India-Pakistan 1971 War: भारत और पाकिस्तान जो अलग मुल्क बने, उनका बंटवारा इतना आसान नहीं था। बंटवारे का आधार क्योंकि धर्म था, इस वजह से काफी चुनौतियां रहीं। उसी चुनौती का एक पहलू बना पूर्वी पाकिस्तान जिसे आज लोग बांग्लादेश के नाम से जानते थे। सोचने वाली बात थी, 1947 के बाद ऐसा बंटवारा हुआ कि भारत के पश्चिम में भी पाकिस्तान था और पूर्व में भी पाकिस्तान। लेकिन एक बड़ा फर्क रहा- पश्चिम वाला पाकिस्तान उर्दू बोलता था, पूर्वी वाला पाकिस्तान बंगाली। मुसलमान वहां भी थे और यहां भी, लेकिन भाषा के फर्क ने कब दूसरे तरीके के भेदभाव शुरू कर दिए, किसी ने इस बारे में नहीं सोचा था।
पूर्वी पाकिस्तान में कैसे थे हालात?
जिन्ना का पाकिस्तान कट्टरता की ओर इस कदर बढ़ चुका था कि वो किसी दूसरे धर्म को ना समझ पा रहा था और ना ही उसे सम्मान देना चाहता था। इसी वजह से 1948 में पश्चिमी पाकिस्तान में एक आदेश पारित हुआ- उर्दू को राष्ट्रीय भाषा घोषित कर दिया गया। अब इस एक ऐलान ने विरोध की चिंगारी ईस्ट पाकिस्तान में जगा दी थी, उनका नाराज होना बनता भी था। पूरे पाकिस्तान की 55 फीसदी आबादी तो पूर्व में रहती थी, लेकिन बात जब अधिकारों की आती थी, उन पर खर्च करने की आती थी, तब वे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिए जाते। एक आंकड़ा बताता है कि पाकिस्तान का जो पूरा बजट था, उसका सिर्फ 20 फीसदी पूर्वी हिस्से के लिए खर्च किया जा रहा था।
1970 का पाक चुनाव और बांग्लादेश आंदोलन
पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा गरीब था, भुखमरी का शिकार था, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के नेता, वहां के हुकमरानों के कान में जूं तक नहीं रेंगती थी। 1970 तक ऐसे ही चलता रहा, भारत-पाकिस्तान का तनाव अपनी जगह था, लेकिन उस समय तक हिंदुस्तान का इस विवाद से कोई लेना देना नहीं था। पाकिस्तान में आम चुनाव हुए, शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की, 313 में से 167 सीटें अपने नाम कीं। उनका जीतना इसलिए मायने रखता था क्योंकि वे पूर्वी पाकिस्तान के नेता था, वो इलाका जिसे खुद पाकिस्तान ने ही अलग-थलग छोड़ रखा था। पूर्व में बैठे नेता ने पश्चिम में जाकर विजय पताका लहराया था। उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान थे, उन्हें मुजीबुर्रहमान की यह जीत किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं थी, वे पूर्वी पाक के नेता को प्रधानमंत्री बनते हुए नहीं देख सकते थे।
पाक सेना का ऑपरेशन सर्चलाइट
यहां से शुरू हुई एक साजिश और भारत के लिए आने वाली थी बड़ी मुसीबत। असल में जब मुजीबुर्रहमान को सत्ता ट्रांसफर नहीं की जा रही थी, बांग्लादेश बनाने की मांग और तेज हो गई। देश को टुकड़ों में बंटता देख पाकिस्तान की सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू कर दिया। एक ही मकसद था, जो बांग्लादेश की बात करेगा, जो बांग्लादेश के समर्थन में सड़क पर उतनेगा, उन सभी को मौत के घाट उतार दिया जाए। इसे इतिहास का सबसे क्रूर ऑपरेशन कहा जा सकता है जिसमें 9 महीने के अंदर 30 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे और 1 करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए थे।
इंदिरा की एक मीटिंग और युद्ध की तैयारी
अब पूर्वी पाकिस्तान में हालात बिगड़ते जा रहे थे, बांग्लादेश बनाने के सपने ने मुक्ति बाहिनी सेना को जन्म दे दिया था। लेकिन भारत के लिए चुनौती कुछ और थी, जिस विवाद इसे उसका कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए था, अप्रत्याशित शरणार्थियों का बंगाल, असम और त्रिपुरा आना चिंता का विषय बनता जा रहा था। भारत इतने लोगों को कहां रखेगा, खुद की सुरक्षा का क्या होगा, ये सारे सवाल तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी परेशान करने लगे थे। भारत अगर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध नहीं भी छेड़ता, लेकिन इन शरणार्थियों का लगातार देश में आना भी सुरक्षा के लिए खतरा बन रहा था। ऐसे में 28 अप्रैल को इंदिरा ने कैबिनेट मीटिंग बुलाई, आर्मी चीफ सैम मानेकशॉ और रॉ चीफ आर.एन काओ भी मौजूद रहे।
सैम मानेक शॉ की चेतावनी और रणनीति
कई किताबें बताती हैं कि इंदिरा गांधी तो उसी समय पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध चाहती थीं, वे किसी भी कीमत पर इस रक्तपात को रोकना चाहती थीं। लेकिन तब आर्मी चीफ सैम मानेकशॉ ने युद्ध लड़ने से ही साफ मना कर दिया, यहां तक बोल दिया कि अभी जंग में उतरे तो हारने की संभावना 100 फीसदी है। इस फीडबैक बाद सैम ने खुद पीएम इंदिरा को बताया था कि सेना को तैयार होने के लिए नवंबर तक का समय चाहिए। यहां से शुरू हुआ था भारत का सीक्रेट ऑपरेशन। इस ऑपरेशन के तहत भारत कोई पाकिस्तान पर हमला नहीं कर रहा था, लेकिन मुक्ति बाहिनी सेना को ट्रेनिंग देना जरूर शुरू कर दिया गया।
रॉ की भूमिका और पाक का बदला
भारत की रॉ एजेंसी ही ट्रेनिंग देने का काम कर रही थी। अब एक तरफ ट्रेनिंग तो दूसरी तरफ पाक राष्ट्रपति याह्या खान के फोन को भी टैप किया गया। असल में अनुशा नंदकुमार और संदीप साकेत की एक किताब है- द वॉर दैट मेड रॉ। इस किताब में बताया गया है कि रॉ ने ना सिर्फ फोन टैप किए बल्कि पाकिस्तान की तरफ से होने वाले संभावित हमले को भी पहले ही डीकोड कर लिया था। यह बात नवंबर की है जब रॉ को पता चला कि पाकिस्तान भारत पर हमला करने की साजिश कर रहा है। उसे यह बात रास नहीं आ रही थी कि मुक्ति बाहिनी की सेना को भारत से ट्रेनिंग मिल रही है। ऐसे में एक दिसंबर 1971 को पाक हमला कर सकता था, इनपुट पुख्ता था, ऐसे में तैयारी भी पूरी कर ली गई।
पाकिस्तानी एयरफोर्स का अटैक और युद्ध की शुरुआत
अब इनपुट सही थे, लेकिन पाकिस्तान ने चालाकी दिखाते हुए अपने हमले को 48 घंटे आगे बढ़ा दिया। यानी कि जो हमला पहले 1 दिसंबर को पाकिस्तान करने वाला था, उसे 3 दिसंबर को अंजाम दिया गया। नापाक साजिश रचते हुए पाकिस्तान के ऑपरेशन चंगेज खान शुरू कर दिया और पठानकोट, अमृतसर, अंबाला, आगरा, हलवारा, श्रीनगर, अवंतीपुरा और फरीजकोट के एयरबेस पर हमला हुआ। उस एक हमले के बाद जंग शुरू हो चुकी थी, विवाद किसी के भी बीच रहा हो, अब भारत को पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना था। ऐसे में तीनों ही सेना ने संयुक्त ऑपरेशन चला ईस्ट पाकिस्तान पर हमला बोल दिया। दूसरी तरफ पाकिस्तान ने एक और चालाकी करते हुए पश्चिमी भारत पर अटैक करने की सोची। उसे पता था कि भारतीय सेना पूर्वी क्षेत्र में व्यस्त है, ऐसे में पश्चिमी इलाके पर हमला कर बागरेनिंग की जाएगी। पश्चिम के जरिए पूर्वी पाकिस्तान को वापस मांगा जाएगा।
पाक की चालाकी और लोंगेवाला में छिड़ी जंग
इसी रणनीति के साथ 1971 में पाकिस्तान ने युद्ध का एक और मोर्चा खोल दिया। राजस्थान के लोंगेवाला में बड़े हमले हुए, पाकिस्तान 45 टैंकों और करीब 3 हजार की सेना के साथ जमीन पर उतर गया। अब लोंगेवाला पोस्ट पर भारत के पास सिर्फ एक कंपनी तैनात थी, मात्र 120 सैनिक। किसी भी तरह रात निकालनी थी, सूर्य की किरण के साथ ही एयरफोर्स वहां मदद करने पहुंच पाती। ऐसे में भारत की सेना ने दिमाग लगाया और पाक टैंकों पर रखे डीजल टैंक को निशाना बनाना शुरू कर दिया। इस रणनीति ने कई पाकिस्तनी टैंकों को ध्वस्त कर दिया। दूसरी तरफ भारतीय नौसेना ने भी ऑपरेशन ट्राइडेंट को अंजाम देकर पाकिस्तान को सागर में भी पूरी तरह घेर लिया और कराची पोर्ट को भयंकर नुकसान हुआ।
भारत की नौसेना ने दिखाई ताकत
यह पहली बार था जब नौसेना ने भी किसी युद्ध में सक्रिय तरीके से भाग लिया था और परिमाण भारत का उत्साह बढ़ाने वाले रहे। नेवी ने अपने ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान के एक माइनस्वीपर, एक विध्वंसक को पूरी तरह तबाह कर दिया था। इसके अलावा मालवाहक जहाज और एक ईंधन भंडारण टैंक भी खत्म हुआ। इसके ऊपर नौसेना की एक बड़ी कामयाबी यह भी रही कि उसने पाकिस्तान की पनडुब्बी PNS गाजी को अपने मिसाइल अटैक से डुबो दिया था। यहां भी भारत की इंटेलिजेंस ने बड़ी भूमिका निभाई, बकायदा पाकिस्तान को एक जाल में फंसाया गया, INS विक्रांत को लेकर एक जानकारी लीक की गई। पाक जासूसों को बताया गया कि विशाखापट्टनम में INS विक्रांत तैनात है जबकि असल में वो पूर्वी क्षेत्र में पाक पर बड़े हमले की तैयारी कर रहा था। अब पाकिस्तान जाल में फंसा और उसकी पनडुब्बी PNS गाजी विशाखापट्टनम के काफी करीब आ गई। तभी भारत के INS राजपूत ने हमला कर दिया और पाकिस्तान की पनडुब्बी वहीं डूब गई।
92208 पाक सैनिकों का सरेंडर
पाकिस्तान को हारता देख अमेरिका और ब्रिटेन उसकी मदद के लिए आगे आने वाले थे, लेकिन वहां भी रूस ने दोस्ती निभाते हुए 13 दिसंबर 1971 को अपने प्रशांत महासागर में तैनात बेड़े को बंगाल की खाड़ी भेज दिया। इसी वजह से अमेरिका और ब्रिटेन की मदद भी वहां तक नहीं पहुंच पाई और अंत में पाकिस्तान को 1971 के युद्ध में हार माननी पड़ी। उसके 92208 सैनिकों ने सरेंडर किया और दुनिया के नक्शे में बांग्लादेश का जन्म हुआ। भारत ने पाकिस्तान के एक दुस्साहस के बाद उसके दो टुकड़े कर डाले।
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