पिछले कुछ सालों में हिंदू संगठनों की ओर से यह मांग जोर-शोर से उठाई गई है कि हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए। हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों ने कहा है कि सरकारी नियंत्रण में मंदिरों की पवित्रता और शुद्धता को बनाए रखना असंभव हो गया है। आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के ताजा लड्डू विवाद ने हिंदू संगठनों की इस मांग को तेज कर दिया है।

लड्डू विवाद के बाद आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने मंदिरों से जुड़े मुद्दों के लिए सनातन धर्म रक्षण बोर्ड बनाने की मांग की है।

विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की मांग को लेकर देश भर में अभियान चलाने का ऐलान किया है। वीएचपी का कहना है कि मंदिरों का सरकार के नियंत्रण में होना ‘मुस्लिम आक्रमणकारियों’ और ‘औपनिवेशिक’ ब्रिटिश मानसिकता का प्रतीक है।

हिंदू संगठनों ने लगाया भेदभाव का आरोप

हिंदू संगठनों का कहना है कि देशभर में लाखों मठ-मंदिर हैं जिन पर राज्य सरकार का कब्जा है लेकिन दूसरे मत-मजहब के धार्मिक स्थलों पर कोई कब्जा नहीं है। उनका कहना है कि यह हिंदू धर्म को मानने वालों के साथ भेदभाव करने जैसा है और इसे लेकर देश भर में आवाज उठाने की जरूरत है।

ऐसे में बड़ा सवाल सामने आता है कि भारत में धार्मिक स्थलों का प्रबंधन कैसे होता है। मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोग अपने धार्मिक स्थलों और इससे जुड़े संस्थानों का प्रबंधन बोर्ड या ट्रस्ट के जरिए करते हैं जबकि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के बड़े पूजा स्थलों के प्रबंधन में सरकार का दखल है।

तमिलनाडु में सबसे ज्यादा मंदिर सरकार के नियंत्रण में

कई राज्यों ने ऐसे विशेष कानून बनाए हैं जो उन्हें हिंदू मंदिरों के प्रशासन, उनकी आय और खर्चों में भी नियंत्रण का हक देते हैं। यह नियंत्रण उन बोर्डों और ट्रस्टों के जरिये होता है जिनमें सरकारी प्रतिनिधि होते हैं या फिर इनका नेतृत्व कोई सरकारी अफसर करता है। तमिलनाडु में सबसे ज्यादा हिंदू मंदिर सरकारी नियंत्रण में हैं। यहां राज्य सरकार ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (HR&CE) बनाया है। तिरुपति मंदिर को तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) नाम का निकाय चलाता है और यह आंध्र प्रदेश सरकार के नियंत्रण में है। अहम बात यह है कि TTD के प्रमुख की नियुक्ति राज्य सरकार ही करती है।

अब सवाल यह है कि हिंदू मंदिर सरकारों के नियंत्रण में कैसे आए? 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में लगभग 30 लाख धार्मिक स्थल हैं और इसमें से ज्यादातर हिंदू मंदिर हैं।

ब्रिटिश सरकार के कानूनों से मंदिरों के प्रशासन में मिला दखल का हक

ब्रिटिश शासन ने मंदिरों को एक बड़ी संपत्ति का भंडार माना और इनकी सरकार द्वारा निगरानी का काम किया। इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने बंगाल, मद्रास और मुंबई प्रेसिडेंसी में कई कानून बनाए और इन कानूनों के जरिए उन्हें मंदिरों के प्रशासन में दखल देने का हक मिला। लेकिन आम लोगों ने इसका जोरदार विरोध किया और इसके पीछे वजह यह बताई गई कि एक ईसाई सरकार हिंदू मंदिरों का प्रबंधन कर रही थी।

1863 में धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम पारित हुआ और इसके जरिये मंदिरों का नियंत्रण समितियों को सौंप दिया गया। इसके बाद भी कई कानून ब्रिटिश सरकार की ओर से बनाए गए।

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आजादी के बाद क्या हुआ?

1947 में देश के आजाद होने के बाद ब्रिटिश सरकार वाली व्यवस्था ही कायम रही और 1925 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए विशिष्ट हिंदू मंदिर कानून के तहत काम होता रहा। आईआईएम, बेंगलुरू के सेंटर ऑफ पब्लिक पॉलिसी के प्रोफेसर जी. रमेश द्वारा मंदिर प्रबंधन पर लिखे गए एक पेपर के अनुसार, यह कानून और इसके बाद आए संशोधनों ने मंदिरों के प्रबंधन को देखने के लिए बोर्ड की व्यवस्था करने का हक दिया और कुछ मामलों में तो बोर्ड मंदिर के प्रबंधन को पूरी तरह से अपने हाथ में ले सकता था।

आरएसएस ने उठाई थी पहली बार मांग

अब सवाल आता है कि मंदिरों से सरकारी नियंत्रण को समाप्त करने की मांग कब से उठाई जा रही है? 1959 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने पहली बार मांग की थी कि मंदिरों का नियंत्रण हिंदू समुदाय को सौंप दिया जाना चाहिए और इस संबंध में प्रस्ताव पास किया था। इसके बाद आरएसएस से जुड़ी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने काशी विश्वनाथ मंदिर के संदर्भ में एक प्रस्ताव पास कर उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि इस मंदिर को हिंदुओं को लौटाने के लिए कदम उठाए जाएं।

1988 में संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने फिर से इस मांग को उठाया। इससे पहले दक्षिण भारत में मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो चुके थे।

मोदी ने तमिलनाडु सरकार पर लगाया था आरोप

वीएचपी 1970 के दशक से इस मुद्दे को लगातार उठा रही है। 2021 में उसने इस संबंध में एक प्रस्ताव भी पारित किया था। साल 2014 में बीजेपी के नेतृत्व में केंद्र सरकार बनने के बाद हिंदू संगठनों ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की मांग को बड़े जोर-शोर के साथ उठाया है। उनकी इस मांग को बल तब मिला था जब पिछले साल तेलंगाना में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु सरकार पर हिंदू मंदिरों को अपने नियंत्रण में लेने का आरोप लगाया था लेकिन इसका तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने खंडन किया था।

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बीजेपी ने उठाए इस दिशा में कदम

पिछले कुछ सालों में बीजेपी की ओर से इस दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं। पूर्व बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह ने संसद में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था। 2019 में उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार ने एक बोर्ड बनाकर चार धाम मंदिरों और 49 अन्य मंदिरों का प्रबंधन एक बोर्ड के अधीन कर दिया था। लेकिन इसका जोरदार विरोध हुआ और फिर इसे रद्द करना पड़ा। मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार ने 2023 में मंदिरों पर राज्य सरकार का नियंत्रण कम किया जबकि कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने भी ऐसा करने का ऐलान किया लेकिन वह अपने कार्यकाल में इस पर आगे नहीं बढ़ सकी।