हाल में भारत की यात्रा से लौटकर अमेरिका पहुंचे सीएनएन के पत्रकार और लेखक फरीद जकारिया (Fareed Zakaria) ने भारत के विकास और उसकी चुनौतियों का विश्लेषण किया है। भारतीय मूल के अमेरिकी पत्रकार फरीद ने अपने शो ‘ग्लोबल पब्लिक स्क्वायर’ (Global Public Square) में अपनी भारत यात्रा के बारे में बात करते हुए कहा है कि जहां अमेरिका और यूरोप जैसे देशों के लोगों को आर्थिक मंदी की चिंता सता रही है, वहीं भारतीय अपने भविष्य को लेकर उत्साहित हैं। हालांक‍ि, जकार‍िया ने भारतीय प्रधानमंत्री के दावों पर सवाल भी उठाए हैं और याद द‍िलाया है क‍ि ‘इनक्रेड‍िबल इंड‍िया’ का प्रचार कर जो दावे क‍िए गए थे, वे पूरे नहीं हो सके।

‘2006 में आज से ज्‍यादा हो रहा था व‍िकास’

फरीद जकारिया ने ट्विटर हैंडल पर अपना एक वीडियो क्लिप शेयर किया है, जिसमें वह कह रहे हैं, “इस सप्ताह भारत का दौरा करते हुए, मैं यह देखकर दंग रह गया कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों की तुलना में वहां का मिजाज कितना अलग था। जहां अमेरिका और यूरोप के लोग महंगाई और संभावित मंदी को लेकर चिंतित हैं, वहीं भारतीय अपने भविष्य को लेकर उत्साहित हैं। भारत अब इस ग्रह पर सबसे अधिक आबादी वाला देश है और इस वर्ष 5.9 प्रतिशत की दर से इसकी सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था होने का अनुमान है।”

वह आगे कहते हैं, हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि “भारत का समय आ गया है”। मेरी चिंता यह है कि मैं यह फ‍िल्‍म पहले भी देख चुका हूं। मुझे याद है साल 2006 में मैं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के लिए दावोस गया था। उस छोटे से स्विस शहर को ‘इनक्रेडिबल इंडिया’ की होर्डिंग और बिलबोर्ड से पाट द‍िया गया था। दावा किया जा रहा था कि भारत दुनिया का तेजी से बढ़ता हुआ फ्री मार्केट डेमोक्रेसी है। जबक‍ि उस वक्त भारत अभी की तुलना में अधिक तेजी से ग्रोथ (नौ प्रतिशत) कर रहा था।

Fareed Zakaria Video
Screengrab/Fareed Zakaria Video

तब भारत के वाण‍िज्‍य मंत्री ने मुझसे पूरे विश्वास के साथ भविष्यवाणी की थी कि भारतीय अर्थव्यवस्था जल्द ही चीन से आगे निकल जाएगी। हालांकि यह सही साबित नहीं हुई। कुछ वर्षों के बाद विकास थम गया, आर्थिक सुधार ठप हो गए। कई विदेशी व्यवसाय जो बड़े आत्मविश्वास के साथ भारत गए थे, निराश हुए। कुछ तो पूरी तरह से वहां से निकल आए। जहां तक चीन को मात देने की बात है, अपनी धीमी रफ्तार के बावजूद, चीनी अर्थव्यवस्था आज भारतीय अर्थव्यवस्था से लगभग पांच गुना बड़ी है।

भारत की तीन क्रांतियां

जकारिया का मानना है कि हाल में भारत के भीतर तीन क्रांतियां हुई हैं। वह कहते हैं, “साल 2000 के दशक के मध्य में जो उत्साह था, नतीजे वैसे नहीं न‍िकले। फ‍िर भी, देश ने प्रगति करना जारी रखा। भारत 20 वर्षों से चीन के बाद दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। हाल के सालों में भारत के भीतर तीन क्रांतियां हुई हैं, जिससे देश ने तेजी से विकास किया।

पहली है आधार क्रांति: इससे भारत के सभी नागरिकों को 12 संख्या का एक यूनिक नंबर मिल गया है, जिसे फिंगर प्रिट और आंखों की पुतलियों को स्कैन कर वैरिफाइ किया गया है। नोबेल विनर Paul Romer के शब्दों में कहें तो यह दुनिया का सबसे सोफिस्टिकेटेड आईडी प्रोग्राम है। आज भारत के 99.9 प्रतिशत व्यस्क भारतीयों के पास यूनिक आईडी है, जिससे तुरंत उनके पहचान की पुष्टि हो सकती है। आधार जरिए मिनटों में बैंक अकाउंट खोला जा सकता है और यह मैंने खुद देखा है। इसके जरिए आप सरकार मिलने वाली आर्थिक मदद का सीधा लाभ उठा सकते हैं।

आधार सभी भारतीय के लिए नि:शुल्क है। लेकिन इसकी सबसे प्रमुख विशेषता यह है इसका स्वामित्व सरकार के पास है और इसे सरकार ही चलाती है। जबकि पश्चिमी देशों में गूगल या फेसबुक जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म निजी हाथों में है, जो कमाई के लिए लोगों का डेटा बेच कर सकते हैं।

दूसरी है जियो क्रांति: भारत के सबसे बड़े और सबसे महत्वाकांक्षी बिजनेस लीडर मुकेश अंबानी ने 46 अरब डॉलर का दांव लगाया। यह सोच कर कि वह सस्ता फोन और डेटा पैकेज मार्केट में उतार कर अधिकांश भारतीयों को इंटरनेट पर ला सकते हैं। उनका यह आइडिया काम कर गया। अब 700 मिलियन से अधिक भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। अमेरिका और चीन के डेटा कंजप्शन को मिला दें, उससे ज्यादा भारत में इंटरनेट इस्तेमाल होता है।

तीसरा है इंफ्रास्ट्रक्चर रेवोल्यूशन: भारत आने वाले किसी भी व्यक्ति को यह स्पष्ट रूप से दिखता है। सड़कों, हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों और ऐसी अन्य परियोजनाओं पर बेतहाशा खर्च हुआ है। वित्त वर्ष 2014 से सरकारी पूंजीगत व्यय 5 गुना बढ़ गया है। नेशनल हाईवे बनाने का काम अब दोगुना हो गया है। ऐसे ही बंदरगाहों और हवाईअड्डों की संख्या भी बढ़ी है।”

भारत बदल सकता है लेकिन…

भारत की चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए जकारिया कहते हैं, “ये तीन क्रांतियां इस बार सच में भारत को बदल सकती हैं। देश की सबसे बड़ी चुनौती में इन क्रांतियों का सहयोग मिले तो देश बदल सकता है। लाखों भारतीयों अभी भी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से हाशिये पर हैं। 2019 तक भारत के 45 प्रतिशत लोग मात्र 250 रुपये प्रतिदिन में गुजारा कर रहे थे।

यूआईडीएआई के पूर्व चेयरमैन नंदन नीलेकणि बताते हैं कि आधार से किस तरह जॉब क्रिएट किया जा सकता है। उन्होंने मुझे बताया था कि अगर 10 मिलियन छोटे बिजनेसमैंन लोन लेते हैं और दो लोगों को भी काम पर रखते हैं तो 20 मिलियन नए जॉब क्रिएट होंगे।

जकारिया ने आगे कहा कि समावेशिता भी एक बड़ी चुनौती। भारतीय महिलाओं पर अभी भी कई तरह से दबाव डाला जाता है कि वे घर से बाहर काम न करें। समावेशिता पर ध्यान देने से भारत के धार्मिक तनाव भी बदल जाएंगे, भारत के मुसलमान जो करीब-करीब 200 मिलियन लोग वह लगातार उत्पीड़न का सामना करते हैं।”