सोमवार (4 फरवरी) को कथित तौर पर लेबनान से हिजबुल्लाह द्वारा दागी गई एंटी-टैंक मिसाइल के उत्तरी इज़राइल के एक बगीचे में गिरने से एक भारतीय नागरिक की मौत हो गई और दो घायल हो गए। नई दिल्ली स्थित इजरायली दूतावास ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में इसकी जानकारी दी है।
सवाल उठता है कि भारतीय कृषि श्रमिक इजराइल में क्यों हैं? और यदि युद्ध गाजा में चल रहा है, तो उत्तरी इज़राइल में श्रमिकों पर गोलीबारी क्यों हो रही है?
इज़रायल के दुश्मन फिलिस्तीन का दोस्त है हिजबुल्लाह!
इज़राइल की उत्तरी सीमा लेबनान से लगती है। दोनों देशों के बीच पिछले कई वर्षों से शांतिपूर्ण संबंध नहीं हैं। 8 अक्टूबर, 2023 को दक्षिणी इज़राइल में हमास के हमले के अगले दिन हिजबुल्लाह ने फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता दिखाते हुए इज़राइल पर रॉकेटों की बौछार शुरू कर दी थी।
अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, तब से इज़राइल ने लेबनान में 120 किलोमीटर अंदर (सीमा से) तक रॉकेट और गोले दागे हैं। इज़राइल के हमले में कम से कम 22 नागरिकों सहित 240 से अधिक लोग मारे गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन के अनुसार, 8 अक्टूबर से अब तक दक्षिणी लेबनान से 87,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इज़राइल अपनी सीमा और लेबनानी आबादी के बीच एक “बफर स्पेस” बनाने की कोशिश कर रहा है ताकि पिछले दिनों जो घटना हुई वह न हो सके।
इज़राइल में भारतीय कामगार
इज़राइल की आबादी कम है। जितनी है उसमें भी बुजुर्गों बहुत है। ऐसे में वहां श्रमिकों की हमेशा किल्लत रहती है, खासकर ब्लू-कॉलर जॉब (वेल्डर, मैकेनिक, इलेक्ट्रीशियन, माइनिंग, किसान, मिस्त्री आदि) और मैनुअल कामों के लिए। 7 अक्टूबर के हमलों से पहले फिलिस्तीनी और अरब प्रवासी, बड़ी संख्या में इज़राइल के वर्कफोर्स में थे। केवल इजरायली निर्माण उद्योग की बात करें तो लगभग 80,000 फिलिस्तीनी काम कर रहे थे।
लेकिन हमलों के बाद, इज़राइल ने हजारों फिलिस्तीनियों के वर्क परमिट को निलंबित कर दिया, वहीं कई अन्य विदेशी श्रमिकों ने असुरक्षा की आशंका में देश छोड़ दिया। इससे श्रमिकों की भारी कमी हो गई – जिसे भारतीय अब पूरा कर रहे हैं।
इजराइल ने नवंबर 2023 में निर्माण और कृषि क्षेत्रों में रोजगार के लिए वीजा देना शुरू किया था। अनौपचारिक अनुमान के अनुसार, देश के कृषि क्षेत्र में काम करने के लिए, पहले दौर के वीजा जारी होने पर, दिसंबर तक लगभग 800 भारतीय इज़राइल चले गए।
इजराल में काम कर रहे केरल के कुछ श्रमिकों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “एक कृषि वीज़ा की लागत आम तौर पर लगभग 4 लाख रुपये होती है, जिसमें एजेंटों और भर्ती एजेंसियों आदि द्वारा ली जाने वाली फीस भी शामिल होती है।”
काम की तलाश में इज़राइल जाने वालों में से अधिकांश केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश से हैं। मृतक, 31 वर्षीय पैट निबिन मैक्सवेल भी केलर का ही था। दो अन्य घायल भी केरल के ही रहने वाले हैं। ये सभी बागानों में काम करने के लिए इज़राइल गए थे। हालांकि, इज़राइल में अब खेती का मौसम चला गया है, इसलिए इस क्षेत्र में भर्ती रोक दी गई है। लेकिन अन्य नौकरियों के लिए भर्ती अभी भी जारी है और हजारों भारतीय रोजगार पाने के लिए उमड़ रहे हैं।
इज़राइल में बुजुर्गों के देखभाल का काम करते हैं भारतीय
इजराइल में भारतीय कामगारों की मौजूदगी कोई नई बात नहीं है। पिछले अक्टूबर में इज़राइल में लगभग 18,000 भारतीय काम कर रहे थे, जिनमें से लगभग 14,000 बुजुर्गों की देखभाल करने के काम में लगे हुए थे।
इज़राइल में उम्रदराज़ लोगों की संख्या अधिक है, इसलिए वहां नर्सिंग के क्षेत्र में लंबे समय से भारतीयों को अच्छे वेतन पर रखा जा रहा है। इस काम को करने वाले भारतीयों का वेतन एक लाख रुपये प्रतिमाह से अधिक होता है। साथ में खाना और रहना मुफ्त होता है। हेल्थ बेनिफिट और ओवरटाइम का पैसा भी मिलता है। केयरटेकर वीज़ा की मांग आमतौर पर कृषि वीज़ा से अधिक होती है। केयरटेकर वीज़ा की लागत 10 लाख रुपये तक होती है।
युद्ध के दौरान भी केयरटेकर का काम सुरक्षित है क्योंकि ऐसे श्रमिक इजरायली की सुरक्षा वाले शहरों के घरों में रहते हैं। दूसरी ओर कृषि श्रमिक अक्सर लेबनान सीमा पर काम करते हैं, जिससे उन पर खतरा बना रहता है।