गोविंदा का एक दशक से अधिक समय तक बॉलीवुड में दबदबा रहा। कभी वह हिंदी सिनेमा में कॉमेडी का पर्याय माने जाते थे। हालांकि अब वह अपने करियर के अवसान की तरफ बढ़ रहे हैं। पिछले चार वर्षों से वह किसी फिल्म में नजर नहीं आए। उनकी आखिरी फिल्म साल 2019 में रिलीज हुई ‘रंगीला राजा’ थी। हालांकि जब वह अपने करियर के उरूज पर थे तो उनके हाथ में एक साथ 49-49 फिल्में हुआ करती थीं।

ये सही है कि गोविंदा के माता-पिता बहुत पहले से मनोरंजन की दुनिया में सक्रिय थे। लेकिन गोविंदा के जन्म से कुछ वर्ष पहले ही परिवार आर्थिक रूप से बर्बादी के कगार पर पहुंच गया था। गोविंदा का जन्म 21 दिसंबर, 1963 को हुआ था। उनके पिता अरुण आहूजा 1940 के दशक में स्ट्रगलिंग एक्टर रहे। मां निर्मला देवी शास्त्रीय गायिका और अभिनेत्री दोनों थीं। आहूजा परिवार मूलरूप से पंजाबी था लेकिन बहुत पहले महाराष्ट्र में आ बसा था।

बारिश में भी छाता नहीं खरीदता था गोविंदा का परिवार

गोविंदा के जन्म से पहले अरुण आहूजा ने बतौर प्रोड्यूसर काम शुरू किया था, लेकिन तब तक उनके पैसों से बनी एकमात्र फिल्म फ्लॉप रही थी। उस नुकसान को उठाने में असमर्थ गोविंदा के पिता का स्वास्थ्य खराब पहने लगा। आर्थिक स्थिति बिगड़ी तो मुंबई के पॉश कार्टर रोड पर एक बंगले में रहने वाले आहूजा परिवार को विरार (तब शहर के बाहर का एक अविकसित इलाका) में शिफ्ट होने के लिए मजबूर होना पड़ा। वहीं गोविंदा का जन्म हुआ।

छह बच्चों में सबसे छोटे गोविंदा को परिवार में प्यार से चीची बुलाया जाने लगा। पंजाबी में छोटी उंगली को चीची कहते हैं। आहूजा परिवार घर में पंजाबी बोलता था। गोविंदा फिल्मों के बारे में सुनते हुए बड़े हो रहे थे। चूंकि उनके पिता काम करने में असमर्थ थे, इसलिए मां निर्मला देवी ने उस कठिन समय में बच्चों को पाला। गोविंदा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि तब उनका परिवार बारिश में भी छाता नहीं खरीदता था। वह याद करते हैं, “हम लोग सोचते थे कि बारिश केवल चार महीने तक रहेगी, तो पैसा क्यों बर्बाद करें?”

राशन दुकान पर झेलना पड़ता था अपमान

गोविंदा बचपन अत्यंत गरीबी में बीता। परिवार पर बेतहाशा कर्ज चढ़ चुका था। बिल न चुकाने का अपमान गोविंदा अब तक नहीं भूले हैं। वह याद करते हैं, “बनिया मुझे घंटों खड़ा रखता था क्योंकि वह जानता था कि मैं सामान उधार में लूंगा। एक बार मैंने दुकान पर जाने से मना कर दिया। मेरी मां रोने लगी और मैं भी उसके साथ रोने लगा।”

गोविंदा ने कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया, लेकिन नौकरी पाने में असफल रहे। ताज महल होटल में मैनेजर का पद खाली था। लेकिन गोविंदा को मौका नहीं मिला क्योंकि उनकी अंग्रेजी अच्छी नहीं थी। उनके पिता ने फिल्मों में जाने का सुझाव दिया। उन्हीं दिनों गोविंदा ने सैटरडे नाइट फीवर फिल्म देखी और उन पर डांस उनका जुनून सवार हो गया। वह घंटों प्रैक्टिस करते। बाद में वीएचएस कैसेट पर अपना एक प्रोमो प्रसारित किया गया। जल्द ही उन्हें एक उर्वरक का विज्ञापन मिल गया। कुछ समय बाद वह ऑल्विन (इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी) के एक विज्ञापन में नजर आए।

1980 के दशक में वह फिल्मी दुनिया में पैर जमाने की कोशिश कर रहे थे। गोविंदा को पहले साइड एक्टर का रोल मिला। वह स्वर्ग, इल्ज़ाम, खुदगर्ज, जीते हैं शान से जैसी लोकप्रिय फिल्मों में राजेश खन्ना, दिलीप कुमार और धर्मेंद्र सहित सबसे बड़े सितारों के साथ स्क्रीन शेयर करते नजर आए। उन्हें पहला लीड रोल ‘लव 86’ में मिला। जून 1985 में अपनी फिल्म लव 86 की शूटिंग शुरू की। जुलाई के मध्य तक उन्होंने 40 अन्य प्रोजेक्ट के लिए साइन कर दिया।

हालांकि शुरुआत की उनकी दो फिल्में आर्थिक रूप से सफल नहीं रही थीं। तब उन्होंने टेलीविज़न में भी हाथ आजमाने के बारे में सोचा। उन्होंने टीवी के कल्ट शो महाभारत में अभिमन्यु की भूमिका के लिए ऑडिशन दिया था, उन्हें चुन भी लिया गया था। लेकिन इससे पहले की वह महाभारत में नजर आते, उनकी फिल्म तन-बदन हिट हो गई। यह फिल्म उनके चाचा आनंद ने निर्देशित की थी। इसके बाद उन्होंने टीवी की ओर मुड़कर नहीं देखा। अगले छह वर्षों तक लगभग 50 फिल्मों में अभिनय किया। तभी शोला और शबनम हिट हो गई, जिससे उनके लिए और दरवाजे खुल गए।

सांसद गोविंदा

गोविंदा पूर्व सांसद (2004-09) भी हैं। बतौर कांग्रेस नेता साल 2004 में उन्होंने मुंबई नॉर्थ से लोकसभा का चुनाव जीता था। गोविंदा ने इस सीट से भाजपा के राम नाइक को हराया था। हालांकि अब वह राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। साल 2016 में जब मीडिया ने उसने पूछा था कि वह राजनीति में कब वापसी कर रहे हैं तो उनका जवाब था- मुझे राजनीति से बाहर आने और उसे भूलने में 9-10 साल लग गए। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप यह न पूछें।