क्या भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर डॉ. रघुराम राजन (Raghuram Rajan) लेफ्टिस्ट यानी वामपंथी है? सोशल मीडिया पर अक्सर उनके आलोचक उन्हें वामपंथी लिख देते हैं। खास तौर पर पूर्व आरबीआई गवर्नर के साथ यह शब्द तब जोड़ा जाता है, जब वह वर्तमान मोदी सरकार की आलोचना में कुछ कहते या लिखते हैं।
हाल में जब डॉ. रघुराम राजन द इंडियन एक्सप्रेस के विशेष कार्यक्रम Idea Exchange में शामिल हुए तो उनसे पहला सवाल यही पूछा गया? इंडियन एक्सप्रेस के डिप्टी एसोसिएट एडिटर उदित मिश्रा ने डॉ राजन से पूछा, “भारत में आपको अक्सर वामपंथी के रूप में देखा जाता है, जो अकादमिक हलकों में आपको देखे जाने के बिल्कुल विपरीत है। भारत में ‘सेंटर टू लेफ्ट’ या ‘सेंटर टू राइट’ की इस समझ से आप क्या देखते हैं?”
डॉ. राजन ने जवाब दिया, “आर्थिक रूप से भारत में हर कोई ‘सेंटर टू लेफ्ट’ की ओर (यानी केंद्र से वामपंथ की ओर झुका हुआ) है। मुझे ऐसा मध्यमार्गी (Centrist) माना जाता है, जो सेंटर से राइट की ओर है। हालांकि मुझे लगता है कि मैं सामाजिक रूप से ‘सेंटर टू लेफ्ट’ हूं। इसका मतलब यह हुआ कि मैं उतना ही उदार सामाजिक ढांचा चाहूंगा, जितना हम प्राप्त कर सकते हैं। मेरा मानना है कि असमानता एक बड़ी समस्या है जिससे हमें निपटना होगा। विभिन्न समूहों के साथ असमान व्यवहार एक बहुत बड़ी समस्या है। इसमें से कुछ ऐतिहासिक हैं, कुछ नए हैं। हमें इससे निपटने की जरूरत है।”
पूर्व आरबीआई गवर्नर आगे कहते हैं, “मेरा मानना है कि लोग अधिकांश अवसरों का फायदा तब उठा पाएंगे, जब मौके तक उनकी पहुंच फ्री होगी और कॉम्पिटिशन होगा। हम बाकियों की तुलना में कुछ बड़ी संस्थाओं का पक्ष नहीं लेते हैं और कॉम्पिटिटिव मार्केट के पावर का इस्तेमाल करते हैं। इस पावर का पूरा इस्तेमाल हो सके, इसके लिए लोगों को एक स्तर तक लाना होगा। यानी सभी के स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देना होगा। यदि आपकी आबादी सुशिक्षित और स्वस्थ नहीं है, तो उनका विकास कैसे होगा? यही मेरी सीधी सी फिलॉसफी है।”
बता दें कि डॉ. रघुराम राजन ने इकोनॉमिस्ट रोहित लांबा के साथ मिलकर इस विषय पर किताब लिखी है कि भारत का आर्थिक भविष्य कैसा होगा। पेंगुइन से प्रकाशित किताब का नाम ‘Breaking the Mould : Reimagining India’s Economic Future’ है। Idea Exchange में दोनों अर्थशास्त्री अपनी नई किताब के साथ पहुंचे थे।

हिंदू राष्ट्र पर रघुराम राजन की राय?
पिछले कुछ वर्षों में ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग को तेज होता देखा गया है। उदित मिश्रा ने इस उभार के मद्देनजर रघुराम राजन से पूछा कि वह हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को कैसे देखते हैं, यह एक अलग तरह की देश बनाने की कोशिश है?
डॉ. राजन अपने जवाब में इस बात पर जोर देते हैं कि कैसे अंग्रेजों के जाने के वक्त भारत ने जो रास्ता चुना (धर्मनिरपेक्षता का रास्ता) वह सही था। वह कहते हैं, “15 फीसदी आबादी को दोयम दर्जे की नागरिकता नहीं दी जा सकती। भले ही आप नैतिकता को भूल जाएं, जिसका मैं दृढ़ता से समर्थन करता हूं, हमें सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए, न अधिक, न कम, समान। दुनिया में हमारे पोजीशन के बारे में सोचें। जब हम खुद ही इस बात का ढिंढोरा पीटेंगे की, हमारे यहां भेदभाव होता है तो दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे। हालांकि मैं यह नहीं कहता कि हिंदुत्व का यही मतलब है। लेकिन जो लोग यह चाहते (हिंदू राष्ट्र) हैं, उनका मैं राम द्वारा दिखाए शांति और न्याय के रास्ते की तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगा। मैं नहीं चाहता कि भारत अपनी योद्धा की छवि को आगे बढ़ाए, क्योंकि इससे प्रतिक्रिया पैदा होगी। बगल में चीन इसी इंतजार में बैठा है। हमें दुनिया को यह बताना चाहिए कि हम एक समावेशी महाशक्ति बनने जा रहे हैं। यह हमारे लिए आसान रास्ता होगा। हमारे राष्ट्र नायकों ने आजादी के समय अच्छा चुनाव किया। हम पाकिस्तान का विकल्प थे। हमें पाकिस्तान नहीं बनना चाहिए।”