Santhal Pargana BJP Mandal Murmu: झारखंड का विधानसभा चुनाव जीतने का दम भर रही बीजेपी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रस्तावक मंडल मुर्मू को पार्टी में शामिल कर लिया है। लेकिन क्या मंडल मुर्मू के बीजेपी में आने से वाकई हेमंत सोरेन को नुकसान होगा? इससे पहले गमलीयेल हेम्ब्रोम को चुनाव मैदान में उतारकर बीजेपी ने यह बताने की कोशिश की थी कि वह हेमंत सोरेन को उनके चुनाव मैदान से बाहर निकलने की ज्यादा छूट नहीं देगी? लेकिन क्या वह ऐसा करने में कामयाब होगी और अगर ऐसा हुआ तो क्या INDIA गठबंधन को चुनाव में नुकसान होगा?

झारखंड में पहले चरण का मतदान 13 नवंबर को होना है और इसे देखते हुए एनडीए गठबंधन और इंडिया गठबंधन ने चुनावी रैलियां तेज कर दी हैं। एनडीए के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैली की है तो इंडिया गठबंधन के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित राजद, कांग्रेस और वाम दलों के नेता चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में मिली जीत से बीजेपी उत्साहित है और झारखंड में भी अपने उसी प्रदर्शन को दोहराना चाहती है। बीजेपी ने झारखंड के चुनाव में कथित रूप से हो रही अवैध घुसपैठ और धर्मांतरण को बड़ा मुद्दा बनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनावी रैली में मंच से इस बारे में बात की है।

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बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले झामुमो के सुप्रीमो शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन को तो चुनाव के बाद शिबू सोरेन के करीबी और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को अपने पाले में लेकर इंडिया गठबंधन को बड़ा झटका दिया था। झारखंड में बीजेपी का गठबंधन ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू), जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) से है जबकि झामुमो अपने सहयोगी दलों- कांग्रेस, आरजेडी और वाम दलों के साथ चुनाव लड़ रही है।

चौहान और सरमा को दिया जिम्मा

झारखंड के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने बहुत अनुभवी नेता लगभग डेढ़ दशक तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और मौजूदा वक्त में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी है। बीजेपी 2019 में उसे मिली हार का बदला लेना चाहती है।

सीधा सवाल यह है कि मंडल मुर्मू के हेमंत सोरेन का साथ छोड़ने से सोरेन को विधानसभा चुनाव में कितना नुकसान होगा? लेकिन उससे पहले यह जानना जरूरी होगा कि मंडल मुर्मू कौन हैं?

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मुर्मू की गाड़ी का हुआ था पीछा

याद दिलाना होगा कि 27 अक्टूबर को मंडल मुर्मू की गाड़ी का गिरिडीह की पुलिस ने पीछा किया था और उनकी गाड़ी को रोक लिया था। मुर्मू को हिरासत में भी ले लिया गया था। तब झामुमो ने आरोप लगाया था कि मंडल मुर्मू का अपहरण किया गया है। यह विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया था कि झारखंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को इसमें दखल देना पड़ा था।

कौन हैं मंडल मुर्मू?

मंडल मुर्मू मूल रूप से आदिवासी समुदाय से आते हैं। वह संथाल परगना संभाग के साहिबगंज जिले में के भोगनाडीह गांव के रहने वाले हैं। यह गांव हेमंत सोरेन के बरहेट विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। मंडल मुर्मू के बारे में कहा जाता है कि वह राजनीति में काफी दूर तक जाना चाहते हैं।

द इंडियन एक्सप्रेस को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बीजेपी में शामिल होने से पहले पार्टी ने मंडल मुर्मू को हेमंत सोरेन के खिलाफ चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था।

सिद्धो मुर्मू और कान्हो मुर्मू के वशंज हैं मंडल मुर्मू

मुर्मू की आदिवासी इलाकों में पहचान इस वजह से है क्योंकि वह आदिवासी समुदाय के आइकॉन सिद्धो मुर्मू और कान्हो मुर्मू के वंशज हैं। सिद्धो मुर्मू और कान्हो मुर्मू ने 1857 के विद्रोह से दो साल पहले ही 1855 में अंग्रेजों के खिलाफ “संथाल हुल (विद्रोह)” की अगुवाई की थी और इसमें शहादत दी थी।

भोगनाडीह गांव संथाल हुल का केंद्र था और जब यह विद्रोह तेज हुआ और अंग्रेजों ने इसे कुचल दिया। हर साल झारखंड में 30 जून को “हूल दिवस” ​​के रूप में मनाया जाता है और इसे विद्रोह की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। सिद्धो मुर्मू की आदिवासी समुदाय में अहमियत आप इससे समझ सकते हैं कि झारखंड में हर साल 11 अप्रैल को सिद्धो मुर्मू की जयंती के रूप में मनाया जाता है। अब देखना होगा कि बीजेपी संथाल परगना के इलाके में मंडल मुर्मू का कितने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर सकती है?

संथाल परगना के इलाके में 20 नवंबर को वोटिंग होनी है। यह इलाका इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके की 18 सीटों में से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी सात सीटें झामुमो ने जीत ली थी और कुल 18 में से 9 सीटों पर उसने जीत हासिल की थी। कांग्रेस को यहां चार सीटों पर जीत मिली थी जबकि बीजेपी भी सिर्फ चार सीटें ही जीती थी। बाकी सीटें अन्य के खाते में गई थीं।

गमलीयेल हेम्ब्रोम के जरिये भी घेरा

बीजेपी ने हेमंत सोरेन को घेरने के लिए एक और रणनीति पर काम किया है। वह यह कि बीजेपी ने सोरेन की विधानसभा सीट बरहेट में गमलीयेल हेम्ब्रोम को मैदान में उतारा है। गमलीयेल हेम्ब्रोम के बारे में कहा जाता है कि वह ईसाई धर्म छोड़कर आदिवासी बन गए हैं और संथाल परगना के इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठन धर्मांतरण के कारण आदिवासियों की संख्या में कमी होने के खिलाफ अभियान चला रहे हैं और धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासियों से घर वापसी का आह्वान कर रहे हैं।

बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ किया आंदोलन

गमलीयेल हेम्ब्रोम ने 2019 में इसी सीट से आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन तब वह अपनी जमानत नहीं बचा सके थे। हेमब्रोम ने जब संथाल परगना के इलाके में आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में काम करना शुरू किया तो उन्होंने घर वापसी की और तब से इस क्षेत्र में आदिवासियों को धर्म परिवर्तन करने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गमलीयेल हेम्ब्रोम ने बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व भी किया है और संथाल परगना के इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ बड़ा मुद्दा है।

बरहेट में हैं 50 प्रतिशत से ज्यादा आदिवासी

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बरहेट निर्वाचन क्षेत्र में आदिवासियों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है और मुस्लिम 15 प्रतिशत हैं। 1990 से इस सीट पर झामुमो का कब्जा है जबकि सोरेन खुद दो बार 2014 और 2019 में इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन इस बार बीजेपी चंपई सोरेन, सीता सोरेन, मंडल मुर्मू और गमलीयेल हेम्ब्रोम जैसे आदिवासी चेहरों के सहारे और घुसपैठ और धर्मांतरण के मुद्दे के जरिये बरहेट और संथाल परगना के इलाके में इंडिया गठबंधन और हेमंत सोरेन को चुनौती दे रही है। देखना होगा कि उसे इसमें कितनी कामयबी मिलेगी?