हरियाणा में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा ओबीसी-ब्राह्मण-दलित सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले पर दांव लगा रही है। ओबीसी मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और ब्राह्मण भाजपा प्रमुख मोहन लाल बडौली के बाद पार्टी ने दलित महासचिव कृष्ण बेदी को नियुक्त किया है। मोहन लाल बडौली को पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद महासचिव का पद खाली हो गया था।

हाल के लोकसभा चुनावों में जाट और दलित मतदाताओं के कांग्रेस के पक्ष में एकजुट होने की पृष्ठभूमि में कृष्ण बेदी की नियुक्ति महत्वपूर्ण मानी जा रही है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के पक्ष में जाटों और दलितों के एकजुट होने से 2019 के लोकसभा चुनावों की तुलना में भाजपा का वोट शेयर 58.21 प्रतिशत से घटकर 46.11 प्रतिशत हो गया, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 28.51 प्रतिशत से बढ़कर 43.67 प्रतिशत हो गया।

हरियाणा में ओबीसी मतदाता 30 प्रतिशत से अधिक

हरियाणा में ओबीसी मतदाता 30 प्रतिशत से अधिक, दलित लगभग 20 प्रतिशत और ब्राह्मण लगभग 12 प्रतिशत हैं। ओबीसी-ब्राह्मण-दलित के कॉम्बिनेशन से भाजपा चुनाव में जीत की उम्मीद जता रही है। दलित मतदाताओं के वोट में शिफ्ट के परिणामस्वरूप ही हाल ही में हुए आम चुनाव में कांग्रेस की सीटें 0 से 5 हो गईं, जबकि भाजपा की सीटें 10 से 5 रह गईं।

इतना ही नहीं, हाल के आम चुनाव के दौरान हरियाणा में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित 17 विधानसभा सीटों में से अधिकांश पर सत्तारूढ़ भाजपा पीछे रही थी।

मनोहर लाल खट्टर के वफादार बेदी को महासचिव नियुक्त किया गया

लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के परिणामस्वरूप पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के वफादार बेदी को महासचिव नियुक्त किया गया है। सीएम नायब सिंह सैनी, बीजेपी प्रमुख मोहन लाल बडोली और नवनिर्वाचित महासचिव कृष्ण बेदी के बीच कॉमन बात यह है कि वे सभी पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के वफादार हैं। सैनी और बेदी दोनों 2014 से 2019 तक खट्टर के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे थे। बेदी खट्टर के राजनीतिक सचिव भी रहे हैं।

राजनीतिक दलविधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट लोकसभा चुनाव 2014 में मिली सीट विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीटलोकसभा चुनाव 2019 में मिली सीट लोकसभा चुनाव 2024 में मिली सीट
कांग्रेस 15131 05
बीजेपी 47740105

विधानसभा चुनाव में नये समीकरण साधने में जुटी भाजपा

दरअसल, जाटों की नाराजगी सामने आने के बाद बीजेपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नये सामाजिक समीकरण साधने में जुटी है। भाजपा हरियाणा में काफी समय से गैर जाट वोटर्स को लामबंद करने में जुटी है। ऐसे में अब जाट वोटर्स की काट के लिए बीजेपी ने ओबीडी फाॅर्मूला तैयार किया है जिसमें ओबीसी, ब्राह्मण और दलित शामिल हैं।

हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले ओबीसी मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए भाजपा सरकार ने ओबीसी क्रीमी लेयर की वार्षिक आय सीमा 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दी है और पंचायतों, नगर निगमों और नगर पालिकाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ा दिया है।

ओबीसी पर बीजेपी का फोकस

लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने का लक्ष्य रखते हुए भाजपा ने ओबीसी को रियायतें प्रदान करने की अपनी मौजूदा रणनीति कायम रखी है। कल्याणकारी योजनाओं को बढ़ाने और राज्य भर में समुदायों को अधिक रियायतें देने की पार्टी की रणनीति 4 जून को लोकसभा चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद शुरू हुई, जिसमें पार्टी को 10 संसदीय सीटों में से पांच में कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा। यह एक दशक में राज्य में लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन था।

भाजपा ने मार्च में दुष्यन्त चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) से नाता तोड़ लिया और यह देखते हुए कि जाट वोट अब अली कांग्रेस और अभय चौटाला के नेतृत्व वाले आईएनएलडी के बीच विभाजित हो जाएंगे। ऐसे में भाजपा नेताओं का मानना ​​है कि अन्य समुदायों को एकजुट करना अधिक विवेकपूर्ण रणनीति है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “ऐसे परिदृश्य में पार्टी के लिए अन्य सभी समुदायों को एकजुट करना राजनीतिक रूप से फायदेमंद होगा क्योंकि सरकार बनाने के लिए बीजेपी को कुल वोटों का सिर्फ 38-40% वोट चाहिए।”