सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाए जाने के बाद एक बार फिर जजों के पोस्ट रिटायरमेंट जॉब की बहस ने जोर पकड़ा। न्यायिक बिरादरी के लोगों को अक्सर इस सवाल का सामना करना पड़ता है कि क्या रिटायरमेंट से पहले जज पोस्ट रिटायरमेंट बेनिफिट की उम्मीद में फैसला देता है?
राजनीतिक दलों, खास कर सत्ताधारी पार्टियों पर भी यह तोहमत लगता रहा है कि वह अपने पक्ष में फैसला कराने के एवज में जजों को सेवानिवृत्ति के बाद लाभ पहुंचाते हैं। जनसत्ता डॉट कॉम के संपादक विजय कुमार झा को दिए इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता को भी इस सवाल का सामना करना पड़ा कि क्या उन्हें रिटायरमेंट के बाद सरकार की तरफ से कोई पद ऑफर हुआ था?
साल 2020 में उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत हुए दीपक गुप्ता ने कहा कि मैं इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा। सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन कुछ हिंट आया था। लेकिन मैं इस व्यक्तिगत बहस में नहीं पड़ता चाहता कि मुझे ऑफर मिला था या नहीं। पर, इस मुद्दे पर उन्होंने अपनी राय जरूर रखी।
पोस्ट रिटायरमेंट जॉब पर जस्टिस (रि.) गुप्ता की राय
जस्टिस गुप्ता ने स्पष्ट कहा कि मेरा यह मानना है कि किसी भी जज को रिटायरमेंट के बाद नौकरी नहीं लेनी चाहिए। यही कारण है कि लोगों के बीच न्यायपालिका को लेकर एक विशेष तरह की धारणा बनती है। रिटायरमेंट के बाद कई जजों ने अच्छा काम किया लेकिन लोगों के बीच यह परसेप्शन बनता है कि अमुक फैसला इसलिए ‘इस तरह’ डिसाइड हुआ क्योंकि जज साहब रिटायर होने वाले हैं। और रिटायरमेंट के बाद उन्हें कोई पोस्ट मिल जाएगा।
दीपक गुप्ता कहते हैं, “इससे न्यायपालिका की छवि पर धब्बा लगता है। इसलिए ऐसा चांस ही क्यों लेना। इसलिए मेरा स्पष्ट मानना है कि एक बार आप रिटायर हो गए, तो कोई और नौकरी नहीं लेनी चाहिए।” उन्होंने कहा कि जब आपने रिटायर कर दिया मतलब उस काम के लायक नहीं पाया तो फिर दूसरे काम के लायक कैसे पा सकते हैं?
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में खुद संज्ञान लेकर दिशानिर्देश नहीं बनाना चाहिए तो उनका कहना था जब सुप्रीम कोर्ट के जज ही पोस्ट ले रहे हैं तो सुप्रीम कोर्ट भी क्या गाइडलाइन देगा।”
रिटायर्ड जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा, “अरुण जेटली जी बोलते थे कि रिटायरमेंट की एक ही उम्र होनी चाहिए। पोस्ट रिटायरमेंट कोई बेनिफिट नहीं मिलना चाहिए। मैं उनकी बात से बिल्कुल सहमत हूं।” बता दें कि दिवंगत भाजपा नेता और पूर्व कानून मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि रिटायरमेंट के पहले जज इस उम्मीद में फैसले देते हैं कि रिटायरमेंट के बाद नौकरी मिलेगी। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)
पोस्ट रिटायरमेंट जॉब पर क्या कहते हैं जस्टिस लोकुर?
जनसत्ता डॉट कॉम को ही दिए इंटरव्यू में जस्टिस मदन बी लोकुर ने पोस्ट रिटायरमेंट जॉब पर दो तरह के विचार रखे थे। उन्होंने कहा था, “अगर कोई जज रिटायर हो जाए और उसे कोई नॉन जुडिशल जॉब मिले तो नहीं लेना चाहिए। जैसे- अगर किसी को कह दिया गया कि आप गवर्नर बन जाइए या मेंबर ऑफ पार्लियामेंट बन जाइए, तो इस टाइप के जॉब लेने नहीं चाहिए। अगर लेना भी है तो एक कूलिंग पीरियड के बाद लेना चाहिए।
दूसरी बात यह कि अगर रिटायरमेंट के बाद कोई ऐसा काम मिल जाए, जिसका जुडिशरी से कोई संबंध हो, जैसे- ट्रिब्यूनल्स हैं। वहां मामलों का निपटारा करना होता है। इस तरह का जॉब लेने में कोई हर्ज नहीं है। पर उसमें भी कूलिंग पीरियड होना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए आप आज रिटायर हों और कल सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में कोई पद मिल जाए। एक कूलिंग पीरियड जरूरी है।” (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)
एक हो HC-SC के जजों की रिटायरमेंट एज
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता की राय है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की रिटायरमेंट की उम्र एक होनी चाहिए। वह कहते हैं, “काम हम एक जैसा करते हैं। अगर रिटायरमेंट की उम्र एक हो जाती है तो हाईकोर्ट के बहुत से जज सुप्रीम कोर्ट आना ही नहीं चाहेंगे।