लोकसभा चुनाव नजदीक हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में कांग्रेस की टीम राजनीति से ब्रेक पर चल रही है। जिले के इंदिरा गांधी क्रिकेट स्टेडियम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता क्रिकेट का आनंद ले रहे हैं। हालांकि कांग्रेस के प्रमुख चुनाव रणनीतिकार और कमलनाथ के वफादार आशीष त्रिपाठी का मानना है कि उनका ध्यान आगामी लोकसभा चुनावों पर है।

वह कहते हैं, “भाजपा की नजर छिंदवाड़ा पर है… वे हमें तोड़ने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन छिंदवाड़ा कांग्रेस दीवार बनकर खड़ी है।” हालांकि त्रिपाठी जिस दीवार की बात कर रहे हैं, वह काफी जर्जर हो गई है। भाजपा का दावा है कि हाल के दिनों में उसने राज्य भर से 4,500 कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपने पक्ष में कर लिया है, इनमें जिला अध्यक्ष, महापौर, सरपंच भी शामिल हैं। इन 4,500 में से 1,500 अकेले छिंदवाड़ा से हैं।

कांग्रेस पार्टी के लिए छिंदवाड़ा एक महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र है, जहां पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा नहीं जीत पाई थी। कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ छिंदवाड़ा से सांसद हैं।

क्या सच में भाजपा में जाने वाले थे कमलनाथ और उनके बेटे?

मध्य प्रदेश और विशेषकर छिंदवाड़ा में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के पलायन के बीच एक पखवाड़ा पहले अफवाह फैली की पूर्व सीएम कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ के साथ पार्टी छोड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद कमलनाथ राज्यसभा के रास्ते संसद जाना चाहते थे लेकिन पार्टी ने इनकार कर दिया। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व कमलनाथ से नाराज चल रहा है। ऐसे में कमलनाथ सतर्क होकर रास्ता तलाशने लगे।

अंततः अस्पष्ट कारणों से दलबदल सफल नहीं हो सका। मंगलवार को कमलनाथ ने कहा कि ये सारी अफवाहें मीडिया की उपज हैं। इससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि पार्टी को कमलनाथ की कोई जरूरत नहीं है, उनके ऊपर 1984 के सिख विरोधी दंगों और आपातकाल के समर्थन का आरोप है।

इसका मतलब यह है कि अब तक बेपरवाह भाजपा अपनी सारी ऊर्जा छिंदवाड़ा पर कब्जा करने पर केंद्रित करने के लिए तैयार है, जिस पर कमलनाथ का वर्चस्व रहा है। कमलनाथ ने पहली बार 1980 के दशक में छिंदवाड़ा से चुनाव जीता था।

क्या है छिंदवाड़ा की कहानी?

छिंदवाड़ा अदिवासी बहुल परिवेश वाला जिला है। लेकिन आधुनिकता की धमक वहां स्पष्ट नजर आती है। जिले में अच्छी रेल कनेक्टिविटी और सड़कें हैं। कई कौशल विकास संस्थान और कारखाने हैं, नमें रेमंड और यूनिलीवर जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं।

कांग्रेस नेताओं का दावा है कि भाजपा, कांग्रेस के गढ़ छिंदवाड़ा में विकास रोककर सेंध लगाने की कोशिश करेगी। छिंदवाड़ा के मेयर विक्रम अहाके ने उन परियोजनाओं की सूची बनाई है जो “रुकी हुई” हैं, जिनमें विवाह हॉल और पुस्तकालय शामिल हैं।

अहाके दावा करते हैं, “नकुलनाथ का जिले को एजुकेशन हब बनाना चाहते हैं। लेकिन भाजपा अड़चन डाल रही है। नकुलनाथ ने राजा शंकर शाह यूनिवर्सिटी के अपग्रेडेशन के लिए 481 करोड़ रुपये भी दिए हैं। सीएम के रूप में कमलनाथ ने अपने छोटे कार्यकाल के दौरान मेडिकल कॉलेज के लिए 1,400 करोड़ रुपये का बजट दिया था, जिस पर अब रोक लगा दी गई है। इसके अलावा एक कृषि और बागवानी संस्थान, एक मिनी-हवाई अड्डे और 100 एकड़ के औद्योगिक क्षेत्र के निर्माण का भी प्लान था। लेकिन अब तो केंद्र सरकार की योजनाएं भी रुकी हुई हैं।”

हालांकि, राज्य सरकार के प्रवक्ता ने छिंदवाड़ा के लिए फंड रोकने के आरोपों से इनकार किया है। प्रवक्ता कहते हैं, “अगर स्थानीय राजनेता धन का दुरुपयोग करते हैं, तो यह चिंता की बात है।”

छिंदवाड़ा में कांग्रेस की तैयारी कैसी चल रही है?

छिंदवाड़ा के कांग्रेस कार्यालय ‘राजीव भवन’ में शादियों के निमंत्रण पत्र की जांच का काम चल रहा है ताकि कमलनाथ शादियों में जा सकें। वह शादियों में शामिल होकर लोगों को आश्वासन दे रहे हैं। निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के साथ कांग्रेस नेता के जुड़ाव पर जोर दिया जा रहा है।

कांग्रेस के एक नेता कहते हैं, “भाजपा में भंडारा चल रहा है। हर कोई जा रहा है। उन्हें जाने दीजिए। वहां उन्हें क्या पद मिलेंगे? क्या उनका भविष्य सुरक्षित है? हमारा पूरा ध्यान बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के कमलनाथ के मिशन पर है। वे हमें जीतने में मदद करेंगे, न कि वे नेता जो चले गए।”

विडंबना यह है कि अब भाजपा में शामिल कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उन्होंने ऐसा कमद इसलिए उठाया क्योंकि वह अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित थे। कई नेताओं ने तो अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से दूर रहने के कांग्रेस नेतृत्व के फैसले को मुख्य कारण बताया।

क्यों कांग्रेस छोड़ रहे हैं नेता?

21 फरवरी को मोहन यादव छिंदवाड़ा में थे। उनकी उपस्थिति में कांग्रेस के कई नेता भाजपा में शामिल हुए, जिसमें कांग्रेस के पूर्व प्रदेश महासचिव और शराब व्यवसायी उज्जवल सिंह ठाकुर उर्फ अज्जू भी शामिल थे। ठाकुर कांग्रेस छोड़ने की वजह फंड में रुकावट और कांग्रेस में बिखराव को बताते हैं।

नीरज पटेल ने 2023 के चुनावों में मौजूदा विधायक सुजीत सिंह को पार्टी द्वारा फिर से मैदान में उतारने के बाद कांग्रेस छोड़ दी थी। वह राम मंदिर आयोजन पर पार्टी के फैसले से नाराज हैं।

नीरज पटेल कहते हैं, “कमलनाथ ने मुझे 2018 में टिकट देने का वादा किया और फिर मुझसे ‘एडजस्ट’ करने के लिए कहा। 2023 में उन्होंने फिर यही कहा…मैंने 15 साल तक संघर्ष किया है, लेकिन कोई इनाम नहीं मिला। राजनीति में महत्वाकांक्षा होनी बुरी बात नहीं है। पलायन तो अभी शुरू हुआ है, आगे और लोग जाएंगे।”

पटेल नकुलनाथ की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं कि “नकुल जमीन पर काम नहीं करते हैं और बिचौलियों से घिरे हुए हैं। इतने वर्षों के बाद भी वह पार्टी के अच्छे कार्यकर्ताओं की पहचान नहीं कर सके।”

जुन्नारदेव से कांग्रेस के पूर्व महासचिव अखिलेश शुक्ला भी कहते हैं, “कांग्रेस के शीर्ष नेता मुझ पर कोई ध्यान नहीं देंगे। मुझे कई मौकों पर अपमानित किया गया, बैठकों में नहीं बुलाया गया। स्थानीय विधायक मेरी महत्वाकांक्षाओं से डर गए थे और मुझे पार्टी से बाहर निकालना चाहते थे।”

एक पार्षद का कहना है कि उनके लिए विकल्प तलाशना स्वाभाविक है। वह बताते हैं, “मुझ पर राज्य सरकार का दबाव था। उन्होंने कई अनियमितताओं की ओर इशारा किया…भले ही ये भ्रष्टाचार की श्रेणी में न आएं। चूंकि हमारी पार्टी पहले ही सत्ता से बाहर है, और अगले पांच साल बाहर ही रहने वाली है, ऐसे में हमें खुद को बचाना मुश्किल हो जाएगा… मैंने अपने वार्ड के विकास के लिए स्विच किया।”