हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। वोटिंग 1 अक्टूबर को होगी और नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे। बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के ल‍िए मैदान में उतरी हुई है, जबक‍ि लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्‍साह‍ित कांग्रेस भी वर्षों बाद सत्‍ता में वापसी की आस के साथ चुनाव लड़ रही है। इन्‍हीं चुनौत‍ियों और उम्‍मीदों के बीच हम यह बता रहे हैं क‍ि 2024 का हर‍ियाणा व‍िधानसभा चुनाव, 2019 की तुलना में क‍िन मायनों में अलग है।

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी और उसने जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं और बहुमत का आंकड़ा 46 है।

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी की सीटें घटी, कांग्रेस की बढ़ी

राजनीतिक दलविधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट लोकसभा चुनाव 2014 में मिली सीट विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीटलोकसभा चुनाव 2019 में मिली सीट लोकसभा चुनाव 2024 में मिली सीट
कांग्रेस 15131 05
बीजेपी 47740105

जातीय समीकरण और चेहरे का मुद्दा

सबसे पहले बात करते हैं जातीय समीकरण और चेहरों के बारे में। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर थे जबकि कांग्रेस ने किसी भी नेता को अपना चेहरा नहीं बनाया था। हालांकि पार्टी के टिकट वितरण में बड़ी भूमिका पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की रही थी।

वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी मोल नहीं लेगी बीजेपी। (Source-FB)

हरियाणा की राजनीति में जाट बनाम गैर जाट का समीकरण हमेशा से ही हावी रहा है। 2014 में जब बीजेपी हरियाणा की सत्ता में आई तो उसने मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी। इस साल मार्च में जब खट्टर को उनके पद से हटाया गया तो फिर एक और गैर जाट नेता और कुरुक्षेत्र के तत्कालीन सांसद नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया।

विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने नायब सिंह सैनी को चेहरा बनाया है जबकि कांग्रेस ने गुटबाजी के डर से किसी भी नेता को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। लेकिन कांग्रेस की ओर से हुड्डा के और बीजेपी की ओर से सैनी के फ्रंट फुट पर होने की वजह से चुनाव में जाट बनाम गैर जाट की आहट सुनाई दे रही है।

2019 के मुकाबले कितने बदल गए राजनीतिक समीकरण?

अब बात करते हैं राजनीतिक समीकरणों की। राजनीतिक समीकरण देखें तो बीजेपी ने पुराने साथी जेजेपी को छोड़ कर गोपाल कांडा की हर‍ियाणा लोकह‍ित पार्टी (हलोपा) से गठबंधन क‍िया है। कांग्रेस अकेले दम पर लड़ रही है। 2019 का विधानसभा चुनाव दोनों दलों ने अकेले लड़ा था।

चुनाव के नतीजे आए तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही बहुमत से दूर थे। बीजेपी के पास ज्यादा सीटें थी, इसलिए उसने जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के वक्‍त जेजेपी के साथ गठबंधन तोड़ द‍िया था। अब जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला भी कह चुके हैं कि बीजेपी के साथ गठबंधन करना गलती थी।

नायब सिंह सैनी के कंधों पर बीजेपी को जीत दिलाने की बड़ी जिम्मेदारी है। (Source-NayabSainiOfficial)

पिछली और इस बार क्या है छोटे दलों की स्थिति?

पिछली बार अकेले चुनाव लड़ने वाली इनेलो इस बार बसपा के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में है। पिछली बार जेजेपी ने अकेले चुनाव लड़कर 10 सीटें जीती थी लेकिन इस बार पार्टी में बगावत, नेताओं के इस्तीफे और लोकसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन की वजह से जेजेपी पिछले प्रदर्शन के आसपास पहुंच पाएगी या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।

हरियाणा में छोटे दलों को पिछले विधानसभा चुनावों में मिली सीटें

राजनीतिक दलविधानसभा चुनाव 2009 में मिली सीट विधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीट
कांग्रेस 401531
बीजेपी 44740
इनेलो31191
जेजेपी10
हजकां(बीएल)62
अन्य978

बीजेपी ने हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) के साथ गठबंधन किया है। हलोपा सुप्रीमो गोपाल कांडा एयर होस्टेस गीतिका शर्मा आत्महत्या मामले में आरोपी थे। पिछले चुनाव में अपनी पार्टी से अकेले कांडा व‍िधायक (सिरसा विधानसभा सीट से) चुने गए थे। इस बार उन्होंने सिरसा के साथ ही रानियां सीट से भी अपनी पार्टी के लिए टिकट मांगा है और यहां से भतीजे धवल कांडा को उम्मीदवार घोषित कर दिया है।

2019 और 2024 के चुनाव में मुद्दों का अंतर

2019 और 2024 के चुनावी माहौल में सबसे बड़ा अंतर किसान आंदोलन का भी है। 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा के किसानों के बीच बीजेपी का विरोध नहीं देखने को मिला था लेकिन इस बार किसान लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के खिलाफ दिखाई दिए हैं।

दुष्यंत चौटाला, अभय चौटाला और अरविंद केजरीवाल। (Source-PTI)

किसानों के विरोध के अलावा पिछली बार महिला पहलवानों के यौन शोषण का मुद्दा भी नहीं था लेकिन इस बार यह मुद्दा भी विधानसभा चुनाव में एक चुनावी मुद्दे का रूप ले सकता है। ओल‍िंंप‍िक में व‍िनेश फोगाट के अयोग्‍य घोष‍ि‍त होने के बाद इस पर हुई राजनीत‍ि से भी ऐसे ही संकेत म‍िलते हैं।

जाट आरक्षण आंदोलन में हुई हिंसा, अग्निवीर योजना

पिछले विधानसभा चुनाव में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा एक बहुत बड़ा मुद्दा था। इस वजह से पूरे हरियाणा में सामाजिक तनाव दिखाई दिया था।

2019 के विधानसभा चुनाव में सेना में भर्ती के लिए लाई गई अग्निवीर योजना कोई मुद्दा नहीं थी क्योंकि यह योजना तब आई ही नहीं थी लेकिन इस बार अग्निवीर योजना को कांग्रेस मुद्दा बनाएगी। हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में यह मुद्दा प्रभावी रह सकता है।

क्या है बीजेपी और कांग्रेस की स्थिति?

2019 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के हौसले बुलंद थे क्योंकि तब उसने राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस की स्थिति खराब थी क्योंकि उसके खाते में एक भी सीट नहीं आई थी।

हरियाणा कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा। (Source- /bhupinder.s.hooda/FB)

लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत की वजह से 2019 के विधानसभा चुनाव में ऐसा राजनीतिक माहौल था कि भाजपा को राज्य की सत्ता में वापसी करने में बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है क्योंकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी है और अपना वोट शेयर बढ़ाया है। साथ ही, भाजपा के कई स्‍थानीय नेता अभी से बगावती तेवर में हैं।

खट्टर सरकार में मंत्री रहे राव नरबीर स‍िंंह ने पार्टी का ट‍िकट नहीं म‍िलने की स्‍थ‍ित‍ि में भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर द‍िया है और यहां तक कह द‍िया क‍ि पार्टी को कई बड़े बदलाव करने होंगे, नहीं तो दक्ष‍िण हर‍ियाणा में बीजेपी साफ हो जाएगी। उधर, एक और द‍िग्‍गज भाजपाई राव इंद्रजीत सिंह ने भी अपनी बेटी को हर हाल में चुनाव लड़वाने की घोषणा कर रखी है।

कांग्रेस में भी गुटबाजी तेज है। कुमारी सैलजा और दीपेंद्र हुड्डा अलग-अलग यात्राएं न‍िकाल रहे हैं। सैलजा का मानना है क‍ि पार्टी में भूप‍िंंदर हुड्डा का वर्चस्‍व है, ज‍िसे खत्‍म करने की जरूरत है।

ऐसे में राजनीतिक समीकरण स्पष्ट रूप से यही कहते हैं कि राज्य की चुनावी लड़ाई काफी जबरदस्त होने वाली है और बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है।