मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के भाजपा में जाने की चर्चाओं पर अब विराम लगता नजर आ रहा है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि उनकी कमलनाथ से लगातार बातचीत हो रही है। वहीं भाजपा नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि “कमलनाथ के लिए भाजपा के दरवाज़े ना खुले थे ना खुले हैं”
मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीतू पटवारी ने “अफवाहों” को खारिज करते हुए कहा है, “क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा कांग्रेस छोड़ देगा? क्या आपके सपने में भी ऐसा ख्याल आ सकता है कि जिस कमलनाथ के मार्गदर्शन में हमने अभी दो महीने पहले विधानसभा चुनाव लड़ा, वो पार्टी छोड़ देंगे?”
बता दें कि पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय मीडिया, विशेषकर मध्य प्रदेश के पत्रकारों में कमलनाथ के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने की चर्चा हैं।
पार्टी और परिवार से निजी संबंध
कमलनाथ का कांग्रेस से जाना गांधी परिवार के लिए एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि इंदिरा गांधी के दिनों से ही उनका पार्टी और परिवार से निजी संबंध रहा है। दून स्कूल में संजय गांधी के साथी रहे कमलनाथ, 1970 के दशक में युवा कांग्रेस में शामिल हुए और जल्द ही जगमोहन, वीसी शुक्ला, बंसी लाल, ओम मेहता, जगदीश टाइटलर और बाद में अकबर डंपी अहमद जैसे लोगों के साथ संजय गुट के प्रमुख सदस्य बन गए। आपातकाल के दौरान और उसके बाद जो कुछ भी गलत हुआ उसके लिए अक्सर एक समूह को दोषी ठहराया जाता है।
शिवसेना से आपातकाल के लिए हासिल किया था समर्थन
उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले कमलनाथ को संजय गांधी के साथ दोस्ती का इनाम 1980 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट से मिला। आपातकाल के बाद 1977 के चुनावों में जब हिंदी पट्टी में कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया था, तब भी छिंदवाड़ा से कांग्रेस नेता को जीत मिली थी।
छिंदवाड़ा से कमलनाथ नौ लोकसभा चुनाव जीते और केवल एक बार हारे हैं। वह संजय के उन समर्थकों में से एक थे जो आपातकाल के लिए राजनीतिक समर्थन जुटाते थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने ही संजय की ओर से शिवसेना के बाल ठाकरे से मुलाकात की और आपातकाल के लिए उनका समर्थन हासिल किया।
द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में लिखा है, “संजय गांधी ने बाल ठाकरे के साथ ‘बैक चैनल’ बातचीत शुरू करने के लिए नाथ का इस्तेमाल किया। तब नाथ उनके सबसे खास आदमी हुआ करते थे। शिवसेना के संस्थापक और महाराष्ट्र के कद्दावर नेता के रूप में जाने जाने वाले ठाकरे कांग्रेस के कड़े आलोचक रहे थे। 1975 में आपातकाल के बाद, संजय ने उनसे फोन पर बात की और नाथ को उनसे मिलने के लिए मुंबई भेजा… ठाकरे आपातकाल का समर्थन करने के लिए सहमत हुए। उन्होंने नाथ से कहा कि यह देश के लिए अच्छा है। एक बार कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार हो जाए, तो आपातकाल हटाया जा सकता है।”