अंकिता उपाध्याय: लोक नायक अस्पातल (Lok Nayak Hospital) दिल्ली का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। 10 जनवरी 1930 को इसकी आधारशिला रखी गई थी और उसके 6 साल बाद 7 अप्रैल 1936 को खोला गया था। यदि आपको कभी किसी रिक्शा चालक से लोक नायक अस्पताल का रास्त पूछना हो तो ‘अर्बिन अस्पताल’ या ‘इरबिन अस्पताल’ के लिए पूछें क्योंकि क्षेत्र के कई लोग इसे अभी भी इसके पुराने नाम इरविन अस्पताल से ही जानते हैं।

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इंडियन एक्सप्रेस में छपी अंकिता उपाध्याय (Ankita Upadhyay) की खबर के अनुसार पुरानी दिल्ली में स्थित यह अस्पताल दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। दिल्ली अभिलेखागार विभाग से प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार यह तत्कालीन उसके बाद आया, जब 120 मरीजों को समायोजित करने के लिए बनाया गया डफरिन सिविल अस्पताल खराब होने लगा था।

अभिलेखागार विभाग में लिखित संचार से पता चलता है कि कैसे दिल्ली में तैनात ब्रिटिश अधिकारियों ने एक नए अस्पताल की आवश्यकता महसूस की खासकर 1928 के अंत तक, उस समय दिल्ली की आबादी 50,000 थी। 1927 में दिल्ली के तत्कालीन मुख्य आयुक्त द्वारा वायसराय लॉर्ड इरविन को लिखे गए एक पत्र में उन्होंने सिविल अस्पताल की खराब स्थिति का उल्लेख किया और एक नए की आवश्यकता के बारे में लिखा। सिविल अस्पताल में उचित ओपीडी नहीं थी। नियमित वार्ड आवास भूमिगत था और भारी बारिश के समय यह बारिश के पानी और सीवेज से भर जाता है।

पहले से मौजूद हिंदू राव अस्पताल में 25 बेड ही थे और यह केवल कुछ चुनिंदा लोगों के लिए था। तब सरकार ने दिल्ली के लोगों विशेषकर महिलाओं और बच्चों के इलाज के लिए दिल्ली गेट के बाहर एक नए अस्पताल बनाने की योजना बनाई।

निर्णाण के समय कम कर दिया गया था स्वीकृत बजट
1928 में यह प्रस्तावित किया गया था कि दिल्ली गेट के निकट केंद्रीय जेल परिसर के निकट एक नया अस्पताल बनाया जाएगा। प्रारंभ में निर्माण के लिए 60,97,600 रुपये की राशि स्वीकृत की गई थी, लेकिन स्थायी वित्त समिति ने बजट को घटाकर 45,38,000 रुपये कर दिया। लॉर्ड इरविन और उनकी पत्नी ने आधारशिला रखी।

लोक नायक अस्पताल के पूर्व चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अमित बनर्जी के अनुसार केंद्रीय जेल परिसर से कैदियों को दूसरी जेल में स्थानांतरित करने के बाद बैरक को अस्थायी वार्ड में बदल दिया गया और एक ओपीडी विकसित की गई। जेल परिसर में लंबे हॉल थे, जहां मरीजों के लिए दोनों तरफ बिस्तर रखे गए थे और बड़ी खिड़कियां पर्याप्त वेंटिलेशन दिया गया था। बाद में नई इमारतों का निर्माण हुआ और बैरकों को ध्वस्त कर दिया गया।

ब्रिगेडियर मार्टिन मेल्विन क्रुइकशैंक के पास था निर्माण का प्रभार
उन्होंने कहा आखिरी बचा हुआ बैरक 2010 में राष्ट्रमंडल खेल शुरू होने से पहले गिरा दिया गया था। निर्माण का प्रभार ब्रिगेडियर मार्टिन मेल्विन क्रुइकशैंक नामक एक नेत्र सर्जन को दिया गया, जो अस्पताल के पहले चिकित्सा अधीक्षक भी बने।

350 बेड से हुआ से शुरू
डॉ. अमित बनर्जी ने बताया कि शुरूआत में 350 बेड की व्यवस्था की गई थी, जिसे बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी बड़ा माना जाता था। प्रसूति विभाग सबसे पहले बनाया गया था।

बनर्जी ने कहा कि अस्पताल की सुंदरता इसकी भौगोलिक स्थिति में निहित है, जबकि अस्पताल पुरानी दिल्ली के लोगों के लिए था।नई और पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशनों और अंतरराज्यीय बस स्टेशन से इसकी निकटता होने के कारण संयुक्त प्रांत के मरीज भी यहां इलाज के लिए आते थे।

अस्पताल के वर्तमान चिकित्सा निदेशक डॉ. सुरेश कुमार के अनुसार 1947 में विभाजन के दौरान, जब दिल्ली में शरणार्थियों की बड़ी संख्या देखी गई, इरविन अस्पताल जिसकी बढ़ती जरूरतें कम हो रही थीं, जब मौजूदा स्थित को देखते हुए एक तपेदिक के लिए एक समर्पित वार्ड खोला गया था।

बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान अस्पताल से भेजी गई थी टीमें
डॉ. बनर्जी ने कहा कि अस्पताल ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भी टीमें भेजी थीं। मैं अपना ग्रेजुएशन पूरा कर रहा था। हमें बहुत अधिक हताहतों की उम्मीद नहीं थी क्योंकि युद्ध कहीं और हो रहा था, लेकिन अस्पताल ने बंगाल से आने वाले शरणार्थियों को देखा और उनका इलाज किया। उन्होंने कहा कि हमने डॉक्टरों की एक टीम भेजी थी जो प्राथमिक चिकित्सा और चिकित्सा सहायता और संस्थागत देखभाल प्रदान करने के लिए बांग्लादेश की सीमा पर सरकारी सहायता के गई थी।

अस्पताल के पूर्व चिकित्सा निदेशक डॉ. सिद्धार्थ रामजी, जिन्होंने एमएएमसी में भी अध्ययन किया था। उन्होंने कहा कि जिस भवन में वर्तमान चिकित्सा निदेशक बैठते हैं वह एक विरासत भवन है और इसे इस तरह संरक्षित किया गया है। उन्होंने कहा कि अस्पताल एक तृतीयक देखभाल से एक सुपर के रूप में विकसित हुआ है। यह डायलिसिस सुविधा वाला सबसे बड़ा अस्पताल है और दिल्ली में यह पहला अस्पताल था।

साल 1977 में बदला गया अस्पताल का नाम
नवंबर 1977 में जयप्रकाश नारायण के सम्मान में नाम बदलकर लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल कर दिया गया। 1989 में दिल्ली सरकार ने बाद में इसका नाम छोटा कर लोक नायक अस्पताल कर दिया।