Gujarat Assembly Election: गुजरात विधानसभा चुनाव में अरबपति उम्मीदवारों (Billionaire Candidates) की चर्चा खूब हो रही है। 2012 के विधानसभा चुनाव में 100 करोड़ से अधिक संपत्ति वाले सिर्फ दो उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था।

उसके बाद हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में अरबपति उम्मीदवारों की संख्या बढ़कर सात हो गई थी। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी सात अरबपति उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, जिनमें से पांच भाजपा के हैं।

इस सूची में द्वारका से भाजपा उम्मीदवार पबुभा मानेक (Pabubha Manek) का नाम भी शामिल है, जिनकी संपत्ति की कीमत में पिछले पांच सालों में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

हालांकि गुजरात में एक ऐसे नेता भी हुआ करते थे, जो विधायक बनने के बावजूद अपनी ईमानदारी की वजह से प्रचंड गरीबी में मरे। चुनाव हारने के बाद दिहाड़ी मजदूरी के लिए काम खोजते रहे। वह नेता थे – माणेक तडवी

क्या है माणेक तडवी की कहानी?

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, माणेक तडवी (Manek Tadvi) छोटा उदेपुर कस्बे के पान का ठेला लगाया करते थे। सार्वजनिक जीवन में सक्रिय तडवी लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे।

उनकी इसी लोकहितवादी छवि की वजह से साल 1967 के गुजरात विधानसभा चुनाव में स्वतंत्र पार्टी ने उन्हें जेतपुर निर्वाचन क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया। माणेक उस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को 3000 से अधिक मतों से हराकर विधायक बने। माणेक को 13358 वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस उम्मीदवार के.जी. नाईक को 10016 वोट ही मिले थे।

तडवी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए निस्वार्थ भाव से काम किया। इस लोकप्रिय विधायक ने मतदाताओं का प्यार और सम्मान तो खूब अर्जित किया लेकिन अपने लिए धन-संपत्ति नहीं जमा किया। उन्होंने अपने जीवन का आखिरी वक्त बेहद गरीबी में गुजारा। विधायक रहने के बावजूद वह अपने दो बेटों और पत्नी को ग़ुर्बत में छोड़कर मरे।

चुनाव हारने के बाद करने लगे थे दिहाड़ी मजदूरी

अब ट्रक ड्राइवर के रूप में काम करने वाले तडवी के बेटे विजय कहते हैं, ”वह एक ईमानदार व्यक्ति थे जो लोगों की सेवा करने के लिए राजनीति में आए थे। अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने विकास के लिए काम किया और बदले में कुछ भी उम्मीद नहीं की। उस समय, कई राजनेता संपत्ति या वित्तीय लाभ अर्जित करने में विश्वास नहीं करते थे।” पूर्व विधायक माणेक तडवी के दूसरे बेटे दिलीप एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करता है और मुश्किल से रोज 100 रुपये कमा पाते हैं।

छोटा उदेपुर के निवासी विजयसिंह वसंदिया बताते हैं, ”तडवी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र जेतपुर में विभिन्न विकास कार्य किए। लेकिन 1972 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद वह वापस सड़क पर आ गए। किसी ने उनकी मदद नहीं की।”

एक स्थानीय निवासी बताते हैं कि, ”माणेक तडवी की हालत दयनीय थी। मुझे याद है कि वह दिहाड़ी मजदूरी की तलाश में बाजार जाया करते थे। उनकी पान की दुकान थी लेकिन इससे उन्हें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी।”

चुनाव हारने के बाद तडवी ने एक छोटी आटा चक्की शुरू की थी। लेकिन उनका यह कारोबार नहीं चल पाया। फिर वह अपने जीवनयापन के लिए अन्य छोटे-मोटे काम करने लगे। इसी तरह गरीबी में उनकी मौत हो गई। फिर घर चलाने के लिए उनकी पत्नी सविता ने भी कड़ा संघर्ष किया। तीन साल पहले सविता तड़वी का भी निधन हो गया। अब छोटा उयदपुर में पूर्व विधायक के दो बेटे गरीबी में अपना जीवन बिता रहे हैं।