1999 में मई से जुलाई के बीच भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ था। इस युद्ध के अब 25 साल पूरे होने जा रहे हैं। युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया था और भारत की सीमा में घुसे पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ दिया था। जीत के बाद भारत ने टाइगर हिल और अन्य चौकियों पर फिर से कब्जा जमा लिया था।
कारगिल का युद्ध 3 महीने तक चला था और इसमें भारत के 490 अफसरों और सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी। इस जीत की खुशी में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।
कारगिल युद्ध के दौरान जनरल वेद प्रकाश मलिक भारतीय सेना के प्रमुख थे। हिंदुस्तान टाइम्स के कार्यकारी संपादक रमेश विनायक के साथ बातचीत में जनरल मलिक ने कारगिल युद्ध से जुड़ी कुछ बेहद जरूरी और दिलचस्प बातों को उजागर किया है।

तीन महीने पहले ही लाहौर घोषणा पत्र पर किए थे दस्तखत
जनरल वेद प्रकाश मलिक बताते हैं कि कारगिल युद्ध एक बड़ी चुनौती थी। युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी सदमे में आ गए थे क्योंकि इस युद्ध से 3 महीने पहले ही भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक लाहौर घोषणा पत्र पर दस्तखत किए गए थे।
पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ और वाजपेयी ने 21 फरवरी, 1999 को लाहौर घोषणा पत्र पर दस्तखत किए थे और इसके लिए वाजपेयी बस में बैठकर लाहौर गए थे।
जनरल मलिक बताते हैं कि कारगिल युद्ध शुरू होने पर सेना इस वजह से हैरान थी क्योंकि हमारे पास उस वक्त ऐसी कोई भी खुफिया रिपोर्ट नहीं थी। ना तो इंटेलिजेंट ब्यूरो (आईबी) या रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की तरफ से। यहां तक कि एजेंसियों ने पाकिस्तान की ओर से किसी भी तरह के युद्ध किए जाने की संभावना को ही नकार दिया था।

अच्छे उपकरणों की थी कमी
जनरल मलिक बताते हैं कि भारतीय सेना लाइन ऑफ कंट्रोल पर निगरानी में भी कमजोर थी। हमारी चौकियों के बीच का अंतर 9 किलोमीटर से 40 किलोमीटर तक था। जब कड़ाके की ठंड पड़ती है तो इस इलाके में पेट्रोलिंग पर भी असर होता है। उस समय हमारे पास वैसे गैजेट्स भी नहीं थे, जैसे आज हैं।
मलिक बताते हैं कि हमारे पास निगरानी करने वाले ड्रोन नहीं थे, सैटेलाइट इमेजरी नहीं थी, रडार नहीं थे और यहां तक कि नाइट विजन उपकरण भी नहीं थे। ऐसे वक्त में कारगिल में पाकिस्तान के द्वारा युद्ध की शुरुआत करना निश्चित रूप से हैरानी भरा कदम था।
पाकिस्तान के अखबारों की रिपोर्टिंग का दिया हवाला
भारतीय सेना को कारगिल में पाकिस्तान की नापाक हरकतों के बारे में कब पता चला, इस बारे में पूछने पर जनरल मलिक बताते हैं कि 1999 में वह पोलैंड और चेक गणराज्य की आधिकारिक यात्रा पर थे। जब वह चेक गणराज्य में राजदूत के साथ नाश्ता कर रहे थे तब उन्होंने मुझे बताया कि पाकिस्तान के अखबार लिख रहे हैं कि उनके मुल्क ने कारगिल में लाइन ऑफ कंट्रोल के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया है।
जनरल मलिक बताते हैं कि उन्होंने तुरंत दिल्ली में आर्मी हेडक्वार्टर को फोन किया। कारगिल में टॉप से लेकर कॉर्प्स कमांडर तक सभी ने इसे पाकिस्तानी सेना की नहीं बल्कि सलवार-कमीज में आए आतंकवादियों की घुसपैठ माना।
जनरल मलिक बताते हैं कि जब वह वापस लौटे तब भी उन्हें ब्रीफिंग में यही बताया गया कि कारगिल में घुसे यह लोग आतंकवादी थे जिन्हें वहां से खदेड़ दिया जाएगा। तब के रक्षा मंत्री भी उस इलाके में गए थे और उन्हें भी यही बताया गया कि चिंता करने की कोई बात नहीं है।
जनरल मलिक के मुताबिक, जब वह जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए पहुंचे तो उन्होंने सेना के लोगों से कहा कि आतंकवादी कभी भी इस तरह की हरकत नहीं करते हैं, जैसा हमने यहां देखा है। वह एक जगह टिके नहीं रहते। हम कई सालों से उनसे निपट रहे हैं। उस वक्त हमारे पास ऐसी खबरें थी कि एलओसी के साथ लगते हुए 100 किलोमीटर के इलाके में लोगों ने कब्जा कर लिया था।
जनरल मलिक बताते हैं कि 21 मई को उन्होंने कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी को बताया कि हालात जितना हम सोच रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा गंभीर हैं।
मुशर्रफ अच्छे कमांडो लेकिन खराब रणनीतिकार थे
जनरल मलिक बताते हैं कि परवेज मुशर्रफ 1980 में पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर थे और उस वक्त उन्होंने सियाचिन सेक्टर में हमारी कुछ पोस्ट पर फिर से कब्जा करने की कोशिश की थी। लेकिन वह इसमें पूरी तरह नाकामयाब रहे थे। मुशर्रफ को इस बात का दुख था कि उनके कई लोग मारे गए और वह अपने मिशन में कामयाब नहीं हो सके।
जनरल मलिक कहते हैं कि मुशर्रफ अच्छे कमांडो थे लेकिन खराब रणनीतिकार थे।
जब मुशर्रफ पाकिस्तानी सेना में मेजर जनरल या लेफ्टिनेंट जनरल बने, तब उन्होंने पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से इन इलाकों में हमला करने की बात कही थी। बेनजीर भुट्टो ने उनसे कहा था कि उन्हें इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातें नहीं करनी चाहिए।
जनरल मलिक बताते हैं कि अक्टूबर 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने जब मुशर्रफ को पाकिस्तान का सेना प्रमुख नियुक्त किया तो मुशर्रफ को ऐसा लगा कि यह उनके पास खुद को साबित करने का समय है और यही वक्त है जब वह सियाचिन और कुछ अन्य चौकियों पर कब्ज कर सकते हैं।
जनरल मलिक बताते हैं कि मुशर्रफ इस क्षेत्र को अच्छी तरह से जानते थे और उन्हें पता था कि घुसपैठ करने के लिए यह सबसे अच्छी जगह है। जब कड़ाके की सर्दी थी तब उन्होंने हमारे इलाके में पेट्रोलिंग करनी शुरू की और फरवरी 1999 में यहां अपने अड्डे जमा लिए लेकिन बर्फीले तूफान और एवलांच की वजह से पाकिस्तानी सेना को अपने कई लोगों को खोना पड़ा था। पाकिस्तान की सेना ने नवाज शरीफ को इसे लेकर ठोस जानकारी नहीं दी थी।
जनरल मलिक बताते हैं कि कारगिल का युद्ध निश्चित रूप से कठिन था क्योंकि यह युद्ध 14 हजार से 20 हजार फीट की ऊंचाई पर हो रहा था। मलिक के मुताबिक, पता नहीं इसके पीछे क्या वजह थी लेकिन सरकार जिस तरह के उपकरण सेना के पास सियाचिन में थे, वैसे उपकरण और छूट नहीं दे रही थी।
हमारे पास सर्दियों के कपड़ों की कमी थी और जरूरी हथियार और उपकरण भी नहीं थे।
…जो कुछ है, हम उसी से लड़ेंगे
जनरल मलिक बताते हैं कि उस वक्त भारत पर प्रतिबंध भी लगे हुए थे क्योंकि हमने 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। जनरल मलिक कहते हैं कि एक बार जब युद्ध शुरू हो जाता है तो आप किसी चीज का इंतजार नहीं कर सकते। दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जब उनसे पूछा गया था कि सेना के पास हथियारों और उपकरणों की कमी है तो उन्होंने कहा था कि हमारे पास जो कुछ है, हम उसी से लड़ेंगे।
जनरल मलिक ने कहा कि भारतीय सेना के पास पाकिस्तानी घुसपैठियों को लेकर कोई जानकारी नहीं थी और हमारे सैनिक शहीद हो रहे थे। लेकिन जब हमने टोलोलिंग और थ्री पिंपल रिज लाइन पर कब्जा कर लिया तो फिर मुझे इस बात का विश्वास हो गया कि जिस चीज की हमें जरूरत है, हमारे जवान वह कर लेंगे और इसके बाद हमें कोई नहीं रोक सका।
जनरल मलिक बताते हैं कि युद्ध में गोलियों और गोलीबारी के कारण भारतीय सेना के 468 जवान शहीद हुए लेकिन ऊंचाई और दुर्घटनाओं की वजह से भी हमारे सैनिकों को शहादत देनी पड़ी।
