आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों पर हुए चुनाव के परिणाम से समाजवादी पार्टी (सपा) को झटका लगा है। इसका असर विपक्षी INDIA गठबंधन पर भी पड़ा है।

भाजपा को 10 में आठ सीटों पर जीत मिली है। वहीं सपा दो ही सीट जीत पाई, जबकि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पार्टी अपने विधायकों की संख्या के आधार पर तीन सीटें जीतने की उम्मीद कर रही थी।  

भाजपा अपने आठवें उम्मीदवार उद्योगपति संजय सेठ को निर्वाचित कराने में सफल रही। वहीं सपा के तीसरे उम्मीदवार पूर्व नौकरशाह आलोक रंजन, पार्टी के सात विधायकों के क्रॉस वोटिंग के कारण हार गए।

राज्यसभा के चुनावों को INDIA ब्लॉक के लिए पहली अग्निपरीक्षा के रूप में देखा गया। उत्तर प्रदेश में INDIA ब्लॉक के तहत कांग्रेस और सपा का गठबंधन है। समझौते के तहत कांग्रेस को 17 सीटें और सपा को 63 सीटें मिली हैं। राज्यसभा चुनाव में सपा को मिले झटके के बाद, गठबंधन के कुछ नेताओं को डर है कि इससे लोकसभा चुनाव में कुछ प्रमुख “जीतने योग्य” सीटों पर असर पड़ सकता है।

बसपा पर कांग्रेस ने साधा निशाना

पहले कांग्रेस मायावती की बसपा पर निशाना साधने से बचती थी। लेकिन राज्यसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस ने बसपा पर निशाना साधा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने कहा, “जिस तरह से राज्यसभा चुनाव में बसपा के एकमात्र विधायक (उमा शंकर सिंह) ने भाजपा को वोट दिया, उससे बसपा के इरादे स्पष्ट हो गए हैं कि वह भाजपा की बी-टीम के रूप में काम कर रही है।”

उन्होंने बताया कि कांग्रेस के दोनों विधायकों आराधना मिश्रा और वीरेंद्र चौधरी ने सपा के उम्मीदवारों को वोट दिया। कांग्रेस खेमे ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडे जैसे अखिलेश के भरोसेमंद नेता ने मतदान जारी रहने के दौरान ही पद छोड़ दिया।

कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली की चिंता

भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने वाले सपा विधायकों में से मनोज पांडे रायबरेली लोकसभा सीट के ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि राकेश प्रताप सिंह अमेठी संसदीय क्षेत्र में गौरीगंज विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसके अलावा सपा के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी महराजी प्रजापति ने मतदान ही नहीं किया। वह अमेठी विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक हैं।

रायबरेली और अमेठी यूपी में कांग्रेस के बचे हुए कुछ गढ़ों में से हैं। 2019 के चुनावों में राहुल गांधी भाजपा की स्मृति ईरानी से अमेठी की सीट हार गए थे, जबकि सोनिया गांधी ने अपनी रायबरेली सीट बरकरार रखी थी।

सोनिया ने अब चुनावी राजनीति और अपनी रायबरेली सीट को अलविदा कह दिया है और राजस्थान से राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने का विकल्प चुना है। उनकी जगह उनकी बेटी प्रियंका को रायबरेली से कांग्रेस उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना है।

पार्टी के एक नेता ने कहा, “रायबरेली और अमेठी में ‘बागी’ सपा चेहरों की मौजूदगी ने कांग्रेस को डरा दिया है। अब वह इन ‘महत्वपूर्ण सीटों’ के लिए अपनी चुनावी योजनाओं की समीक्षा करने जा रही है।

सत्तारूढ़ भाजपा का दावा है कि दया शंकर सिंह, डिप्टी सीएम ब्रिजेश पाठक और संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेता बागी सपा विधायकों के संपर्क में थे।

कांग्रेस को सपा से उम्मीद थी लेकिन…

2022 के विधानसभा चुनावों में रायबरेली के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से, सपा ने चार – बछरावां, हरचंदपुर, सरेनी और ऊंचाहार – में जीत हासिल की थी। केवल रायबरेली सदर सीट भाजपा ने जीती थी, जिसने तत्कालीन कांग्रेस की बागी अदिति सिंह को अपना टिकट दिया था।

पिछले चुनावों में बिना गठबंधन के भी सपा, कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली सीटें छोड़ती थी। दोनों पार्टियों के बीच अब सीट-बंटवारे का समझौता हो गया है – जिसके तहत सपा ने कांग्रेस को राज्य की 80 सीटों में से रायबरेली और अमेठी सहित 17 सीटें दी है। कांग्रेस को इन निर्वाचन क्षेत्रों में स्थानीय सपा विधायकों से सक्रिय समर्थन की उम्मीद थी।

सपा के लिए राज्यसभा के चुनाव परिणाम ने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है क्योंकि उसे तत्काल अपना घर व्यवस्थित करने की जरूरत है। आठ ‘बागी’ सपा विधायकों में तीन ब्राह्मण और दो ठाकुर नेता है। इस लिस्ट में पिछड़े समुदाय के दो नेता और एक दलित नेता भी शामिल हैं। संभावना है कि पार्टी लोकसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करेगी।

राज्यसभा चुनाव के मद्देनजर गठबंधन के रोडमैप के बारे में पूछे जाने पर, अजय राय ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “कांग्रेस ने गठबंधन धर्म का पालन किया क्योंकि हमारे दोनों विधायकों ने सपा उम्मीदवारों को वोट दिया, लेकिन यह सपा को देखना है कि क्या गलत हुआ।”