चक्षु रॉय
दिसंबर की शुरुआत में महुआ मोइत्रा ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले में लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया। तृणमूल कांग्रेस की नेता को संसद की एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर निकाला गया। एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट में शामिल एक नाम ने सबका ध्यान खींचा- हुचेश्वर गुरुसिद्ध मुद्गल।
संसद में जब भी नैतिकता के बारे में कोई चर्चा होती है तो मुद्गल का नाम जरूर आता है। महुआ मोइत्रा के निष्कासन पर बहस के दौरान ने भी एक सांसद ने उनके नाम का जिक्र किया था। संसदीय चर्चा में मुद्गल को एक सांसद के रूप में उनके ‘खराब आचरण’ के लिए ही याद किया जाता है।
मुद्गल आजाद भारत के पहले सांसद थे, जिनकी पैसा लेकर सवाल पूछने के मामले में सांसदी गई थी। दिलचस्प यह है कि कांग्रेस नेता मुद्गल की सांसदी रद्द करने का प्रस्ताव खुद कांग्रेस के सबसे बड़े नेता और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू लाए थे।
24 सितंबर, 1951 को सुबह 10 बजे
साल 1951 में सितंबर का महीना था। संसद व्यस्त चल रहा था। अन्य विधायी और संसदीय कार्यों के साथ-साथ हिंदू कोड बिल जैसे प्रमुख कानूनों पर भी चर्चा चल रही थी। लेकिन उस वर्ष सितंबर में ही 53 साल के हुए कांग्रेस नेता मुद्गल के लिए ये सब उतना महत्वपूर्ण नहीं था। उनके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था।
24 सितंबर को सुबह 10 बजे मुद्गल सदन में अपनी सफाई देने के लिए खड़े हुए। वह पिछले चार महीनों से इसकी तैयारी कर रहे थे। उन पर उनके ही सहकर्मियों ने आरोप लगाया था कि उन्होंने पैसा लेकर संसद में मुद्दों को उठाया है।
उस सुबह प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ही मुद्गल के खिलाफ आरोप का नेतृत्व किया था। यह संभव था कि मुद्गल संसद से निष्कासित होने वाले पहले सदस्य बन सकते है। मुद्गल उस अंतरिम सरकार में सांसद थे, जो 1952 में पहली निर्वाचित लोकसभा से पहले बनी थी।
सांसद बनने से पहले मुद्गल का जीवन कैसा था?
संसद में आने से पहले मुद्गल का करियर दिलचस्प था। उनका जन्म 1899 में कर्नाटक के हुबली में हुआ था। वह 1920 के आसपास अमेरिका पहुंचे और न्यूयॉर्क कॉलेज से डिग्री प्राप्त की और फिर कोलंबिया विश्वविद्यालय से एमए किया। अमेरिका में रहने के दौरान उन्होंने डिग्रियां हासिल की और एक फीचर लेखक बन गए। फिर उन्हें ‘नीग्रो वर्ल्ड’ नामक न्यूजपेपर के संपादन का काम मिल गया। यह एक साप्ताहिक समाचार पत्र था।
अमेरिका में 17 वर्ष बिताने के बाद मुद्गल भारत लौटे। अपने अनुभव का उपयोग करके कई प्रकाशन शुरू किए। अपनी संसदीय जीवनी में उन्होंने उल्लेख किया है कि वह अर्थशास्त्र से जुड़ी एक साप्ताहिक पत्रिका ‘इंडियन मार्केट’ के संपादक और प्रकाशक थे। कुछ ही समय बाद उनके सहयोगियों ने उन्हें सदन की ‘पब्लिक एकाउंट्स कमेटी’ के लिए चुना। लेकिन एक संपादक और प्रकाशक के रूप में उनकी भूमिका ने उन्हें संसदीय कार्यों के फोकस में ला दिया।
सांसद बनने के बाद
सांसद बनने के बाद उन्होंने अपनी पत्रिका के ग्राहकों को एक पुस्तिका वितरित की जिसमें कहा गया था, “संसद में आपके प्रवक्ता- एच जी मुद्गल। उद्योगपति और व्यवसायी, हमारी राष्ट्रीय आर्थिक नीति को आकार देने के लिए आधुनिक अर्थशास्त्र, उद्योग और व्यवसाय के अपने ज्ञान का उपयोग करने के लिए श्री मुद्गल पर की मदद ले सकते हैं। एक मुक्त अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए लड़ने में वे हमेशा उनके प्रबुद्ध सहयोग पर भरोसा कर सकते हैं।”
बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन के बोर्ड सरकार द्वारा नामित लोग भी हुआ करते थे। मार्च 1951 में ऐसा ही एक व्यक्ति कुछ जानकारी के साथ केंद्र सरकार के पास पहुंचा। उसने सरकार को बताया कि एक बोर्ड बैठक में एसोसिएशन के अध्यक्ष ने सदस्यों को सूचित किया था कि एक सांसद 20,000 लेकर संसद उनका मुद्दा उठाने को तैयार हुआ है। बोर्ड ने इस काम के लिए 5000 रुपये की मंजूरी दी। हालांकि बाद में एसोसिएशन ने मुद्गल को 1,000 रुपये का भुगतान किया। यह जानकारी नेहरू तक पहुंची। उन्होंने मुद्गल से दो बार स्पष्टीकरण मांगा। जो जवाब मिला, उससे नेहरू संतुष्ट नहीं हुए।
शुरू हुई मुद्गल के खिलाफ जांच
नेहरू इस मामले को स्पीकर जीवी मावलंकर के सामने लाए। दोनों इस बात पर सहमत हुए कि इस मामले पर सदन को विचार करना चाहिए। जून 1951 में नेहरू ने मुद्गल के आचरण की जांच के लिए एक समिति गठित करने के लिए संसद में प्रस्ताव रखा।
नेहरू ने सदन को बताया कि मुद्गल वित्त मंत्री के साथ बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के नेतृत्व के लिए एक बैठक आयोजित करने की कोशिश कर रहे थे और उन्होंने बुलियन एसोसिएशन से संबंधित एक प्रश्न कैसे पूछा था। नेहरू ने यह भी बताया कि बुलियन एसोसिएशन बोर्ड की बैठक में मुद्गल द्वारा एसोसिएशन के लिए किए जाने वाले कार्यों को कैसे दर्ज किया गया था।
नेहरू ने प्रस्ताव का एक मसौदा पहले ही मुद्गल को भेज दिया था, जो सहयोग करने के लिए तैयार थे। उन्होंने समिति गठित करने के कदम का स्वागत किया। मुद्गल ने कहा कि उनकी पत्रिका का उद्देश्य उद्योगपतियों को सरकार के साथ सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना और सरकार से देश के तेजी से विकास के लिए नीतियां अपनाने का आग्रह करना था। सवालों के मुद्दे पर उन्होंने जवाब दिया कि सभी सदस्यों को विभिन्न स्रोतों से जानकारी मिलती है और अगर कोई बात उनकी नजर में आती है तो वे उसे प्रश्न के रूप में भेजेंगे।
सदन ने नेहरू के प्रस्ताव से सहमति व्यक्त की और मुद्गल के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए टी टी कृष्णामाचारी और चार अन्य सदस्यों की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। लेकिन कुछ सांसदों ने अपनी आपत्तियां व्यक्त कीं, जिनमें मदन मोहन मालवीय के सबसे छोटे बेटे पंडित गोविंद मालवीय भी शामिल थे। उनकी आशंका यह थी कि यदि सरकार इस सदन के किसी भी सदस्य के साथ मनमाने ढंग से व्यवहार कर सकती है, तो ऐसी प्रक्रिया का दुरुपयोग होने की संभावना है।
बुलियन एसोसिएशन के अधिकारियों और मुद्गल की पत्रिका के कर्मचारियों की व्यापक जांच के बाद समिति ने अगस्त 1951 में मुद्गल को दोषी ठहराते हुए अपनी रिपोर्ट पेश की। एक महीने बाद, 24 सितंबर, 1951 को नेहरू ने सदन से मुद्गल के निष्कासन के लिए एक प्रस्ताव पेश किया।
मुद्गल ने दमखम से अपना बचाव किया। उन्होंने रिपोर्ट में शामिल उस पत्र कि व्याख्या की, जो एक मुख्य सबूत साबित हो रहा था। दावों का खंडन करने के लिए कुछ सबूत पेश किए। नेहरू, कृष्णामाचारी पर जुबानी हमला किया और क्षेत्रीय कार्ड खेला। खैर उनकी एक न चली। इससे पहले कि सदन उन्हें निष्कासित कर पाता, मुद्गल पीठासीन अधिकारी के पास गए और अपना इस्तीफा सौंप दिया।