साल 1987 में जब बोफोर्स तोप खरीद में घोटाले का मामला (Bofors Scandal) सामने आया तो हड़कंप मच गया। भारत ने साल 1986 में स्वीडन से करीब 400 बोफोर्स तोप (Bofors Top) खरीदने का सौदा किया था। बाद में ‘द हिंदू’ ने दावा किया कि इस एक अरब 30 करोड़ डॉलर के सौदे में कथित तौर पर 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई। बोफोर्स कांड में राजीव गांधी का नाम उछला और विपक्षी पार्टियों के निशाने पर आ गए। यह सब कुछ चल ही रहा था कि इसी दौरान भारत और पाकिस्तान (Pakistan) में जंग छिड़ने की नौबत आ गई। दोनों देशों ने सीमा पर भारी फौज और गोला-बारूद, हथियार भी जमा कर लिये थे।

दरअसल, जिस वक्त बोफोर्स कांड (Bofors Case) का मामला उछला, उसी के इर्दगिर्द भारतीय सेना पाकिस्तानी बॉर्डर के नजदीक सैन्य एक्सरसाइज कर रही थी। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक (General Zia Ul Haq) को लगा कि भारत हमला करने की तैयारी कर रहा है।

पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने फोन कर पूछा- यह सब चल क्या रहा है?

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक वीर सांघवी (Vir Sanghvi) अपनी किताब A Rude Life: The Memoir में लिखते हैं कि जनरल जिया-उल-हक (Zia Ul Haq) इतना डर गए कि उन्होंने भारतीय पीएम राजीव गांधी को फोन मिला दिया और पूछा कि यह सब क्या चल रहा है? इस फोन से राजीव गांधी सन्न रह गए, क्योंकि उन्हें कुछ पता ही नहीं था। राजीव ने किसी भी तरह के हमले की तैयारी से इनकार किया और आनन-फानन में जनरल जिया उल हक को दिल्ली एक क्रिकेट मैच देखने के लिए आमंत्रित किया गया। तब जाकर किसी तरह मामला शांत हुआ।

राजीव गांधी को एक्सरसाइज की जानकारी ही नहीं थी

सांघवी लिखते हैं कि इस घटना के कुछ वक्त बाद राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने उन्हें पूरी कहानी बताई थी और बताया कि किस तरीके से उन्हें पता ही नहीं था कि भारतीय सेना (Indian Army) बॉर्डर के नजदीक कोई एक्सरसाइज (Army Exercise) कर रही है। उन दिनों राजीव गांधी के करीबी अरुण सिंह (Arun Singh) रक्षा राज्यमंत्री हुआ करते थे और उनकी तत्कालीन सेना प्रमुख के. सुंदरजी से बहुत करीबी थी।

अरुण सिंह और सेना प्रमुख नहीं दे पाए थे जवाब

बिना प्रधानमंत्री की जानकारी के इस तरह की एक्सरसाइज पर राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) बहुत नाराज हुए थे। उन्होंने रक्षा राज्यमंत्री अरुण सिंह और तत्कालीन सेना प्रमुख के. सुदरजी को तलब कर लिया था और इसकी वजह पूछी। बकौल सांघवी, दोनों कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए थे। राजीव गांधी को ऐसा एहसास हुआ कि रक्षा प्रमुख के. सुंदरजी खुद इतना बड़ा निर्णय नहीं ले सकते हैं।

अरुण सिंह को हटाकर वीपी सिंह को बना दिया था रक्षामंत्री

राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने इस घटना के बाद महसूस हुआ कि रक्षा मंत्रालय किसी कद्दावर शख़्स के हवाले होना चाहिए। उन्होंने रक्षा राज्य मंत्री अरुण सिंह को हटा दिया था और उनकी जगह वीपी सिंह (VP Singh) को रक्षा मंत्रालय की कमान सौंप दी थी।