अर्जुन सेनगुप्ता

इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के हालिया घटनाक्रमों की मीडिया कवरेज में फिलिस्तीनी पहचान का सरलीकरण देखने को मिला है। भारत और कई अन्य देशों की मीडिया ने भी फिलिस्तीनी होने का मतलब मुस्लिम होना बताया है, जो यहूदी इजरायलियों के खिलाफ खड़े हैं।

इस तरह की मीडिया कवरेज से न सिर्फ फिलिस्तीनियों के समृद्ध और पेचीदा इतिहास को नुकसान हो रहा है, बल्कि दशकों पुराना संघर्ष पूरी तरह धार्मिक लड़ाई नजर आने लगा है। फिलिस्तीन की तस्वीर किन-किन लोगों से मिलकर बनती है, ये जानने के लिए समझना जरूरी है कि फिलिस्तीनी कौन हैं?

‘फिलिस्तीन’ शब्द कहां से आया और इसका मतलब क्या होता है?

फिलिस्तीन शब्द का इस्तेमाल पहली बार प्राचीन यूनानी इतिहासकार और जियोग्राफर हेरोडोटस ने किया था। उन्होंने पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में फेनिसिया (मुख्य रूप से आधुनिक लेबनान) और मिस्र के बीच की तटीय भूमि का वर्णन करने के लिए फिलिस्तीन शब्द का प्रयोग किया था।

फिलिस्तीन शब्द ‘फिलिस्तिया’ से बना है। ग्रीक लेखक दक्षिण-पश्चिमी लेवंत के क्षेत्र को ‘फिलिस्तिया’ ही कहते थे। वर्तमान इजरायल या फिलिस्तीन के आसपास के क्षेत्रों, मुख्य रूप से  गाजा, अश्कलोन, अशदोद, एक्रोन और गाथ इसी नाम से जाना जाता था। लेवंत पूर्वी भूमध्य सागर के आसपास के क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक-भौगोलिक शब्द है। लेवंत उन जमीनों को कहा जाता था, जो अफ्रीका और यूरेशिया के बीच पुल का काम करें।

शुरू से ही फिलिस्तीन शब्द का उपयोग एक स्थान के नाम के रूप में किया जाता था। इस नाम कोई जातीय या धर्म आधार नहीं है। इस क्षेत्र में रहने वाले सभी लोग फिलिस्तीनी कहे गए, चाहे वे किसी भी धर्म को मानते हो। रोमन रिकॉर्ड से भी यह साबित होता है। रोमन फिलिस्तीन शब्द का उपयोग करते समय ईसाइयों और यहूदियों के बीच अंतर नहीं करते हैं।

7वीं शताब्दी ईस्वी में लेवंत पर अरबों की विजय के बाद फिलिस्तीन शब्द का इस्तेमाल आधिकारिक तौर पर काफी हद तक बंद हो गया। ऐसा यह 20वीं सदी तक जारी रहा। हालांकि, यह स्थानीय उपयोग में आम रहा और इसे अरबी में “फिलास्टीन (Filasteen)” कहा जाने लगा। अंग्रेजी में पलेस्टाइन लिखते और बोलते हैं। लेकिन हिंदी में भी अरबी से मिलता जुलता शब्द ‘फिलिस्तीन’ ही इस्तेमाल होता है।

जैसे-जैसे इस क्षेत्र का इस्लामीकरण हुआ। अरबों के सांस्कृतिक प्रभाव का प्रसार देखा गया। अपनी किताब ‘Palestinian Identity: The Construction of Modern National Consciousness’ (1997), में इतिहासकार रशीद खालिदी ने लिखा, “फिलिस्तीनियों ने अपनी फिलिस्तीनी पहचान को सभी के साथ जोड़ लिया, चाहे वह मुस्लिम हो या ईसाई , तुर्क या अरब।

प्रथम विश्व युद्ध में ऑटोमन एंपायर की हो गई। 1922 में एंपायर का विघटन हो गया। इसके बाद ऑटोमन सुल्तान के क्षेत्र (फिलिस्तीन के साथ-साथ आधुनिक तुर्की, सीरिया और अरब प्रायद्वीप और उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्से) को ब्रिटिश और फ्रांसीसियों ने आपस में बांट लिया। फिलिस्तीन, अंग्रेजों के हिस्से गया और उन्होंने ही उसकी भौगोलिक सीमा परिभाषित की। बाद में अंग्रेजों द्वारा तय की गई सीमा के भीतर की जमीन को ही फिलिस्तीन मान लिया गया।  

हालांकि फिलिस्तीनी कल्पना में, फिलिस्तीन वह भूमि है जो समुद्र (पूर्वी भूमध्य सागर) और नदी (ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण जॉर्डन नदी, जो गोलान हाइट्स से उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है) के बीच स्थित है।

तो आज फिलिस्तीनी कौन हैं?

आज, फिलिस्तीनी शब्द का इस्तेमाल फिलिस्तीन देश (वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी येरुशलम) में रहने वाले लोगों के लिए किया जाता है। कुछ लोग जो वर्तमान में इजरायली क्षेत्रों में रहते हैं, वे भी अपनी पहचान फिलिस्तीनी बता सकते हैं।
 
1968 का फिलिस्तीनी नेशनल चार्टर, वह वैचारिक दस्तावेज़ जो आधुनिक फिलिस्तीनी राष्ट्रवाद का आधार है। चार्टर फिलिस्तीनियों की अरब पहचान पर ज़ोर देता है। चार्टर के अनुच्छेद 5 में कहा गया है: “फिलिस्तीनी वे अरब नागरिक हैं, जो 1947 तक फिलिस्तीन में रहते थे। उस तारीख के बाद फिलिस्तीनी पिता से जन्मा कोई भी व्यक्ति – चाहे फिलिस्तीन के अंदर हो या उसके बाहर, वह भी फिलिस्तीनी है।”

हालांकि उस क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश लोग अरब मुस्लिम हैं, चार्टर फिलिस्तीन को धार्मिक संदर्भ में परिभाषित नहीं करता है। अनुच्छेद 6 कहता है: “जो यहूदी आक्रमण की शुरुआत तक आम तौर पर फिलिस्तीन में रहते थे, उन्हें फ़िलिस्तीनी माना जाएगा। हालांकि, 1948 के बाद बहुत कम मूल यहूदियों ने नई इजरायली पहचान के बजाय अपनी फिलिस्तीनी पहचान को बनाए रखने का विकल्प चुना।”

आज अधिकांश फिलिस्तीनी सुन्नी मुसलमान हैं। सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, वेस्ट बैंक में 80-85 प्रतिशत आबादी और गाजा पट्टी में 99 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है।

फिलिस्तीनी क्षेत्रों में यहूदी सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक हैं। ये ज्यादातर पश्चिमी तट के कब्जे वाले क्षेत्रों में रहते हैं। उनकी आबादी कुल जनसंख्या का 12-14 प्रतिशत है। सीआईए के अनुसार, फिलिस्तीनी ईसाई जनसंख्या के 2.5 प्रतिशत हैं, हालांकि कुछ अन्य अनुमानों के अनुसार उनकी संख्या जनसंख्या का 6 प्रतिशत तक है। वेस्ट बैंक और गाजा दोनों ही संपन्न ईसाई समुदायों का घर हैं जो इस क्षेत्र में कई सदियों से रहते आ रहे हैं।