NCERT की किताबों में संशोधन का मुद्दा अब भी ताजा है। पहले चर्चा थी कि किताबों से मुगल, गांधी, गोडसे, आरएसएस, आपातकाल, गुजरात दंगा, नक्सलबाड़ी आंदोलन से जुड़े कुछ हिस्सों को हटाया गया है। ताजा विवाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को लेकर है। NCERT ने राजनीति विज्ञान की कक्षा 11वीं की किताब से मौलाना आजाद से जुड़े संदर्भों को हटा दिया है।

इस मुद्दे पर जनसत्ता डॉट कॉम के संपादक विजय कुमार झा ने प्रसिद्ध इतिहासकार सैयद इरफान हबीब से बातचीत की है। इतिहासकार हबीब ने मौलाना आजाद की जीवनी के लेखक भी हैं। NCERT की किताब से मौलाना आजाद का नाम को हटाए जाने को इतिहासकार ने घटिया सोच बताया है।

उन्होंने कहा कि मौलाना आजाद स्वतंत्रता संग्राम के टॉप पांच नेताओं में से एक हैं। वह न सिर्फ भारत के शिक्षा मंत्री रहे बल्कि साइंस और कल्चर मंत्री भी रहे। जिन्होंने मौलाना का नाम हटाया है वह भी उनके योगदान को जानते हैं। लेकिन वह अपनी सांप्रदायिक और संकीर्ण सोच से मजबूर हैं। मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मौलाना आजाद के साथ ऐसा भी किया जा सकता है।

जब धर्म से दूर हो गए थे मौलाना

मौलाना आजाद की जिंदगी में एक ऐसा वक्त भी आया था जब वह इस्लाम से बिल्कुल दूर हो गए थे। जनसत्ता से ही बातचीत में इतिहासकार एस. इरफ़ान हबीब ने बताया कि मौलाना अपनी जवानी की शुरुआत में इस्लाम से दूर हो गए थे। उन्होंने पांच-छह साल तक नमाज भी पढ़ना छोड़ दिया था।

मुसलमानों को मौलाना की सलाह

इस्लाम दूर होने के बाद मौलाना ने खूब बढ़ा। बहुत कुछ पढ़ा। पढ़ने के बाद वापस आए। पढ़ाई लिखाई के बाद वह जिस इस्लाम में वापस आए वह एक खुले दिमाग वाला इस्लाम था। इसमें सब धर्मों की जगह थी। प्यार-मोहब्बत की जगह थी। इसमें कॉन्फ्लिक्ट नहीं था। इसमें क्रिटिकल थिंकिंग थी। इसमें सोचने-समझने और दिमाग का इस्तेमाल करने की गुंजाइश थी।

इतिहासकार हबीब बताते हैं कि मौलाना साफ तौर पर कहते थे कि आप कुरान को तब पढ़ सकते हैं जब आपका दिमाग खुला हो। अगर दिमाग पर ताला लगा है तो आपको कुछ समझ नहीं आएगा। मौलाना मुसलमानों को सलाह दिया करते थे कि अपना दिमाग इस्तेमाल कर, कुरान को समझने की कोशिश करें।

पैगंबर की बेअदबी पर मौलाना की राय

सैयद इरफान हबीब कहते हैं कि आज भारत या दुनिया भर में जो मुसलमान रिएक्ट करते हैं, कुरान या पैगंबर के बारे में कुछ भी कह देने पर। उन्हें लगता है कि कुरान की बेअदबी हो गई या पैगंबर के बारे में किसी ने कुछ बोल दिया, तो उनका अपमान हो गया। पाकिस्तान में ब्लासफेमी की बात होती है। फ्रांस में कार्टूनिस्ट को मारा। लेकिन मौलाना आजाद ऐसे मामलों में अलग तरह से रिएक्ट करते थे।

1920 के दशक में बहुत सी ऐसी किताबें लिखी गईं, जो पैगंबर के खिलाफ थीं। खास तौर से ‘रंगीला रसूल’ नाम की किताब को लेकर खूब बवाल हुआ था। रंगील रसूल लाहौर से प्रकाशित हुई थी। किताब को लेकर हिंदुस्तान के बहुत से हिस्सों में हिंसा हुई। इससे परेशान होकर मौलाना ने एक महत्वपूर्ण कमेंट किया।

उन्होंने कहा, “मैं उस किताब के लिखने वाले से दुखी हूं, जो इस तरह की किताब लिखी गई। लेकिन मैं उन लोगों से ज्यादा दुखी हूं, जिन्होंने हिंसा की। बेगुनाह लोगों को मारा। किसी मुसलमान को जरूरत नहीं है कि वह अपने पैगंबर की इज्जत को बचाने के लिए, किसी दूसरे की जान ले। ये कहीं इस्लाम में नहीं लिखी है। पैगंबर खुद बहुत शक्तिशाली हैं। वह अपना बचाव खुद कर लेंगे। आप कौन हैं।”

गौरतलब यह है कि मौलाना यह बात तब कही थी जब देश में मुस्लिम लीग एक्टिव था। देश में सांप्रदायिक राजनीति चल रही थी।

मदरसों की शिक्षा व्यवस्था पर उठाया था सवाल

मौलाना आज़ाद ने 100 साल पहले मदरसों की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था, “ये एक प्राचीन शिक्षा प्रणाली थी, जो अब हर दृष्टि से बेकार हो चुकी है। पढ़ाने का तरीका दोषपूर्ण है, पढ़ाए जाने वाले विषय बेकार हैं, पुस्तकों के चयन में कमी है।” (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)

NCERT की किताब से क्या हटाया गया है?

पिछले सत्र तक राजनीति विज्ञान की कक्षा 11वीं की किताब के पहले अध्याय ‘संविधान-क्या और कैसे’ में पढ़ाया जाता था कि संविधान सभा की बैठकों की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद या बीआर अंबेडकर करते थे। अब किताब से मौलाना आजाद का नाम हटा दिया गया है। अब बच्चे पढ़ेंगे- संविधान सभा की बैठकों की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद या बीआर अंबेडकर करते थे।