मुगल सम्राट जहांगीर के आदेश पर दी गई कड़ी यातनाओं के बाद 16 जून, 1606 को सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव का निधन हो गया था। सिख परंपरा में गुरु अर्जन देव को शहीदों का सिरताज कहा गया। वह सिख धर्म के पहले ‘शहीद’ थे। उनकी मौत के बाद वह सिख धर्म हमेशा-हमेशा के लिए बदल गया, जिसकी शुरुआत गुरु नानक देव ने की थी। नानक ने सिख धर्म का आधार शिक्षा और सेवा रखा था। अर्जन देव तक इस धर्म को हथियार और आर्मी की जरूरत महसूस नहीं हुई थी। अर्जन देव का भी पूरा जोर आदि ग्रंथ साहिब का संकलन, नगरों और जलाशयों के निर्माण आदि पर था।

सबसे छोटे बेटे थे अर्जन देव

अर्जन देव का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को गोइंदवाल में हुआ था। उनके पिता गुरु रामदास सिख धर्म के चौथे गुरु थे। मां का नाम बीबी भानी था। वह तीसरे और सबसे छोटे बेटे थे, बावजूद इसके उन्हें उनके पिता ने 5वां सिख गुरु बनाया। दरअसल, अर्जन देव बचपन से ही बहुत बुद्धिमान, धर्म के प्रति समर्पित और कर्तव्य निष्ठा से लबरेज थे। उन्होंने गुरुमुखी, फारसी और संस्कृत भाषा सीखी थी। तमाम बाधा विघ्नों के बावजूद 5वें सिख गुरु के रूप में उन्होंने 25 वर्षों तक धर्म का प्रचार किया।

स्वर्ण मंदिर का कराया निर्माण

हरमंदिर साहिब, जिसे ‘स्वर्ण मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। उसकी आधारशिला 1588 ई. में लाहौर के मुसलिम संत मियां मीर मुहम्मद द्वारा सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव के व्यक्तिगत अनुरोध पर रखी गई थी। इसका निर्माण कार्य 1601 ई. में पूरा हुआ था। तब गुरुद्वारों में एक दरवाजा हुआ करता था। लेकिन गुरु अर्जन देव ने स्वर्ण मंदिर में चार मिनारों का निर्माण कराया और चार तरफ से लोगों के आने-जाने का रास्ता बनवाया। यह इस बात का प्रतीक था कि किसी भी जाति और धर्म के लोग बिना किसी भेदभाव के सिख धर्म में आ सकते हैं। कई लोग ऐसा मानते हैं कि स्वर्ण मंदिर का नक्शा खुद गुरु अर्जन देव ने तैयार किया था।

इसी दौरान गुरु अर्जन देव की देखरेख में आदिग्रंथ का संकलन किया गया। यह कार्य अर्जन देव और उनके भाई गुरुदास जी ने अमृतसर के रामसर सरोवर के किनारे एकांत में बैठकर किया। संकलन का काम 1603 में शुरू होकर 1604 में समाप्त हुआ। इसके बाद हरमंदिर साहिब से पहली बार आदि ग्रंथ साहिब (आगे चलकर यही गुरु ग्रंथ साहिब बना) को स्थापित किया गया।

अर्जन देव ने बिना किसी भेदभाव तमाम विद्वानों और भक्तों की बाणी को आदि ग्रंथ में शामिल किया। आदि ग्रंथ साहिब में गुरु नानक और 32 अन्य हिंदू और मुस्लिम संतों द्वारा रचित वाणी का संकलन है। आदि ग्रंथ में शेख फरीद, कबीर, रविदास, नामदेव, रामानंद, जय देव, त्रिलोचन, बेनी, पीपा और सूरदास की रचनाएं शामिल हैं। आदि ग्रंथ की पहली प्रति करतारपुर स्थित गुरुद्वारा ठुम साहिब में रखी गई है। स्वर्ण मंदिर के पहले ग्रंथि के रूप में अर्जन देव के शिक्षक रहे बाबा बुड्ढा जी को नियुक्त किया गया था।

नगर और जलाशय बनवाए

अर्जन देव के पिता गुरु रामदास ने रामदासपुरा नामक नगर की स्थापना की थी। इसी रामदासपुरा को वर्तमान में अमृतसर के नाम से जाना जाता है, जहां स्वर्ण मंदिर है। अर्जन देव ने तरनतारन नामक सरोवर का निर्माण कराया था। उसी सरोवर के नाम पर तरनतारन नामक नगर भी बसा है। अर्जन देव ने ही करतारपुर और हरगोबिंदपुर भी बसाया था। अर्जन देव के बेटे का नाम हरगोबिंद था। अर्जन देव के बाद हरगोविंद ने ही गद्दी संभाली थी। गुरु हरगोविंद के बारे में आगे जानेंगे।

एक आशीर्वाद और अनेक यातनाएं

गुरु अर्जन देव के काम से बहुत से हिंदू और इस्लाम धर्मावलंबी भी सिख धर्म की तरफ आकर्षित हो रहे थे। हिंदू और मुस्लिम धर्म में जाति विभेद से सताए लोग सिख धर्म में दीक्षित हो रहे थे। गुरु अर्जन देव और मुगल सम्राट अकबर के बीच सब ठीक था। लेकिन अकबर के बेटे जहांगीर ने पहले के सभी रिश्तों के खराब कर दिया। वह अपने पिता के खिलाफ भी विद्रोह कर चुका था। अकबर के एक नवरत्न की हत्या कर दी थी। इन सब कारणों से अकबर, जहांगीर की जगह खुसरो मिर्जा को गद्दी पर बैठाना चाहते थे। खुसरो मिर्ज़ा, जहांगीर और मानबाई का बेटा था।

हालांकि अकबर के बाद गद्दी जहांगीर को ही मिली। खुसरो मिर्जा को उसके पिता ने महल में नजरबंद कर दिया। परेशान होकर खुसरो मिर्जा ने बगावत की ठानी और वह महल से भागकर और तरनतारन पहुंचा। वहीं उसकी मुलाकात अर्जन देव से हुई। सिख गुरु, अकबर के समय से खुसरो मिर्जा को जानते थे। उन्होंने मिर्जा को अपना आशीर्वाद दिया।

खुसरो मिर्जा आगे बढ़ गया। वह काबुल जाना चाहता था लेकिन उससे पहले ही मुगल सेना द्वारा पकड़ा गया। पिता के आदेश पर मिर्जा की आंख फोड़ काल कोठरी में कैद कर दी गई। इसके बाद जहांगीर उन लोगों की तलाश में जुटा, जिन्होंने मिर्जा का साथ दिया था।

अर्जन देव के नेतृत्व में सिख धर्म की ख्याति से जहांगीर पहले ही गुस्से में था। जहांगीर के अलावा अर्जन देव से हिंदू और मुस्लिम धर्मगुरु भी नाराज थे क्योंकि इन धर्मों के सताए लोग सिख धर्म अपना रहे थे। जब जहांगीर को पता चला कि अर्जन देव ने खुसरो को आशीर्वाद दिया था, तो उसने उन्हें कैद करवा लिया। अर्जन देव को लाहौर ले जाया गया। जहांगीर ने अर्जन देव पर दो लाख का जुर्माना लगाया। साथ ही आदि ग्रंथ से हिंदू और मुस्लिम धर्म से जुड़ी बातें हटाने को कहा। अर्जन देव ने जहांगीर की मांग मानने से इनकार कर दिया।

मुगल सम्राट ने अर्जन देव को मौत की सजा सुनाई। कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि अर्जन देव को गर्म तवे पर बैठाया गया। उनके चेहरे पर गर्म रेत डाली गई। करीब पांच दिनों की प्रताड़ना के बाद उनकी मौत हो गई। हालांकि इतिहासकारों का एक तबका ऐसा भी जो मानता है कि अर्जन देव को नदी में डुबोकर मारा गया था। सच्चाई जो भी लेकिन इतिहासकार इस बात पर एकमत हैं कि गुरु अर्जन देव की मौत ने सिख धर्म को हमेशा के लिए बदल दिया।

गुरु हरगोबिंद का सिख धर्म

अर्जन देव ने अपने बेटे हरगोबिंद को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। अर्जन देव की मौत के बाद जब गुरु हरगोबिंद ने गद्दी संभाली, तो वे गुरु नानक के बाद से स्थापित कवि-गुरु परंपरा से विचलित होने वाले पहले सिख गुरु थे। उन्होंने सिख धर्म में रक्षा की परंपरा शुरू की। अपनी कमर से लटकती दो तलवारों से हरगोबिंद ने सिख गुरु की पहचान बदल दी। यहीं से सिखों का सैन्यीकरण शुरू हुआ। अर्जन देव की ‘शहादत’ से शुरु हुआ मुगलों और सिखों का संघर्ष अंतिम गुरु, गोबिंद सिंह तक जारी रहा, जिन्होंने अंततः 1699 में खालसा की स्थापना की।