गीता प्रेस (Gita Press) को साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार (Gandhi Peace Prize) देने के ऐलान के बाद से इस पर घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस इसे गांधी का अपमान करार दे रही है तो बीजेपी सनातन संस्कृति का सम्मान। गीता प्रेस की स्थापना 29 अप्रैल 1923 को हुई थी और इसकी नींव रखी थी सेठ जयदयाल गोयनका, घनश्यामदास जालान और हनुमान प्रसाद पोद्दार (Hanuman Prasad Poddar) ने।

कैसे हुई थी गीता प्रेस की स्थापना?

गीता प्रेस की शुरुआत की कहानी दिलचस्प है। पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा (Bankura) के रहने वाले कॉटन और केरोसिन तेल के मारवाड़ी व्यापारी सेठ जयदयाल गोयनका (Jaydayal Goyandka) अक्सर काम के सिलसिले में सीतामढ़ी, खड़गपुर, चक्रधरपुर और कलकत्ता की यात्रा करते थे। गोयनका बेहद धार्मिक स्वभाव के शख़्स थे और यात्रा के दौरान उनकी ऐसे व्यापारियों से मित्रता हुई, जो उन्हीं जैसे स्वभाव के थे। गोयनका को जब काम से फुर्सत मिलती तो मित्रों के साथ सत्संग जाया करते थे। बाद में उन्होंने तय किया कि सत्संग नियमित होना चाहिए, इसके लिए कलकत्ता में गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की।

उन दिनों गीता आसानी से नहीं मिलती थी। जयदयाल गोयनका ने तय किया कि वह खुद शुद्ध और सस्ती गीता छपवाकर लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे। उन्होंने जब गीता की प्रति प्रेस में दी तो कई बार संशोधन कराया। आखिरकार प्रेस के मालिक ने हाथ खड़े कर दिये और गोयनका को सलाह दी कि अगर इतनी शुद्ध कॉपी छपवानी है तो खुद की प्रेस लगा लें।

600 की मशीन से गोरखपुर में शुरुआत

सेठ जयदयाल ने सत्संग में यह बात रखी। उस दिन गोरखपुर के एक अन्य व्यवसायी घनश्याम दास जालान और महावीर प्रसाद भी वहां मौजूद थे। घनश्याम दास ने कहा कि यदि गोरखपुर में प्रेस लगे तो वह इसे संभाल लेंगे। इसके बाद गोरखपुर के उर्दू बाजार में 10 रुपये महीने किराए पर कमरा लिया गया और 600 रुपये की प्रिंटिंग मशीन खरीदी गई। यहीं से गीता प्रेस की शुरुआत हुई। धीरे-धीरे काम बढ़ने लगा। जुलाई 1926 में साहबगंज में एक दूसरी जगह लेकर वहां काम शुरू हुआ, यही आज गीता प्रेस का मुख्यालय है। धीरे-धीरे इस कैंपस का विस्तार हुआ और अब यह परिसर करीब डेढ़ लाख वर्ग फीट में फैला हुआ है।

93 करोड़ किताबें बेच चुका है गीता प्रेस

‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ में अक्षय मुकुल लिखते हैं कि शुरुआत के 3 साल तक गीता प्रेस की कुछ खास चर्चा नहीं थी, लेकिन साल 1926 में जब ‘कल्याण’ पत्रिका शुरू हुई तो देखते ही देखते हिट हो गई है। गीता प्रेस ने रामायण, गीता, महाभारत, पुराण और तमाम हिंदू धार्मिक ग्रंथों की सस्ती और अच्छी छपाई शुरू की। गीता प्रेस की स्थापना को अब 100 साल हो चुके हैं। संस्थान 15 से ज्यादा भाषाओं में 1850 से ज्यादा धार्मिक पुस्तकें छापता है। इन पुस्तकों की अब तक 93 करोड़ प्रतियां बेच चुका है।

किस किताब की सर्वाधिक बिक्री?

गीता प्रेस अब तक, अकेले श्रीमद्भागवत गीता की 16 करोड़ से ज्यादा प्रतियां बेच चुका है। गोस्वामी तुलसीदास रच‍ित रामचरितमानस की 3.5 करोड़ से ज्यादा प्रतिया बेची जा चुकी हैं। इसके अलावा तमाम पुराण और उपनिषद की 2.68 करोड़ कॉपीज भी बेच चुका है।।

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गीता प्रेस किस भाषा में कितनी और कैसी किताबें बेचता है, देखें

कैसे कमाई करता है गीता प्रेस?

सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 (Societies Registration Act, 1860) के तहत रजिस्टर गीता प्रेस का मैनेजमेंट एक ट्रस्ट संभालता है। आधिकारिक वेबसाइट पर दिए गए ब्योरे के मुताबिक गीता प्रेस का उद्देश्य सनातन धर्म और संस्कृति का प्रचार-प्रसार और बढ़ावा देना है। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक गीता प्रेस ‘नो प्रॉफिट, नो लॉस मॉडल’ पर काम करता है। गीता प्रेस न तो किसी तरह का डोनेशन लेता है और न ही अपनी किताबों-पत्रिकाओं में विज्ञापन छापता है। यहां तक कि कभी अपनी किताबों या प्रकाशनों का कोई विज्ञापन भी नहीं देता है।

कितनी है गीता प्रेस की कमाई?

सोशल मीडिया और वीडियो कंटेंट के दौर में जब तमाम पब्लिकेशन हाउसेज की कमाई में गिरावट आई, तब भी गीता प्रेस पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। जीएसटी, नोटबंदी और कोरोना काल में भी गीता प्रेस की कमाई में इजाफा ही होता रहा। साल 2017 में गीता प्रेस का टर्नओवर जहां 47 करोड़ रुपये था, वहीं 2022 आते-आते यह 100 करोड़ के करीब पहुंच गया।

देखें गीता प्रेस का पिछले 5 साल का टर्न ओवर..

वर्षटर्नओवर (रु.)
201639 करोड़
201747 करोड़
201866 करोड़
201969 करोड़
202178 करोड़
2022 100 करोड़
गीता प्रेस का पिछले 5 साल का टर्नओवर

क्यों सस्ती हैं गीता प्रेस की किताबें?

गीता प्रेस की पुस्तकों की शुरुआत महज 2 रुपये से होती है। गीता प्रेस की किताबों के इतना सस्ता होने की सबसे बड़ी वजह यह है कि वह रॉ मैटेरियल सीधे खरीदता है। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर और किराये जैसे बड़े खर्च बच जाते हैं। इसके अलावा गीता प्रेस, गीता वस्त्र विभाग और गीता आयुर्वेद विभाग के जरिए कपड़े और दवाइयां भी बेचता है। इसके जरिए अपने प्रोडक्शन कॉस्ट कवर करता है।

आपको बता दें कि साल 2015 में गीता प्रेस तब चर्चा में आया था, जब यहां काम करने वाले कर्मचारी कम सैलरी का हवाला देते हुए धरने पर चले गए थे। बाद में मैनेजमेंट के साथ बातचीत में उन्हें तन्ख्वाह बढ़ाने का आश्वासन मिला था। तब वे काम पर लौटे थे।