लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी एक बार फिर गया सीट से चुनाव मैदान में हैं। गया लोकसभा क्षेत्र की जब भी बात होती है तो एक मजेदार चुनावी किस्सा सामने आता है। किस्सा यह है कि गया लोकसभा सीट के पूर्व सांसद ईश्वर चौधरी को चुनाव लड़ने के लिए अपनी पत्नी के गहने तक बेचने पड़े थे। चौधरी तीन बार गया संसदीय सीट से चुनाव जीते थे।
साल 1971 की बात है। तब हुए संसदीय चुनाव में गया सीट से एक ओर बिहार के बड़े नेता बाबू जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में थे तो ईश्वर चौधरी जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। सुरेश राम आर्थिक रूप से काफी मजबूत थे जबकि ईश्वर चौधरी के पास नामांकन के लिए भी पैसे नहीं थे।
लोगों ने इकट्ठा किया चंदा
बताया जाता है कि तब उन्हें अपनी पत्नी की कान की बाली बेचनी पड़ी थी। इसके बाद भी पैसे की जरूरत पड़ी तो लोगों ने उनके लिए चंदा इकट्ठा किया और उन्हें चुनाव जितवाया। साल 1991 में चुनाव प्रचार के दौरान गया में उनकी हत्या कर दी गई।
ईश्वर चौधरी के बारे में कहा जाता है कि उन्हें जनता का अच्छा-खासा समर्थन हासिल था। गया में ईश्वर चौधरी के नाम से एक रेलवे स्टेशन भी है। गया और मानपुर जंक्शन के बीच शहीद ईश्वर चौधरी नाम का यह स्टेशन है और यहां पर ट्रेन रूकती है।

17 और पूर्व मुख्यमंत्रियों ने लड़ा लोकसभा चुनाव
बिहार की राजनीति को देखें तो एक अहम तथ्य यह भी सामने आता है कि जीतन राम मांझी से पहले राज्य के 17 और पूर्व मुख्यमंत्री लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुके हैं। इनमें से 7 मुख्यमंत्री ऐसे रहे जो लोकसभा चुनाव नहीं जीत सके तो केंद्र की राजनीति से मुंह ही फेर लिया।
लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों में भागवत झा, विनोदानंद झा, रामसुंदर दास, दारोगा प्रसाद राय, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर, सतीश प्रसाद सिंह, जगन्नाथ मिश्रा, बीपी मंडल, केदार पांडेय, अब्दुल गफूर, महामाया प्रसाद, चंद्रशेखर सिंह, बिंदेश्वरी दुबे, लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी का नाम शामिल है।
लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे ये पूर्व मुख्यमंत्री
पूर्व मुख्यमंत्री का नाम | कितनी बार जीता लोकसभा का चुनाव |
नीतीश कुमार | 6 |
भागवत झा आजाद | 5 |
लालू प्रसाद यादव | 4 |
विनोदानंद झा | 1 |
राम सुंदर दास | 1 |
हार के बाद केंद्र की राजनीति से अलग हुए पूर्व मुख्यमंत्री
ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री जिन्होंने लोकसभा चुनाव में हार के बाद केंद्र की राजनीति को अलविदा कह दिया, उनमें कर्पूरी ठाकुर, राबड़ी देवी, अब्दुल गफूर और दरोगा प्रसाद राय का नाम शामिल है।
मांझी, लालू और नीतीश का हाल
2014, 2019 में गया से लोकसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी केंद्र की राजनीति से दूर रहे, लेकिन 2024 में फिर से चुनाव लड़ रहे हैं। वह एनडीए के घटक दल के रूप में अपनी पार्टी ‘हम’ से गया संसदीय क्षेत्र के उम्मीदवार हैं।
2004 में बाढ़ संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव हारने के बाद नीतीश कुमार ने भी केंद्र की राजनीति में जाने का विचार छोड़ दिया और बिहार की राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गए।
2009 में पाटलिपुत्र सीट से लोकसभा चुनाव हारने के बाद लालू प्रसाद यादव फिर चुनाव नहीं लड़ पाए।
कुछ और पूर्व मुख्यमंत्री जो लोकसभा चुनाव लड़े
पूर्व मुख्यमंत्री | संसदीय सीट का नाम | साल |
बीपी मंडल | मधेपुरा | 1967 और 1977 में जीते, 1980 में हारे |
महामाया प्रसाद सिन्हा | पटना | 1977 में जीते, 1980 में हारे |
डॉ. जगन्नाथ मिश्र | मधुबनी | 1971 में जीते, 1991 में हारे |
चंद्रशेखर सिंह | बांका | 1985 में जीते |
केदार पांडेय | बेतिया | 1980 में जीते |
बिंदेश्वरी दूबे | गिरिडीह | 1980 में जीते |
सतीश प्रसाद सिंह | खगड़िया | 1980 में जीते |
गया संसदीय सीट का समीकरण
गया संसदीय सीट पर पिछले 25 साल से मांझी समुदाय के नेता ही जीत हासिल करते रहे हैं। गया लोकसभा सीट पर मांझी समुदाय के मतदाताओं की संख्या ढाई लाख से ज्यादा है। इसके अलावा पासवान, धोबी और पासी समुदाय के मतदाता भी यहां बड़ी संख्या में हैं। इस सीट पर पिछड़ा, अति पिछड़ा और अगड़ी जातियों के वोटर भी अहम भूमिका निभाते हैं।

गया 1971 से ही बीजेपी के लिए सेफ सीट रही है। बीजेपी ने 1977, 1989, 1998, 1999, 2009 और 2014 में इस सीट से जीत दर्ज की थी। साल 2009 और 2014 में बीजेपी के नेता हरि मांझी लगातार दो बार इस सीट से चुनाव जीते थे।
लेकिन 2019 में बीजेपी ने इस सीट को गठबंधन के तहत जेडीयू के लिए छोड़ दिया था और तब यहां से जेडीयू के विजय मांझी ने जीत दर्ज की थी। एनडीए में सीट बंटवारे के तहत इस बार यह सीट हम को मिली है।
गया लोकसभा सीट में शेरघाटी, बोधगया, गया टाउन, बेलागंज, वजीरगंज और 12 बाराचट्टी की विधानसभा सीट आती है। अहम तथ्य यह है कि साल 1984 के बाद से ही कांग्रेस को इस सीट पर जीत नहीं मिली है। एक बार साल 2004 में राष्ट्रीय जनता दल ने भी इस सीट पर जीत हासिल की थी।