरएसएस का करीबी माना जाता है।
द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बजाज ने कहा कि वह इस मुद्दे पर अपनी बात रख सकते हैं लेकिन उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है कि वह इस मामले में सरकार को कुछ लिखें।
बजाज ने कहा कि जनगणना करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि एक बार जब आपको जाति का पता चल जाता है तो बाकी आंकड़े भी इसके साथ जुड़ जाते हैं। आपको यह पता लग जाता है कि कितने लोगों ने MA किया है और इनमें से कितने लोगों ने BA किया है। आपको लोगों के घरों के बारे में- गांव में हैं या शहर में, उनके पास पक्के घर हैं या नहीं, इस बारे में भी पता चल जाता है। बजाज ने कहा कि जाति की गणना केवल एक गिनती है जबकि जनगणना से आपको सामाजिक-आर्थिक डाटा मिल जाता है।
यूपीए सरकार ने कराई थी सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) करवाई थी। इसके बारे में बजाज ने कहा कि तब जो लोग इस काम को कर रहे थे, उन्हें जातियों की पूरी लिस्ट नहीं दी गई थी और इस वजह से तब पूरा डाटा भी नहीं मिल सका था।
बजाज ने कहा कि जाति जनगणना के काम में लगे लोगों को पूरी लिस्ट दी जानी चाहिए। सभी लिस्ट का संकलन करने में कई महीने लग जाएंगे जैसा कि कर्नाटक के मामले में हुआ था। कर्नाटक ने भी यूपीए सरकार की तर्ज पर ही जनगणना करवाई थी।
बजाज ने कहा कि जिन जातियों को आरक्षण नहीं मिल रहा है, उनका डाटा भी इकट्ठा करने की जरूरत है।
यूपीए सरकार के द्वारा जो सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना कराई गई थी, उससे पहले ऐसा 1931 में ब्रिटिश सरकार के शासन में हुआ था। लेकिन यूपीए सरकार ने इसके आंकड़ों को कभी भी जारी नहीं किया। हालांकि इससे मिले आंकड़ों का इस्तेमाल सरकार के द्वारा समाज के पिछड़े समूहों जिसमें एससी-एसटी भी शामिल हैं, लाभार्थी के रूप में सरकारी योजनाओं का फायदा देने के लिए उनकी पहचान करने के लिए किया जाता है।
बजाज ने सरकारी नौकरियों और सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थानों में समुदाय वार प्रतिनिधित्व की जरूरत पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि जब भी किसी व्यक्ति की राज्य सरकार के द्वारा चलाए जाने वाले शिक्षण संस्थानों में नियुक्ति होती है तो इससे जुड़े हर समुदाय का डाटा रखा जाना चाहिए।
बजाज ने कहा कि ऐसा करने के बाद हमारे पास एक या दो साल में काफी आंकड़ा इकट्ठा हो जाएगा और इससे इस बात का पता चलेगा कि किस जाति को कितना आरक्षण मिला है।
बजाज ने मौजूदा व्यवस्था के बारे में बात करते हुए कहा कि सरकार केवल सरकारी नौकरियों और सार्वजनिक संस्थानों में एससी और एसटी से जुड़े आंकड़ों को दर्ज करती है। उन्होंने कहा कि हमें व्यक्तिगत जाति या जनजाति के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार करने की जरूरत है। इसके बाद हमें कुछ डिजिटल बुनियादी ढांचे की भी जरूरत पड़ेगी।
विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार कहते रहे हैं कि देश में जाति जनगणना कराई जानी जरूरी है क्योंकि सार्वजनिक संस्थानों में पिछड़े समूहों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है।
कांग्रेस के नारे ‘जितनी आबादी उतना हक’ का समर्थन नहीं
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा एससी-एसटी समुदाय के आरक्षण के सब-क्लासिफिकेशन को लेकर बजाज ने कहा कि केंद्रीय सेवाओं में घोर असमानता है और सब-क्लासिफिकेशन के जरिए ही इस बात को सुनिश्चित किया जा सकेगा कि आरक्षण से मिलने वाले फायदे का बड़ा हिस्सा दलित समुदाय के किसी एक सीमित वर्ग को ही ना मिले। उन्होंने कहा कि ओबीसी के बीच यह असमानता इतनी ज्यादा नहीं है जितनी दलित समुदाय में है।
कांग्रेस के द्वारा लोकसभा चुनाव के दौरान ‘जितनी आबादी उतना हक’ का नारा दिया गया था। इस बारे में बजाज ने कहा कि वह इस नारे के पक्ष में नहीं हैं।
