भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रोमांचक लगता है, लेकिन हमें सपने सावधानी से देखने की जरूरत है। सबसे पहले, यह समझना जरूरी है कि “विकसित” होने का क्या मतलब है। ज्यादातर लोगों के लिए, यह अमेरिका या ग्रेट ब्रिटेन जैसे देशों की बराबरी करने से जुड़ा है। उच्च स्तर का बुनियादी ढांचा, आधुनिक शहरी सुविधाओं की उपलब्धता, उच्च-गुणवत्ता वाले सामान और सेवाओं तक पहुँच।

औद्योग‍िक क्रांति ने यूरोप और अमेरिका को विकसित राष्ट्रों के रूप में स्थापित किया था। वस्तुओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन ने आसान पहुँच और बेहतर जीवन स्तर का मार्ग प्रशस्त किया। लेकिन क्या इंडस्ट्रियल क्रांति से पहले कोई ऐसा मॉडल था जिससे हम अलग तरीके से संगठित होकर खुशहाल रह सकें?

हड़प्‍पाकालीन सभ्‍यता भारत को मानव जाति के सबसे पहले संगठित समाजों में से एक होने का गर्व प्रदान करता है। ऐतिहासिक रूप से, भारत समृद्धि और ज्ञान का केंद्र था। क्या भारतीय इतिहास और विदेश में ऐसे मॉडल हैं, जिन्हें हमें देखना चाहिए, जो उस “विकसित” राष्ट्र की स्वीकृत धारणा से अलग या विपरीत हो सकते हैं जिसकी हम ओर अग्रसर हैं?

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संजय बारू का तर्क है क‍ि मोदी को 370 सीटें आ गईं तो आगे चल कर बीजेपी का वही हश्र होगा जो इंद‍िरा गांधी या राजीव गांधी को प्रचंड बहुमत म‍िलने के बाद कांग्रेस का हुआ था। (फोटो सोर्स: रॉयटर्स)

एक विकासशील देश बनने के लिए कई कारक महत्वपूर्ण हैं। इनमें से एक है शहरी योजना। भारत 3000 ईसा पूर्व में सिंधु घाटी सभ्यता के साथ एक नियोजित शहर बनाने के लिए जाना जाता है। उस समय हमारे शहरों में ढंकी हुई नाल‍ियों की व्‍यवस्‍था थी। विडंबना यह है कि हमारे कई शहरों में आज भी इसकी कमी है।

ऐतिहासिक रूप से, हम लंबे समय तक सबसे अमीर राष्ट्र थे। ऐसा माना जाता है कि मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान, हम दुनिया के सबसे अमीर देश थे। हम “वास्तु” के सिद्धांतों पर बने घरों में रहते थे, जहां प्राकृत‍िक स्रोतों से रोशनी व ऊर्जा आने का प्रावधान रखते हुए घर बनाए जाते थे। यह बिजली की खोज से पहले विकसित किया गया था। सोने का कमरा पूर्व द‍िशा में होता था ताकि आपको सुबह उगते सूरज से ऊर्जा और प्रकाश मिल सके। रसोई घर को वहाँ रखा गया था जहाँ सबसे कम हवा आती हो, ताकि रसोई में आग के घर में फैलने से रोका जा सके। हवेली या बड़े घरों आंगन जरूर होता था। घर को प्राकृत‍िक तरीके से गर्म‍ियों में ठंडा, सर्द‍ियों में गर्म रखने की व्‍यवस्‍था की जाती थी। भारत में पारंपरिक शहरी नियोजन में स्पष्ट रूप से बहुत अधिक ज्ञान था। हम न केवल भौतिक रूप से बल्कि ज्ञान के साथ भी समृद्ध थे।

आज, जैसे ही हम अपने शहरों को पश्चिमी देशों के शहरों की तरह दिखने के लिए बदल रहे हैं, ऊंचे कांच और स्टील के ढाँचे के साथ हमारी बढ़ती आबादी की मांगों को पूरा करने के लिए, क्या हम इस पारंपरिक ज्ञान में से कुछ को आगे बढ़ा रहे हैं?

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मोदी सरकार के 9 साल में  (2014-2023) में भ्रष्टाचार दो पॉइंट कम हुआ है। (Illustration by: C R Sasikumar)

मुंबई में एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्‍ती धारावी है, जिसे शहर में कई अन्य झुग्गी पुनर्विकास परियोजनाओं की तरह पुनर्विकास के लिए तैयार किया गया है। झुग्गीवासी जो एक-दूसरे के करीब छोटी-छोटी झोपड़ियों में रहते हैं, उन्हें ऊंची इमारतों में ज्‍यादा जगह देने की पेशकश की जाती है। लेक‍िन, वे अपने समुदाय से निकटता और प्रकृति तक आसानी से और अधिक सीधी पहुँच खो देंगे। अलगाव में और प्रकृति से दूर रहना सीधे तौर पर अवसाद, चिंता और रक्तचाप जैसी मानसिक और शारीरिक बीमारियों की बढ़ती संख्या से जुड़ा है। क्या हमारी बढ़ती आबादी का समाधान हमारे पारंपरिक शहरी नियोजन प्रणालियों में हो सकता है जिसके लिए ऊंची इमारतों की आवश्यकता नहीं है?

विकास की इसी तरह की धारणाओं के बाद, सऊदी अरब ने हाल ही में रेगिस्तान के बीच NEOM नामक एक भविष्य के शहर की महत्वाकांक्षी योजनाओं की घोषणा की। जहां पूरे शहर, पार्कों सहित, एक लाइन में बसाया जाएगा। ऐसे शहर के निर्माण में अरबों डॉलर खर्च होंगे। सऊदी अरब की आबादी अपेक्षाकृत कम है, 34.2 मिलियन लोग, जिनमें से अधिकांश के पास पहले से ही एक नहीं तो दो घर हैं। फ‍िर NEOM किसके ल‍िए होगा? स्थानीय लोग या पर्यटक?

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The Indian Express में दीप्‍त‍िमान त‍िवारी ने एक खोजी र‍िपोर्ट ल‍िखी है ज‍िससे पता चलता है क‍ि कैसे दूसरी पार्टी से बीजेपी या एनडीए में आने के बाद दागी नेताओं को एजेंस‍ियों की कार्रवाई से राहत म‍िलती रही है।

जब उच्च-गुणवत्ता वाले सामान और सेवाओं तक पहुँच और विकास की पारंपरिक धारणाओं की बात आती है, तो उनके नागरिकों के पास वह पहले से ही लगता है। क्या उनके नागरिक NEOM जैसे बुनियादी ढाँचे के चमत्कार को पसंद करेंगे या एक संपन्न स्वतंत्र समाज को? वे अपने देश के लिए सच्चा विकास क‍िसे मानेंगे? हो सकता है कि यही प्रश्न थे जिनके कारण सऊदी सरकार ने हाल ही में NEOM योजनाओं को वापस लेने की घोषणा की।

दूसरी ओर, भूटान एक देश के रूप में अपनी प्रगति को अपनी भौतिक वृद्धि या सकल घरेलू उत्पाद पर नहीं, बल्कि अपनी GNH, सकल राष्ट्रीय खुशी पर मापता है। भूटान और सऊदी, दो देशों के मामले हैं जो विकास को बहुत अलग तरीके से देख रहे हैं।

जैसे ही हम विकसित भारत के बारे में सोचते हैं, हमें पहले यह सोचने की जरूरत है कि “विकसित” होने का क्या मतलब है? हम विकासशील होने के लक्ष्य की ओर दौड़ रहे हैं लेकिन क्या हम यह सोच रहे हैं कि इसका हमारे लिए क्या मतलब है? जैसा कि हम विकासशील होने का मतलब के बारे में बहस करते हैं, हमें न केवल अपने गौरवशाली अतीत को बल्कि अन्य देशों को केस स्टडी के रूप में देखने की जरूरत है।

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वोटिंग प्रतिशत का चुनाव परिणाम पर असर (Source- PTI)

एक खुशहाल, संपन्न समाज के निर्माण के लक्ष्य के साथ, हमें अपना खुद का विकसित भारत बनाना चाहिए जो दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए एक आदर्श हो।

(राधा गोयनका आरपीजी फाउंडेशन में न‍िदेशक हैं और हेर‍िटेज प्रोजेक्‍ट ‘पहले अक्षर’ की संस्‍थापक भी हैं।)