इस साल अप्रैल में संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद क्रिमिनल प्रोसीजर आइडेंटिफिकेशन एक्ट गुरुवार (4 जुलाई) से लागू हो चुका है। नए कानून के लागू होने के साथ ही पुराना ‘आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1920’ रद्द हो गया है। पुराने कानून के तहत सिर्फ फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट का रिकॉर्ड लेने की इजाजत थी। वहीं नए कानून के तहत फिंगरप्रिंट, फुटप्रिंट, हथेलियों के प्रिंट, फोटो, आंखों का आइरिस और रेटिना का रिकॉर्ड भी रखा जाएगा। साथ ही पुलिस अब फिजिकल और बायोलॉजिकल सैंपल भी ले सकती है।

विपक्षी इस कानून की तीखी आलोचना कर रही है। विपक्षी दल के नेताओं ने संसद के दोनों सदनों में इसका विरोध किया था लेकिन सरकार ध्वनिमत से विधेयक पास करवाने में सफल रही थी। विपक्ष का आरोप है कि यह कानून व्यक्ति की निजता और स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। इससे सरकार को बेलगाम शक्ति मिलेगी, जिसका दुरुपयोग किया जा सकता है। आइए समझते हैं क्या है Criminal Procedure (Identification) Act, 2022 और क्यों इसे निजता के उल्लंघन से जोड़ा जा रहा है?

क्या कहता है कानून?

नए कानून के तहत पुलिस किसी क्रिमिनल केस में दोषी पाए गए व्यक्ति के साथ-साथ आरोपियों के भी फिंगरप्रिंट, फुटप्रिंट, हथेलियों के प्रिंट, फोटो, आंखों का आइरिस और रेटिना का रिकॉर्ड ले सकती है। फिजिकल और बायोलॉजिकल नमूने जैसे- रक्त, वीर्य, स्वाब और बालों का सैंपल भी ले सकती है। हैंडराइटिंग और सिग्नेचर का रिकॉर्ड देने से भी नहीं मना किया जा सकता। किसी निवारक निरोध कानून के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति के भी ये सारे रिकॉर्ड लिए जाएंगे।

किसका रिकॉर्ड नहीं लिया जा सकेगा?

नए कानून के तहत भी राजनीतिक बंदियों का कोई रिकॉर्ड नहीं लिया जाएगा। इसके अलावा अगर किसी मामले में 7 साल से कम की सजा हो और अपराध महिला या बच्चों से न जुड़ा हो, तो अपराधी को बायोलॉजिकल सैंपल ना देने की छूट होगी। हालांकि इस परिस्थिति में भी अन्य सैंपल देने होंगे।

75 साल तक रखा जाएगा रिकॉर्ड

इन सैंपल्स का रिकॉर्ड केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो रखेगी। NCRB को इन रिकॉर्ड्स को 75 साल तक स्टोर रखना होगा। उसके बाद NCRB के पास ही यह अधिकार होगा कि वह डेटा नष्ट करना चाहता है या भविष्य के लिए रखना चाहता है।

हालांकि अगर कोई व्यक्ति आपराधिक मामले में कोर्ट से बरी हो जाता है, तो अदालत के आदेश पर NCRB को डाटा डिलीट करना होगा। यदि व्यक्ति पर एक से अधिक मामले हैं और एक ही मामले में बरी हुआ है तो रिकॉर्ड रखा जाएगा।

रिकॉर्ड देने से मना करने पर क्या होगा?

नए कानून के लागू होने के बाद रिकॉर्ड देने से मना करने वालों के खिलाफ IPC की धारा 186 के तहत कार्रवाई होगी। अदालत 3 महीने की जेल, 500 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा सुना सकती है।

विपक्ष का तर्क

इस कानून पर संसद में बहस के दौरान कई विपक्षी सदस्यों ने कई प्रावधानों पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की थी। विपक्ष को डर था कि कानून में वर्णित शब्द ‘बायोलॉजिकल  नमूने और उनके विश्लेषण’ से नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिंग हो सकती है। इसका तात्पर्य है कि सैंपल लेने के लिए बल का प्रयोग किया जाएगा, जो कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन है। भारत में 2010 से नार्को टेस्ट करना गैरकानूनी है।