भारतीय राजनीति के गलियारों में इन दिनों कई स्तरों पर हलचल है। क्षेत्रीय राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए हेमंत सोरेन अब झारखंड से बाहर बंगाल और बिहार में जमीन तलाश रहे हैं। वहीं बिहार में जीतन राम मांझी ने राज्यसभा सीट और कमीशन के खुलासे से गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। उत्तर प्रदेश में विधायकों की गुटबाजी और क्रिसमस पर हुए विवादों ने सत्ता पक्ष के लिए नई चुनौतियां खड़ी की हैं।
हेमंत की हसरत
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी पार्टी का दूसरे राज्यों में भी विस्तार करने की हसरत पाले हैं। राजनीतिक अस्तित्व के विस्तार के लिए ऐसी हसरत स्वाभाविक है। फिलहाल हेमंत सोरेन की नजर पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर टिकी है। पश्चिम बंगाल उनका पड़ोसी राज्य तो है ही, यहां कुछ इलाकों में आदिवासी आबादी भी अच्छी-खासी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा का अभी कांग्रेस, राजद और वाम दलों के साथ गठबंधन है। इससे पहले सोरेन ने बिहार चुनाव में उम्मीदवार उतारने की भी कोशिश की थी, पर तेजस्वी यादव ने उनकी इन कोशिशों को परवान नहीं चढ़ने दिया जबकि वे दो सीटों के लिए भी तैयार थे। छत्तीसगढ़ और ओडिशा में भी आदिवासी आबादी है। बहरहाल, अब हेमंत ने ममता बनर्जी से संपर्क साधा है। वे तो प्रतीकात्मक भागीदारी के लिए भी तैयार हैं, यानी तीन-चार सीटें ही मिल जाएं तो वे अपनी राजनीतिक गाड़ी आगे बढ़ाएंगे। बंगाल में आदिवासी आबादी करीब छह फीसद है। इनमें संथाल आदिवासी ज्यादा हैं। हेमंत ने संथाल आदिवासियों के लिए कई काम किए हैं। इसी को आधार बना कर वे आगे बढ़ना चाहेंगे। अगर ममता राजी नहीं हुईं तो हेमंत कांग्रेस से हाथ मिलाना चाहेंगे। सवाल यह है कि बिहार की तरह बंगाल में भी भाव न मिला तो क्या अपनी हसरत को परवान चढ़ाने के लिए अकेले अपने दम पर लड़ेंगे?
सियासी मोहरा
जीतन राम मांझी ने मांग की है कि उन्हें राज्यसभा की एक सीट चाहिए। अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो वे राजग से अलग हो जाएंगे। राज्यसभा की सीट बिहार में उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान भी चाहते हैं। अगले साल अप्रैल में राज्यसभा चुनाव होना है। माना जा रहा है कि पांच में से तीन सीट भाजपा को और दो जद (एकी) को मिलेंगी। भाजपा ने लोकसभा चुनाव हारने वाले कुशवाहा को पिछले साल राज्यसभा भेजा था। उस सीट का कार्यकाल अप्रैल में खत्म हो जाएगा। संकेत हैं कि विधान परिषद की जो सीट मंगल पांडेय के इस्तीफे से खाली हुई है, भाजपा वह कुशवाहा के बेटे को देगी। इस नाते कुशवाहा को राज्यसभा में फिर मौका मिलना मुश्किल है। इसी तरह चिराग को भी सीट नहीं देना चाहती भाजपा। शायद इसलिए मांझी को मोहरा बनाया जा रहा है। वरना मांझी तो खुद को प्रधानमंत्री का चेला बताते हैं।
क्रिसमस पर अप्रिय विवाद
इस बार क्रिसमस के त्योहार पर सत्ता पक्ष के के खाते में एक और विवाद जुड़ गया है। कई जगहों पर त्योहार मनाते ईसाई समुदाय के लोगों पर हमले ने आशंका पैदा कर दी कि यह प्रवृत्ति और तेज न हो जाए। आरोप है कि कई दुकानदारों को क्रिसमस से संबंधित सामग्री बेचने से भी रोका गया। इस मसले पर विपक्ष ने सरकार को आड़े हाथ लेना शुरू कर दिया है। कुछ दक्षिण-पंथी तबके का कहना है कि इस पर्व काभारतीय सभ्यता-संस्कृति से कोई नाता नहीं है। विपक्ष का कहना है कि भारतीय संस्कृति समरसता की रही है, यहां इस तरह की हरकत स्वीकार्य नहीं है। भाजपा शासित राज्य में ऐसे हमले सामने आ रहे हैं, और प्रतीत हो रहा है कि उन्हें किसी तरह का भय नहीं है।
बैठक की तपिश
उत्तर प्रदेश में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। पर लखनऊ के सियासी गलियारों में ब्राह्मण विधायकों की एक बैठक ने तपिश बढ़ा दी है। दरअसल इसी मंगलवार को कुशीनगर के भाजपा विधायक पंचानंद पाठक के लखनऊ स्थित आवास पर सूबे के ब्राह्मण विधायकों की एक बैठक हुई। विधानसभा सत्र के दौरान इस तरह की बैठक के आयोजन की पहले से किसी को भनक नहीं लगी। पाठक को योगी आदित्यनाथ का विरोधी माना जाता है। बैठक में करीब 40 विधायक जुटे। रात्रि भोज भी हुआ। चर्चा है कि बैठक का एजंडा भाजपा में ब्राह्मणों की अनदेखी था। हालांकि बाद में पंचानंद पाठक ने सफाई दी कि उन्होंने अपनी पत्नी के जन्मदिन पर समारोह का आयोजन किया था। यह सफाई किसी के गले नहीं उतरी क्योंकि ऐसा देखा नहीं गया है कि किसी के जन्मदिन के समारोह में केवल एक जाति के लोगों को आमंत्रित किया गया हो। किसी ने इसे मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के खिलाफ असंतोष का इजहार बताया। वहीं, किसी ने आरोप लगाया कि यह दिल्ली के इशारे पर हुआ शक्ति-प्रदर्शन था। चर्चा है कि इस बैठक में मौजूद विधायकों से कोरे कागज पर हस्ताक्षर भी कराए गए। इस मसले पर विवाद बढ़ा, विपक्ष ने तंज कसे तो भाजपा के नए सूबेदार पंकज चौधरी सक्रिय हुए। उन्होंने गुरुवार को चेतावनी जारी कर दी कि पार्टी के लोग जातीय विभाजन से बचें और सामाजिक समरसता की नीति पर ही चलें।
मांझी का सच
जीतन राम मांझी बेबाक बोलते हैं। बिना लाग-लपेट। किसी को अच्छा लगे या बुरा। उनकी पार्टी हिंदुस्तान आवामी मोर्चा राजग में है। बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके मांझी इस समय केंद्र सरकार में मंत्री हैं। इसी हफ्ते मांझी ने खुलासा किया कि सभी सांसद और विधायक क्षेत्र विकास निधि से कमीशन खाते हैं। खुद भी कमीशन लेने की बात स्वीकार की और बताया कि उन्होंने कमीशन की यह राशि पार्टी के लिए इस्तेमाल की। अपनी पार्टी के नेताओं से उन्होंने कहा कि वे इसी पैसे से कार खरीद लें। मांझी ने अपनी पार्टी के विधायकों से कहा कि उन्हें दस फीसद कमीशन न मिले तो कम से कम पांच फीसद तो लेना ही चाहिए। एक सांसद को हर साल पांच करोड़ मिलते हैं। दस फीसद के हिसाब से 50 लाख कमीशन बनता है। मांझी का बेटा संतोष कुमार सुमन बिहार सरकार में मंत्री है और पार्टी के अध्यक्ष भी वही हैं। मांझी ने अपने बेटे से भी कहा कि वह कमीशन लेने में संकोच न करे, क्योंकि सभी लेते हैं। मांझी के बयान से भाजपा की हालत पतली हो गई है। तभी तो दिलीप जायसवाल ने इसे मांझी की निजी राय बताकर पल्ला झाड़ लिया।
