भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) प्रमुख नरेश टिकैत को मुजफ्फरनगर अदालत ने 2003 के एक हत्या के मामले में बरी कर दिया है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण साथी किसान नेता जगवीर सिंह की हत्या के मामले में 20 साल तक चले अदालती मामले के बाद नरेश टिकैत को बरी कर दिया गया।

अदालत के फैसले के एक दिन बाद नरेश टिकैत के बेटे गौरव टिकैत ने कहा कि हमारे परिवार ने कभी भी कटुता में विश्वास नहीं किया। हमारे दिल में अभी भी शिकायतकर्ता योगराज सिंह के खिलाफ कुछ नहीं है।

पुराने प्रतिद्वंदी: जगवीर सिंह और महेंद्र टिकैत

राष्ट्रीय किसान मोर्चा के संस्थापक जगवीर की 6 सितंबर 2003 की शाम को मुजफ्फरनगर जिले के अलावपुर माजरा गांव में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। परिवार ने जगवीर और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत (नरेश के पिता) के पुराने प्रतिद्वंद्वी होने के कारण टिकैतों को ही दोषी ठहराया। वे दोनों जाट थे, दोनों बलियान खान के सदस्य थे, दोनों किसान नेता थे और दोनों पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के अनुयायी थे।

विवाद का कारण?

जहां महेंद्र सिंह ने 1987 में बीकेयू का गठन किया, वहीं जगवीर ने एक साल बाद राष्ट्रीय किसान मोर्चा बनाया था। कहा जाता है कि उनके बीच विवाद का मुख्य मुद्दा यह था कि क्या किसान नेता के रूप में राजनीति में प्रवेश करना चाहिए। महेंद्र सिंह राजनीति से दूर रहना चाहते थे। उनका कहना था कि बीकेयू एक अराजनीतिक संगठन है। जगवीर ने तर्क दिया कि अगर किसान नेताओं के पास सत्ता होगी तभी वे किसानों की बेहतरी सुनिश्चित कर सकते हैं। संयोग से, चरण सिंह का भी विचार था कि किसान नेताओं को राजनीतिक शक्ति के लिए प्रयास करना चाहिए।

जैसे-जैसे महेंद्र सिंह और जगवीर का कद बढ़ता गया, दोनों के बीच कड़वाहट बढ़ती गई। टिकैत को बड़े विरोध प्रदर्शनों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाने लगा। वहीं जगवीर ने राज्य की राजनीति में अपने लिए जगह बनाने के लिए संघर्ष किया।

उनका राष्ट्रीय किसान मोर्चा वास्तव में कभी आगे नहीं बढ़ पाया और कुछ वर्षों में निष्क्रिय हो गया, हालांकि बाद में जगवीर के बेटे योगराज ने उनकी राजनीतिक विरासत को पुनर्जीवित किया।

हत्या के मामले से कैसे जुड़ा नरेश का नाम?

यह योगराज ही थे जिन्होंने जगवीर सिंह की हत्या के एक दिन बाद प्रवीण कुमार, राजीव उर्फ बिट्टू और नरेश टिकैत को हत्या के लिए नामित करते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने कहा कि जब तीनों ने उनके पिता को गोली मारी तो वह वहीं मौजूद थे।

तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन जमानत पर रिहा कर दिया गया। प्रवीण और राजीव दोनों की कुछ वर्षों में मौत हो गई। नरेश इस मामले में एकमात्र आरोपी रह गए।

जब राजनीति में आई बीकेयू

हत्या के चार साल बाद 2007 में योगराज को बसपा ने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से टिकट दिया था। उन्होंने जीत हासिल की थी। जिन लोगों को उन्होंने हराया उनमें नरेश के भाई और बीकेयू प्रवक्ता राकेश टिकैत भी शामिल थे। तब तक, बीकेयू ने अपना अराजनीतिक रुख त्याग दिया था और राकेश ने बीकेयू की राजनीतिक शाखा के रूप में गठित एक पंजीकृत राजनीतिक दल, बहुजन किसान दल के टिकट पर चुनाव लड़ा था। हालांकि, राकेश चुनाव में सातवें स्थान पर रहे।

जाट वोट और बसपा के समर्थन के कारण दलित समर्थन के अलावा, योगराज की जीत का श्रेय उनके पिता की हत्या के लिए सहानुभूति वोट को दिया गया। मायावती ने उन्हें इतना महत्व दिया कि उन्हें कृषि, शिक्षा और अनुसंधान राज्य मंत्री बनाया दिया। तब बसपा भारी बहुमत से सत्ता में आई थीं।

बसपा ने किया बाहर, अब आरएलडी के साथ

सत्ता में वे पांच साल योगराज के राजनीतिक करियर के चरम थे, क्योंकि चुनाव में उनके बाद के प्रयास असफल रहे थे। 2012 में मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना से बसपा प्रत्याशी के रूप में वह तीसरे स्थान पर रहे। 2015 में, उन्हें बसपा से निष्कासित कर दिया गया और वह चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह द्वारा स्थापित आरएलडी में शामिल हो गए। 2017 में वह रालोद उम्मीदवार के रूप में फिर से बुढ़ाना से लड़े और चौथे स्थान पर रहे।

योगराज तब से आरएलडी में बने हुए हैं, जिसका नेतृत्व अब अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी कर रहे हैं, हालांकि पार्टी ने उन्हें 2022 में बुढ़ाना से टिकट देने से इनकार कर दिया। उन्हें आखिरी बार इस साल जनवरी में आरएलडी द्वारा किसान संदेश अभियान के हिस्से के रूप में मुजफ्फरनगर के गांवों में किसानों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया था। 44 वर्षीय योगराज कहते हैं, “मैं पूरी ताकत से जयंत चौधरी के साथ हूं।”

हत्या के मामले का क्या हुआ?

जहां तक जगवीर की हत्या का सवाल है, योगराज के इस दावे के बावजूद कि वह नरेश द्वारा उसके पिता को गोली मारने का गवाह हैं, पुलिस जांच और बाद में सीबी-सीआईडी की जांच में इसकी पुष्टि करने वाला कोई सबूत नहीं मिला।

नरेश के वकील अनिल कुमार जिंदल इसका हवाला देते हुए कहते हैं कि मुजफ्फरनगर के एसएसपी नवनीत सिकेरा का मानना था कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण बीकेयू नेता का नाम मामले में घसीटा गया है। जिंदल कहते हैं, “सच्चाई यह है कि मेरा मुवक्किल उस स्थान पर मौजूद ही नहीं था जहां जगवीर सिंह को गोली मारी गई थी। शिकायतकर्ता ने पहले दिवंगत महेंद्र सिंह टिकैत का नाम लिया, लेकिन अपना इरादा बदल लिया और फिर राकेश को फंसाने की कोशिश की, लेकिन वह उस दिन लखनऊ में थे। फिर उन्होंने सह-अभियुक्त के रूप में नरेश का नाम लिया।”

योगराज का कहना है कि वह अदालत में अपनी लड़ाई नहीं छोड़ने वाले हैं, “उन्हें (नरेश को) स्थानीय अदालत ने बरी कर दिया होगा, लेकिन हम फैसले को उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे। जब तक मेरे दिवंगत पिता को न्याय नहीं मिल जाता, हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।”

यह कहते हुए कि “सच्चाई की जीत हुई है”, नरेश कहते हैं: “योगराज, जो हमारे परिवार से हैं, जो कि किसानों का परिवार है, उन्हें मेरी सलाह है कि वह नफरत की राजनीति छोड़ें और किसानों के उत्थान के लिए काम करें। किसानों को उनके जैसे प्रभावी नेताओं की जरूरत है।”