15 अगस्त, 1947 को मिली आजादी का जश्न देश हर साल मनाता है। आजादी की सालगिरह पर तरह-तरह के आयोजन होते हैं। केंद्र और राज्यों की सरकारों द्वारा भी कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। बाजार इसका इस्तेमाल सेल, ऑफर और डिस्काउंट का लालच देकर अपनी कमाई बढ़ाने के लिए करता है। हर हाथ तिरंगा नजर आने लगता है।

जाहिर है भारत एक उत्सवधर्मी देश है, यहां के लोग खुशी के हर एक क्षण को उल्लास से मनाने में यकीन रखते हैं। लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आजादी का उत्सव मानने वालों को चेतावनी देते हैं। उन्हें याद दिलाते हैं कि आजादी मिलने भर से आपका काम खत्म नहीं हो जाता।

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जब नेहरू ने लगाई डांट!

आजादी के 13 साल बाद 15 अगस्त, 1960 को आजादी का जश्न मनाने इकट्ठा हुए लोगों को लगभग डांट लगाते हुए नेहरू कहते हैं, ”आज हम यहां जमा हुए हैं, कोई तमाशे के तौर पर नहीं, तमाशा देखने या दिखाने के लिए नहीं। बल्कि पुरानी बातों को याद करने के लिए और आगे देखने के लिए। हमें आजादी मिली, परिश्रम से, कुर्बानी से, मेहनत से, लेकिन अगर आप समझें कि आजादी मिलने के बाद कौम का काम खत्म हो जाता है, तो यह एक गलत विचार है।”

‘हमेशा जारी रहती है आजादी की लड़ाई’

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक पीयूष बबेले की किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’ में आजादी के जश्न को लेकर नेहरू की चेतावनी मिलती है। वह कहते हैं, ”आजादी की लड़ाई हमेशा जारी रहती है, कभी उसका अंत नहीं होता, हमेशा उसके लिए परिश्रम करना पड़ता है, हमेशा उसके लिए कुर्बानी करनी पड़ती है, तब वह कायम रहती है।

जब कोई मुल्क या कौम ढीली पड़ जाती है, कमजोर हो जाती है, असली बातें भूलकर, छोटे झगड़ों में पड़ जाती है, उसी वक्त उसकी आजादी फिसलने लगती है। इसलिए जैसा मैंने आपसे कहा, आज का दिन कोई तमाशे का दिन नहीं है। ये एक बार फिर से इकरार लेने का दिन है, फिर से अपने दिल में देखने का दिन है कि हमने अपना कर्तव्य पूरा किया कि नहीं।”

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