न्‍यायपाल‍िका में जजों की न‍ियुक्‍त‍ि को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में तकरार चलती ही रहती है। नवंबर, 2022 में तो सुप्रीम कोर्ट ने देरी पर कानून व न्‍याय मंत्रालय को नोट‍िस भी जारी कर द‍िया था। उस समय सुप्रीम कोर्ट के मुताब‍िक सरकार के पास 11 जजों की न‍ियुक्‍त‍ि की फाइल पेंड‍िंग पड़ी थी। अब भी इनमें से कई नामों पर सरकार चुप ही बैठी है। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट कॉलेज‍ियम (Supreme Court Collegium) की ओर से 2 मार्च, 2023 को गुजरात हाईकोर्ट के ल‍िए सात नाम फाइनल कर सरकार को भेज द‍िए गए हैं।

केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के बीच तकरार की वजह क्‍या?

सुप्रीम कोर्ट कॉलेज‍ियम (Collegium System) को जजों की न‍ियुक्‍त‍ि की सबसे अच्‍छी व्‍यवस्‍था बताता है। केंद्र सरकार का कहना है क‍ि इस व्‍यवस्‍था में पारदर्श‍िता की कमी है। साथ ही, केंद्र जजों की न‍ियुक्‍त‍ि में अपना अहम रोल भी चाहता है। सीधा प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व के रूप में। हाल ही में कानून मंत्री क‍िरन र‍िज‍िजू (Kiren Rijiju) ने साफ कहा क‍ि जजों की न‍ियुक्‍त‍ि प्रक‍िया में सरकार का प्रत‍िन‍िध‍ि भी शाम‍िल हो। 

‘सरकार में पारदर्श‍िता नहीं’

केंद्र की दोनों दलीलों पर हमने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर (Justice Madan B Lokur) से बातचीत की (नीचे देखें उनके साथ इंटरव्‍यू का पूरा वीड‍ियो)। उन्‍होंने कहा- सरकार यह तो कहती है क‍ि कॉलेज‍ियम स‍िस्‍टम में पारदर्श‍िता की कमी है, पर यह नहीं बताती क‍ि उसे और क्‍या पारदर्श‍िता चाह‍िए। कॉलेज‍ियम के पास जो जानकार‍ियां दी जाती हैं, वो सरकार के जर‍िए ही आती हैं। तो फ‍िर उसे और क्‍या चाह‍िए?

मदन लोकुर ने कहा- असल में सरकार में पारदर्श‍िता नहीं है। यह जीरो पारदर्श‍िता वाली सरकार है। कॉलेज‍ियम की स‍िफार‍िशों की फाइलें दबाए बैठी रहती है और बताती भी नहीं क‍ि क‍िस वजह से फाइलें रोक रखी हैं। (लोकुर ने कॉलेज‍ियम के काम करने का पूरा तरीका भी बताया, जो नीचे इंटरव्‍यू का वीड‍ियो 20वें म‍िनट से देख कर जान सकते हैं।)

देखें- जस्टिस (रि.) मदन लोकुर से पूरी बातचीत का वीड‍ियो

न‍ियुक्‍त‍ि प्रक्र‍िया में सरकार के प्रत‍िन‍िध‍ि को भी शाम‍िल करने संबंधी मांग के बारे में जस्‍ट‍िस मदन लोकुर ने कहा क‍ि मौजूदा व्‍यवस्‍था में भी न‍िर्णय में सरकार की पूरी भागीदारी है। उसे अपनी राय देने का पूरा हक है। बस कॉलेज‍ियम में सशरीर उसका कोई प्रत‍िन‍िध‍ि नहीं है। 

सुप्रीम कोर्ट चाहे तो अवमानना का मामला बन सकता है

जस्‍ट‍िस लोकुर ने साफ कहा क‍ि यह सरकार अड़ रही है (जजों की न‍ियुक्‍त‍ि के मामले में)। उन्‍होंने यह भी बताया क‍ि सुप्रीम कोर्ट चाहे तो अवमानना का मामला बना सकती है। लेक‍िन, पता नहीं सुप्रीम कोर्ट इस द‍िशा में सोचेगा या नहीं? अगर सोच भी ले और सरकार फैसला न मानने पर अड़ जाए (और अड़ रही है) तो क्‍या क‍िया जा सकता है?  

जस्‍ट‍िस लोकुर ने सुप्रीम कोर्ट पर भी सवाल उठाया और कहा- थोड़ा बहुत ऐसा लगता है क‍ि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के दबाव में है। इसके ल‍िए उन्‍होंने कुछ मामलों का उदाहरण देकर कहा क‍ि इन मामलों में सुनवाई में होने वाली देरी से सुप्रीम कोर्ट पर केंद्र सरकार का दबाव होने की आशंका पैदा होती है।