सुप्रीम कोर्ट ने ईडी डायरेक्टर संजय मिश्रा के कार्यकाल को बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार से तीखे सवाल पूछे हैं। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या पूरी एजेंसी में कोई और योग्य व्यक्ति नहीं था? जो बार-बार संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने की नौबत आई। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच, ईडी डायरेक्टर संजय मिश्रा को मिले ताजा एक्सटेंशन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार के फैसले का बचाव करते हुए दलील दी कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ का पीयर रिव्यू इसी साल ड्यू है। ऐसे में लीडरशिप में स्थायित्व जरूरी था। एफएटीएफ एक ग्लोबल मनी लॉन्ड्रिंग और टेरेरिस्ट फंडिंग वॉच डॉग एजेंसी है, जो कई पैरामीटर्स पर तमाम देशों का आकलन करती है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एफएटीएफ के नियमों के मुताबिक इस बार भारत का भी आकलन होना है, जो 10 साल बाद हो रहा है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील भी दी कि एफएटीएफ के आकलन के आधार पर ही तमाम मुल्कों को वर्ल्ड बैंक या एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसी संस्थाओं से फंड वगैरह मिलता है और FATF की रेटिंग का स्टॉक और शेयर मार्केट पर भी असर होता है। उन्होंने कहा कि एफएटीएफ का पीयर रिव्यू 2019-20 में होना था लेकिन कोरोना वायरस की वजह से नहीं पाया और 2023 तक खिंच गया। संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने के पीछे यह एक प्रमुख वजह थी।
SG तुषार मेहता ने कहा कि इसके पीछे मकसद यह था कि किसी नए व्यक्ति को पियर रिव्यू के दौरान बातचीत की प्रक्रिया में शामिल ना होना पड़े क्योंकि उन्हें बैकग्राउंड नहीं पता है। जिस शख्स को पूरा बैकग्राउंड पता है और पहले बातचीत की है, वह ज्यादा सूटेबल होता।
2023 के बाद क्या करेंगे?
हालांकि सॉलिसिटर तुषार मेहता की इस बात से जस्टिस गवई संतुष्ट नहीं दिखे। उन्होंने सवाल किया कि क्या पूरी एजेंसी में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था जो इस जिम्मेदारी को संभाल सके? जस्टिस गवई ने कहा- यदि हम आपका तर्क मान भी लें तो 2023 के बाद क्या होगा, जब मिश्रा रिटायर हो जाएंगे? तब एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट का क्या होगा? कैसे कामकाज होगा? मान लीजिए कि उन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल तय कर लिया, जो आउटर लिमिट भी है, उसके बाद क्या होगा? क्या 5 साल से 6 साल करेंगे और फिर संशोधन करेंगे?
इस सवाल के जवाब में एसजी मेहता ने कहा कि एजेंसी में और तमाम योग्य अफसर थे लेकिन चूंकि इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन से बातचीत की बात थी तो ऐसे में कंटिन्यूटी जरूरी थी।
क्या है पूरा विवाद?
1984 बैच के आईआरएस अफसर संजय मिश्रा को केंद्र सरकार ने 19 नवंबर 2018 को पहली बार प्रत्यर्पण निदेशालय यानी ईडी का डायरेक्टर नियुक्त किया था। तब उनका कार्यकाल 2 साल के लिए था। 13 नवंबर 2020 को केंद्र सरकार ने उनके नियुक्ति पत्र को संशोधित करते हुए कार्यकाल को 2 साल से बढ़ाकर 3 साल कर दिया। इसके बाद एक अध्यादेश के जरिए केंद्र सरकार ने तीसरी बार संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ा दिया और अब उनका कार्यकाल 18 नवंबर 2023 तक कर दिया गया है।
क्या है सरकार का नया अध्यादेश?
केंद्र सरकार पिछले साल एक अध्यादेश लाई थी। इस अध्यादेश में कहा गया था कि सीबीआई और ईडी जैसी संस्था के निदेशकों का कार्यकाल 2 साल की अनिवार्य अवधि के बाद 3 साल और बढ़ाया जा सकता है। यानी उनका कुल कार्यकाल 5 वर्ष का हो सकता है। पिछले साल केंद्र सरकार ने जब ईडी चीफ संजय मिश्रा का कार्यकाल तीसरी बार बढ़ाया तब यही अध्यादेश आधार बना था।
क्यों है कार्यकाल बढ़ाने पर विवाद?
केंद्र सरकार ने जब तीसरी बार संजय मिश्रा को एक्सटेंशन दिया तब विपक्षी पार्टियों ने इसका तीखा विरोध किया। खासकर कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया और सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ अर्जी दायर की। केंद्र सरकार पर संजय मिश्रा को फेवर करने का आरोप लगाया। पूरे विवाद पर केंद्र कहती रही है कि संजय मिश्रा का कार्यकाल जनहित में कई संवेदनशील मामलों की जांच में निरंतरता बनाए रखने के लिए बढ़ाया गया है और एफएटीएफ का रिव्यू भी अहम है।
सरकार ने दलील दी थी कि चूंकि कांग्रेस के कई सदस्यों के खिलाफ पीएमएलए के तहत जांच चल रही है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका जनहित की ना होकर व्यक्तिगत हित की है।
क्या है एमिकस क्यूरी की राय?
जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तब उच्चतम न्यायालय ने इस पूरे मामले में सीनियर एडवोकेट केवी विश्वनाथन को एमिकस क्यूरी अप्वॉइंट किया था। एमिकस क्यूरी ने भी अपनी रिपोर्ट में माना है कि संजय मिश्रा को दिया गया तीसरा कार्यकाल सैद्धांतिक तौर पर गलत है।