यह घटना आपातकाल के बाद की है। साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को जिम्बाब्वे ने अपने स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था। जिम्बाब्वे के इंडिपेंडेंस डे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़िया उल हक (Muhammad Zia-ul-Haq) भी पहुंचे थे।

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ज़िया पाकिस्तान के तानाशाह थे। उन्होंने सत्ता के लिए इस्लाम का इस्तेमाल किया था और देश कट्टरता की तरफ धकेला था। यही वजह थी कि इंदिरा गांधी जिम्बाब्वे में ज़िया उल हक से मिलने से कतरा रही थीं।

ज़िया ने भेजा संदेश

पाकिस्तानी तानाशाह ज़िया उल हक ने इंदिरा से मिलने के लिए संदेश भेजा। प्रोटोकॉल के तहत इंदिरा गांधी उन्हें मना नहीं कर सकती थीं। परिणामस्वरूप दोनों की बैठक हुई। नटवर सिंह ने अपनी किताब ‘वॉकिंग विद लायंस, टेल्स फ्रॉम अ डिप्लोमैटिक पास्ट’ में बताया है कि ज़िया इंदिरा से थोड़ा दब कर बात कर रहे थे।

बीबीसी हिंदी ने नटवर सिंह की किताब के हवाले से लिखा है कि ज़िया इंदिरा गांधी को प्रेस में छप रही खबरों को अविश्वसनीय बता रहे थे। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री से कहा, “मैडम प्राइम मिनिस्टर, प्रेस में मेरे बारे में जो कुछ भी लिखा  जा रहा है उस पर यकीन मत कीजिए।”

ज़िया की इस बात का इंदिरा गांधी ने शरारती अंदाज में जवाब दिया। उन्होंने ज़िया को आईना दिखाते हुए कहा, “राष्ट्रपति महोदय बिल्कुल नहीं। प्रेस वालों को कुछ पता नहीं। तभी तो वो आपको ‘डेमोक्रेट’ और मुझे ‘डिक्टेटर’ कह रहे हैं।”

ज़िया का गिफ्ट और इंदिरा का गुस्सा

जाहिर है ज़िया को इंदिरा गांधी का जवाब पसंद नहीं आया। फिर भी उन्होंने इधर-उधर की बात जारी रखी। वह बातचीत में बार-बार मोरारजी देसाई के कार्यकाल का जिक्र कर रहे थे। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर मोरारजी देसाई ही प्रधानमंत्री बने थे। ज़िया का कहना था कि उनके और मोरारजी देसाई के बीच अच्छा संबंध हो गए थे।

इंदिरा को बार-बार मोरारजी देसाई का जिक्र पसंद नहीं आ रहा था, तो उन्होंने ज़िया को याद दिलाते हुए कहा कि आप शायद भूल रहे हैं कि देसाई अब भारत के प्रधानमंत्री नहीं हैं।

इसके बाद बैठकी अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचा। ज़िया ने जाते वक्त इंदिरा गांधी को कॉफी टेबल किताब भेंट की। कॉफी टेबल किताबों की खासियत यह होती है कि उनमें अक्षर कम और दृश्य अधिक होते हैं। कॉफी टेबल किताबें सुंदर तस्वीरों से सजी होती हैं।

इंदिरा और ज़िया बैठक खत्म हुई। ज़िया की भेंट की हुई कॉफी टेबल किताब पाकिस्तान पर थी। ज़िया के जाने के बाद इंदिरा ने किताब को जरा उलट-पुलट कर देखा। तभी उनकी नज़र एक तस्वीर पर पड़ी, जिसमें पूरे कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया गया था। नटवर सिंह लिखते हैं कि इतना देखना था कि इंदिरा गांधी का पारा चढ़ गया।

इंदिरा गांधी ने फौरन नटवर सिंह को आदेश दिया कि वह उस किताब को तुरंत पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को लौटा दें।