आजादी के वक्त भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2.7 लाख करोड़ था। पिछले वित्त वर्ष देश की जीडीपी 147.35 ट्रिलियन थी। आज भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रही है। भारत ने यह सफर कई चुनौतियों को पार कर और सुधारों को अपना कर तय किया। इस सफर में कई ऐसी कंपनियां शामिल हैं, जिन्होंने उतार-चढ़ाव के दिनों में भी भारत का साथ नहीं छोड़ा। आइए जानते हैं ऐसी ही पांच कंपनियों के बारे में जो आजादी के पहले से भारत के साथ हैं।
आजादी की खुशी में बांटी गई मुफ्त बोरोलिन
90 के दशक में खुद को ‘खुशबूदार एंटीसेप्टिक क्रीम’ कहकर प्रचारित करने वाले बोरोलिन का इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है। इसकी शुरुआत 1929 में विदेशी उत्पादों के विरोध में स्वदेशी अभियान के तहत हुई थी। कोलकाता के मोहन दत्त ने जब बोरोलिन का उत्पादन शुरू किया, तब भारत में महंगी विदेशी क्रीम ही उपलब्ध थीं। उनका उपयोग सिर्फ रईस कर सकते थे। बोरोलिन आम जनता की क्रीम बनी, जिसका इस्तेमाल फटी एड़ियों से लेकर होठ तक पर किया जाने लगा। यह महज प्रसाधन की सामग्री न बनकर रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने वाली क्रीम बनी।
इसके लोगो (LOGO) के रूप में एक हाथी को चुना गया क्योंकि विशालकाय हाथी भारत की विशाल सांस्कृतिक विरासत और स्थिरता को दर्शाने के लिए उपयुक्त था। 15 अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता की खुशी में बोरोलिन ने एक लाख से ज्यादा ट्यूब मुफ्त बांटा था। कई मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया जाता है कि आजादी के वर्ष तक यह कंपनी इतनी मशहूर हो गई थी कि जवाहरलाल नेहरू और अभिनेता राजकुमार जैसे दिग्गज भी इसका इस्तेमाल करने लगे थे। वित्त वर्ष 2018-19 में कंपनी ने 13,18,450 किलो बोरोलिन बेचा था। तब कंपनी का सालाना टर्नओवर ₹159.35 करोड़ था।
गरीबों को बिस्कुट का स्वाद बताने वाला पारले-जी
कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के बाद जब हजारों-लाखों मजदूरों ने पैदल ही अपने घरों की तरफ चलना शुरू किया तो पारले-जी सफर का साथी बना। इस सस्ते और किफायती बिस्कुट ने बच्चों से लेकर बड़ों तक का पेट भरा। मदद करने वालों ने भी पारले जी का पैकेट खूब बांटा। इसकी वजह से कंपनी ने अपने 8 दशक की बिक्री का रिकॉर्ड तोड़ दिया।
साल 1939 में व्यापारी मोहनलाल दयाल ने मुंबई के विले पार्ले इलाके में पारले-जी बनाने की शुरुआत की थी। इलाके के नाम पर ही कंपनी नाम पारले रखा गया था। पहले परिवार के ही 12 सदस्य कंपनी में मैन्युफैक्चरिंग से लेकर पैकेजिंग तक काम संभालते थे। आज पारले के पास देशभर में 130 से ज्यादा फैक्ट्रियां और 50 लाख से ज्यादा रिटेल स्टोर्स हैं।
जिस दौर में मोहनलाल दयाल ने बिस्कुट बनाने की ठानी, उस वक्त यह एक प्रीमियम प्रोडक्ट माना जाता था। अंग्रेज और अमीर ही बिस्कुट का स्वाद जानते थे। पारले-जी ने सस्ता और स्वादिष्ट बिस्कुट बनाकर उसे स्वदेशी अभियान से जोड़ दिया। राष्ट्रवादी विचारों से ओत-पोत आम जनता के बीच कंपनी ने जल्द पकड़ बना ली, जो आज तक कायम है।
स्वतंत्रता संग्राम में जेल गए थे बजाज ग्रुप के मालिक
1920 के दशक में जमनालाल बजाज ने बजाज ग्रुप की स्थापना की थी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जमनालाल बजाज को 1921 के असहयोग आन्दोलन के दौरान अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था। दरअसल 1915 में महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद ही बजाज उनके संपर्क में आ गए थे। 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में बजाज ने गांधी के सामने एक अजीब सा प्रस्ताव रखा, उन्होंने कहा – मैं आपका पांचवा बेटा बनाना चाहता हूं, आप मेरे पिता बन जाइए। गांधी पहले तो थोड़ा आश्चर्यचकित हुए लेकिन बाद में उन्हें अपना बेटा स्वीकार कर लिया।
गांधी अपने आश्रम से ही स्वतंत्रता संग्राम की योजना बनाते थे। बजाज ने उन्हें आश्रम के लिए जमीन दान कर आन्दोलन में आर्थिक सहयोग दिया। 1942 में जमनालाल बजाज की मौत के बाद उनके बड़े बेटे ने भी आजादी के आंदोलन को आर्थिक रूप से बहुत मदद पहुंचाई। आज बजाज ग्रुप बाइक, स्कूटर, ऑटो रिक्शा, फैन, गीजर, AC, कूलर, आदि बहुत से प्रोडक्ट का उत्पादन करता है। बजाज ग्रुप में 25 से ज्यादा कंपनियां हैं, जिनका सालाना टर्नओवर 280 अरब रुपये से अधिक है।
डाबर: आयुर्वेद से बना डाली करोड़ों की कंपनी
डाबर पिछले कई दशकों से भारतीयों का एक भरोसेमंद ब्रांड बना हुआ है। यह कंपनी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए प्रोडक्ट तैयार करती है। इस कंपनी का शहद और च्यवनप्राश विशेष रूप से ख्याति प्राप्त है। डाबर की स्थापना कलकत्ता के एक वैध डॉक्टर एस.के. बर्मन ने 1884 में की थी। मलेरिया और हैजा जैसी गंभीर बीमारियों (तब इन बीमारियों का आतंक कोरोना जैसा था।) के इलाज के लिए मशहूर हो चुके बर्मन ने हाथों से जड़ी बूटियों को कूटकर स्वास्थ वर्धक उत्पादों को बनाना शुरू किया। 1896 तक डाबर के प्रोडक्ट्स इतने लोकप्रिय हो गए कि डॉ बर्मन को फैक्ट्री लगानी पड़ी। कंपनी ने आजादी से पहले ही लोगों के बीच विश्वसनीयता हासिल कर ली जो आज भी बरकरार है। मार्च 2022 में कंपनी की घोषित इनकम 8,521.05 करोड़ थी।
गौरव की गाड़ी देने वाली बिरला कंपनी
घनश्यामदास बिरला अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के व्यापारी थी। जमनालाल बजाज की तरह इन्हें भी गांधी का बड़ा वित्तीय समर्थक माना जाता है। 1932 में गांधीजी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक समाज के अध्यक्ष रहे बिरला, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रहे थे। गांधी ने अपने जीवन का अंतिम तीन माह दिल्ली स्थित बिरला निवास में ही बिताया था। 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस से निकलने के दौरान ही नाथूराम ने गांधी की हत्या कर दी थी।
बिरला की कंपनी (हिंदुस्तान मोटर्स ) ने आजादी से पहले ही ऐसी कार बना दी, जो भारतीय पहचान का प्रतीक बन गई। जी हां, हिंदुस्तान मोटर्स ने ही उस एंबेसडर कार का निर्माण किया था, जिसकी सवारी करने में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर सरकारी बाबुओं और राजे-रजवाड़ों तक को फख्र महसूस होता था। बिरला ने यूनाइटेड कमर्शियल बैंक की भी स्थापना की थी, जिसे बाद में यूको बैंक के नाम से जाना गया। उन्होंने अपने पैतृक गांव पिलानी में बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की, जो अब बिट्स पिलानी के नाम से मशहूर है। 2017 में बिरला परिवार एशिया का सबसे अमीर परिवार था। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, आजादी से पहले के इस ग्रुप का नेट वर्थ 13.2 बिलियन डॉलर है।