एल. विक्टोरिया गौरी की फरवरी, 2023 में मद्रास हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर (Justice Madan Lokur) ने जो बात कही है, उससे यह सवाल उठता है कि क्या कॉलेजियम के सामने भी आधी-अधूरी या गलत जानकारी भी रखी जा सकती है। Jansatta.com से एक्सक्लूसिव बातचीत में जस्टिस लोकुर ने कहा कि हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को जो गौरी के बारे में जो खुफिया रिपोर्ट सौंपी गई, उसमें विक्टोरिया गौरी के बीजेपी से जुड़ाव और हेट स्पीच वाली बात छिपा ली गई हो। बता दें कि गौर बीजेपी की नेता थीं और जज बनाए जाने की जानकारी सामने आने के बाद उनके कई भड़काऊ भाषण सोशल मीडिया पर शेयर किए गए थे।
क्या बोले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज Justice Madan Lokur
जस्टिस मदन लोकुर (Justice Madan Lokur) ने कहा कि जब हाईकोर्ट कॉलेजियम (High Court Collegium) की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को किसी की नियुक्ति के लिए सिफारिश भेजी जाती है तो उसके साथ एक फॉर्म भी भेजा जाता है। जिसमें इस बात का ब्यौरा होता है कि क्या आपका (उम्मीदवार का) किसी पॉलिटिकल पार्टी से संबंध है या नहीं है? और अगर कोई संबंध है तो किस टाइप का है? अगर वह व्यक्ति किसी पार्टी से जुड़ा है तो उसको पूरी जानकारी देनी होती है या पहले भी जुड़ा रहा है तो यह भी बताना पड़ता है।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि विक्टोरिया गौरी (Victoria Gowri) के केस में उन्होंने फॉर्म भरा था या नहीं भरा था मुझे इसकी जानकारी नहीं है। अगर ईमानदारी से भरा है तो कैंडिडेट ने जरूर बताया होगा कि उनका अमुक पार्टी के साथ ताल्लुक है।
पहले सरकार और फिर कॉलेजियम को जाती है जानकारी
जस्टिस मदन लोकुर ने बताया कि यह सारी जानकारी पहले भारत सरकार को जाती है और उसके जरिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास पहुंचती है। अगर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास फॉर्म है तो जानकारी होगी कि कैंडिडेट का किसी पॉलिटिकल पार्टी से ताल्लुक है या नहीं।
लोकुर ने यह भी स्पष्ट किया कि राजनीतिक पार्टी से पुराना ताल्लुक नियुक्ति नहीं करने का आधार नहीं होता है। जस्टिस लोकुर ने उदाहरण देते हुए बताया कि मान लीजिए कि कोई व्यक्ति किसी पार्टी का मेंबर है तो पहले तो कॉलेजियम उससे कहे कि आप इस्तीफा दें और दूसरी बात यह है कि मान लीजिये कि कोई शख्स किसी रीजनल पार्टी का मेंबर है, उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र का तो उसकी नियुक्ति दूसरे राज्य में की जा सकती है।
क्या दी जा सकती है गलत खुफिया रिपोर्ट?
जस्टिस लोकुर से जब यह पूछा गया कि कॉलेजियम के पास तो इंटेलिजेंस का इनपुट भी होता है, ऐसे में यह कैसे छूट सकता है कि कोई व्यक्ति किसी पार्टी से जुड़ा रहा है या नहीं? तो उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल संभव है।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि विक्टोरिया गौरी (Victoria Gowri) के केस में सिर्फ राजनीतिक जुड़ाव की बात नहीं है, बल्कि हेट स्पीच का मामला है और यूट्यूब पर उनके हेट स्पीच हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कोर्ट में कहा कि उन्हें इसके बारे में सिफारिश करने के बाद पता चला। इसका मतलब यह है कि इंटेलिजेंस वालों ने अपनी रिपोर्ट में यह नहीं लिखा कि उन्होंने हेट स्पीच दी थी। इंटेलिजेंस वालों ने अपना काम ठीक से नहीं किया। अगर हेट स्पीच वाली बात दबाई गई तो संभव है कि यह भी दबाया गया हो कि उनका किसी पॉलिटिकल पार्टी से संबंध है। यह भी हो सकता है कि कैंडिडेट ने खुद अपने फार्म में यह नहीं लिखा हो कि वह किसी पॉलिटिकल पार्टी से जुड़ी हैं।
देखें- जस्टिस (रि.) मदन लोकुर से पूरी बातचीत का वीडियो
खुफिया रिपोर्ट में एक teetotaler वकील को बता दिया गया था boozer
मदन लोकुर खुफिया एजेंसियों की लापरवाही का नमूना एक उदाहरण से भी दे चुके हैं। उन्होंने एक सच्चे वाकये का जिक्र करते हुए बताया था कि एक वकील का नाम जज बनाने के लिए चुना गया। उसकी खुफिया रिपोर्ट जो आई, उसमें उसे खूब शराब पीने वाला (boozer) बता दिया गया। हकीकत यह थी कि वह शराब को हाथ तक नहीं लगाने वाला शख्स (teetotaler) था। हालांकि, यह अलग बात है कि इस रिपोर्ट के चलते वह जज बनने से वंचित नहीं रह गया था।
कौन हैं विक्टोरिया गौरी और क्या दिया था बयान?
मद्रास हाईकोर्ट में एडवोकेट रहीं लक्ष्मणा चंद्रा विक्टोरिया गौरी (Lakshmana Chandra Victoria Gowri) को पिछले महीने 7 फरवरी को मद्रास हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। कॉलेजियम द्वारा विक्टोरिया गौरी का नाम प्रस्तावित करने के बाद से ही खासा विवाद हुआ। इसकी दो वजहें थीं। एक तो गौरी का बीजेपी से जुड़ाव और दूसरा हेट स्पीच का मामला।
विक्टोरिया गौरी का नाम प्रस्तावित करने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था। मद्रास हाईकोर्ट के 21 एडवोकेट के ग्रुप ने अर्जी में उदाहरण देते हुए बताया था कि किस तरीके से गौरी ने एक खास धर्म के खिलाफ हेट स्पीच दिया। गौरी ने अपने एक इंटरव्यू में कथित तौर पर कहा था कि जिस तरह इस्लाम हरा आतंकवाद है, उसी तरीके से क्रिश्चनिटी सफेद आतंकवाद है।
कोर्ट पहुंचा था विक्टोरिया का मामला
एल. विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट में एडिशनल जज बनाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी गई थी, लेकिन पीठ ने याचिका खारिज कर दी थी। जस्टिस संजीव खन्ना और बीआर गवई की पीठ ने कहा कि सारे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विक्टोरिया के नाम की सिफारिश की गई है। याचिकाकर्ता वकील रामचंद्रन ने गौरी द्वारा भड़काऊ भाषण दिए जाने का मामला उठाया, लेकिन जज ने कहा कि अयोग्यता के सवाल पर चुनौती दी जा सकती है, लेकिन सूटेबिलिटी के मामले में कोर्ट नहीं पड़ेगा। रामचंद्रन ने 1992 के एक मामले का उदाहरण दिया था, जिसमें कोर्ट ने शपथ लेने से ऐन पहले जज की नियुक्ति का फैसला बदल दिया था। वह फैसला योग्यता के आधार पर सुनाया गया था।