हरियाणा में बीजेपी को अपनी पहली सूची जारी होने के बाद से ही लगातार बड़े नेताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। कई विधानसभा सीटों पर पार्टी के पुराने नेता और कार्यकर्ता बगावत पर उतर आए हैं। हालांकि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, प्रदेश अध्यक्ष मोहनलाल बडोली सहित पार्टी के तमाम बड़े नेता अपने बागी नेताओं को मनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन बगावती नेता पीछे हटने को तैयार नहीं दिखते।
हरियाणा बीजेपी और बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी इस बात को जानता है कि विधानसभा चुनाव में इस बार एक-एक वोट के लिए कांटे की लड़ाई है और ऐसे में बागी नेताओं को नहीं मनाया गया तो राज्य में फिर से सरकार बनाने का सपना अधूरा रह सकता है।
लोकसभा चुनाव के नतीजे हरियाणा में बीजेपी के लिए खराब रहे थे। जबकि इन नतीजों के बाद से ही कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने का दावा कर रही है।
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को हुआ नुकसान
राजनीतिक दल | विधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2014 में मिली सीट | विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2019 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2024 में मिली सीट |
कांग्रेस | 15 | 1 | 31 | 0 | 5 |
बीजेपी | 47 | 7 | 40 | 10 | 5 |
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा, बीजेपी का घटा
राजनीतिक दल | लोकसभा चुनाव 2019 में मिले वोट (प्रतिशत में) | लोकसभा चुनाव 2024 में मिले वोट (प्रतिशत में) |
कांग्रेस | 28.51 | 43.67 |
बीजेपी | 58.21 | 46.11 |
आईए जानते हैं कि ऐसे पांच बड़े नेता कौन से हैं जिनकी बगावत से पार्टी को हरियाणा में नुकसान हो सकता है?
बड़ा सियासी कद है रणजीत सिंह चौटाला का
हरियाणा में बीजेपी से बगावत करने वाले बड़े नेताओं में सबसे पहला नाम सिरसा जिले की रानियां विधानसभा सीट से चुनाव जीते पूर्व कैबिनेट मंत्री रणजीत सिंह चौटाला का है।
रणजीत चौटाला देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के बेटे हैं और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के भाई हैं। इस लिहाज से हरियाणा की राजनीति में रणजीत चौटाला का सियासी कद जरूर है। चौटाला ने पिछला विधानसभा चुनाव रानियां सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता था और बीजेपी की सरकार को समर्थन दिया था।
बीजेपी ने रणजीत चौटाला के कद को देखते हुए उन्हें हरियाणा में बिजली जैसा अहम महकमा दिया था और इस साल मार्च में उन्हें पार्टी में शामिल किया और हिसार लोकसभा सीट से टिकट भी दिया था। हालांकि वह हिसार में हार गए थे।
रणजीत चौटाला ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह रानियां सीट से किसी भी सूरत में चुनाव जरूर लड़ेंगे। यहां से बीजेपी ने शीशपाल कांबोज को उम्मीदवार बनाया है। शीशपाल कांबोज को पार्टी ने टिकट यह सोच कर दिया है कि रानियां विधानसभा सीट पर कांबोज समुदाय के लगभग 25000 मतदाता हैं।

चौटाला के पास सियासी पहचान का संकट नहीं
बीजेपी ने पिछले 5 सालों में खुद ही रणजीत चौटाला का सियासी कद बढ़ाया था और चूंकि वह हिसार से लोकसभा का चुनाव लड़े हैं और देवीलाल के परिवार से आते हैं, इसलिए रणजीत सिंह चौटाला के पास सियासी पहचान का कोई संकट हरियाणा में नहीं है।
विशेषकर हिसार और सिरसा के इलाकों में उनकी अच्छी-खासी पहचान है। अगर बीजेपी उन्हें मनाने में कामयाब नहीं हुई और उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा तो वह रानियां सीट पर बीजेपी का नुकसान करेंगे ही सिरसा और हिसार में भी उनके समर्थक बीजेपी से किनारा कर सकते हैं।
हिसार सीट से सावित्री जिंदल को मना पाएगी बीजेपी?
बीजेपी के लिए एक और बड़ी मुश्किल हिसार विधानसभा सीट पर होने वाली है। यहां से कुरुक्षेत्र से बीजेपी के सांसद नवीन जिंदल की मां और हरियाणा सरकार की पूर्व कैबिनेट मंत्री सावित्री जिंदल टिकट मांग रही थीं। सावित्री जिंदल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। पार्टी उन्हें मनाने की कोशिश कर रही है क्योंकि जिंदल परिवार आर्थिक रूप से काफी सक्षम है।
सावित्री जिंदल और उनके पति ओपी जिंदल हिसार से विधायक रह चुके हैं। ओपी जिंदल और सावित्री जिंदल भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुवाई वाली हरियाणा सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।
बीजेपी के लिए हिसार विधानसभा सीट पर मुश्किल यह थी कि वह यहां से अपने कैबिनेट मंत्री कमल गुप्ता का टिकट नहीं काट सकती थी।

बीजेपी को सावित्री जिंदल के साथ ही कुरुक्षेत्र से अपने सांसद नवीन जिंदल की भी नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। अगर नवीन जिंदल अपनी मां के समर्थन में आकर चुनाव प्रचार करेंगे तो निश्चित रूप से इससे हिसार और कुरुक्षेत्र के बीजेपी के समर्थकों में अच्छा संदेश नहीं जाएगा।
बवानी खेड़ा से विशंभर वाल्मीकि मानेंगे?
हरियाणा में एक और सीट बवानी खेड़ा पर बीजेपी को मुश्किल होगी। बीजेपी ने यहां से नायब सिंह सैनी सरकार में राज्य मंत्री का दायित्व संभाल रहे विशंभर वाल्मीकि की जगह पर कपूर वाल्मीकि को टिकट दिया है। हरियाणा की दलित राजनीति में विशंभर वाल्मीकि ऐसे नाम हैं जिनकी चर्चा बवानी खेड़ा विधानसभा सीट से बाहर भी होती है।
हरियाणा की राजनीति में दलित समुदाय की आबादी 21% है और विशंभर वाल्मीकि का टिकट कटने के बाद उनके समर्थकों ने हरियाणा में कई जगहों पर जबरदस्ती नाराजगी जताई है। विशंभर वाल्मीकि का बवानी खेड़ा हल्के और वाल्मीकि समाज के लोगों में अच्छा प्रभाव है। अगर विशंभर वाल्मीकि नहीं माने और चुनाव लड़े तो बीजेपी को बवानी खेड़ा में और वाल्मीकि समुदाय के वोटों का नुकसान हो सकता है।
ओबीसी चेहरा हैं कर्ण देव कांबोज
बीजेपी के एक और नेता कर्ण देव कांबोज ने पार्टी में अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। वह इंद्री विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे थे। बीजेपी ने यहां से रामकुमार कश्यप को टिकट दिया है।
बीते दिन इंद्रदेव कांबोज के द्वारा बगावत करने के बाद जब मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी उन्हें मनाने के लिए पहुंचे तो कांबोज ने उनसे हाथ मिलाने तक से इनकार कर दिया। कांबोज हरियाणा में बीजेपी ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष थे। उन्होंने इस्तीफा देने के बाद कहा कि बीजेपी में अब गद्दारों को तवज्जो दी जा रही है।
बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में पहली लिस्ट में ओबीसी समुदाय में सबसे ज्यादा 17 टिकट दिए हैं और कर्ण देव कांबोज ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष रहते हुए पूरे हरियाणा में पार्टी के लिए काम कर रहे थे। उन्हें नायब सिंह सैनी के बाद पार्टी का ओबीसी चेहरा भी माना जाता था।
वह हरियाणा की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। अगर कांबोज विधानसभा चुनाव लड़े तो बीजेपी को ओबीसी मतदाताओं की बेरुखी का सामना करना पड़ सकता है। 2014 में कांबोज इंद्री से ही चुनाव जीते थे लेकिन 2019 में पार्टी ने उन्हें रादौर सीट से लड़ा दिया था लेकिन तब वह चुनाव हार गए थे।
कांबोज के सियासी कद को देखते हुए यह कहा जा रहा है कि बीजेपी इंद्री सीट से उम्मीदवार बदलने पर विचार कर सकती है।

सोनीपत: पूर्व मंत्री कविता जैन बोलीं- लड़ूंगी चुनाव
सोनीपत विधानसभा सीट से बीजेपी को अपनी पूर्व मंत्री कविता जैन की बगावत का सामना करना पड़ सकता है। बीजेपी ने सोनीपत से कुछ महीने पहले कांग्रेस छोड़कर आए सोनीपत के मेयर निखिल मदान को टिकट दिया है। लेकिन पूर्व मंत्री कविता जैन और उनके समर्थकों ने इस फैसले के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दिया है।
कविता जैन ने पार्टी नेतृत्व से कहा है कि वह 8 सितंबर को बैठक करेंगी। उन्होंने पार्टी को अल्टीमेटम भी दिया है कि तब तक भाजपा अपने उम्मीदवार को बदल दे, वरना वह अपने समर्थकों से बातचीत कर आगे का फैसला लेंगी।
पिछले विधानसभा चुनाव में कविता जैन को यहां से 30 हजार से ज्यादा वोटों से हार मिली थी। कविता जैन ने सोनीपत से 2009 और 2014 में विधानसभा का चुनाव जीता था। उनके पति राजीव जैन जाना-पहचाना नाम हैं। राजीव जैन केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मीडिया सलाहकार रह चुके हैं।
कविता जैन सियासी रूप से काफी सक्रिय हैं और हरियाणा बीजेपी में पार्टी का महिला चेहरा भी मानी जाती हैं। अगर वह विधानसभा का चुनाव लड़ती हैं तो सोनीपत सीट पर बीजेपी को नुकसान हो सकता है।
इन बागी नेताओं को मनाने की बड़ी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पार्टी नेतृत्व की है। देखना होगा कि क्या बीजेपी इन नेताओं को मना पाएगी?