देश की सीमा पर निगरानी के लिए एके-47 से लैस ड्रोन बनाने की तैयारी की जा रही है। कृत्रिम मेधा के इस्तेमाल से यह ड्रोन गश्त के दौरान दुश्मनों की पहचान कर लक्ष्य पर स्टीक निशाना साध सकेगा। इसकी एक खासियत यह होगी कि लक्ष्य पर वार करने के लिए यह 180 डिग्री तक आसानी से घूम सकेगा।
भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के दौरान सीमा पार से किए गए ड्रोन हमलों को नाकाम करने के बाद भविष्य में ऐसी किसी चुनौती से निपटने के लिए एके 47 से लैस ड्रोन विकसित करना ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तौर पर प्रौद्योगिकी में नवाचार का हिस्सा है। दुनिया के अलग-अलग देशों के बीच हाल के दिनों में युद्ध में ड्रोन के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए भारत के ड्रोन विनिर्माता भी ऐसी तमाम चुनौतियों का सामना करने के लिए नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत में फिलहाल रेकी या निगरानी के लिए लक्ष्य पर निशाना साधने और फर्स्ट पर्सन व्यू (एफपीवी) के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा।
किसी भी लक्ष्य पर वार करने के लिए 180 डिग्री तक आसानी से घूम सकेगा
एके-47 से लैस किए जाने वाले ड्रोन की खासियत होगी कि यह किसी भी लक्ष्य पर वार करने के लिए 180 डिग्री तक आसानी से घूम सकेगा। कैमरे से जरिए दुश्मन के ठिकाने या लक्ष्य की पहचान कर कृत्रिम मेधा के जरिए यह दुश्मनों पर लगातार गोलियों की बौछार करने में सक्षम होगा। इसके विनिर्माण में शामिल कंपनियां कृत्रिम मेधा के साथ एकीकृत कर इसे जमीन से वार करने के लिए पूरी तरह सक्षम बनाएगी।
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आइआइटी गुवाहाही के सेंटर फार ड्रोन रिसर्च के शोधार्थी सुधाकर कनौजिया के मुताबिक, ड्रोन प्रौद्योगिकी में सुरक्षा के लिहाज से ऐसे प्रावधान किए जाते हैं ताकि दुश्मन इसकी टोह नहीं लगा सकें। इतना ही नहीं, हैकिंग का खतरा नहीं रहे, इसके लिए भी अलग संचार तकनीक का इस्तेमाल होता है जो बेहद सुरक्षित है। लक्ष्य पर निशाना साधने वाले ड्रोन का भारत में विनिर्माण किया जा रहा है। इनमें में कुछ ऐसे होते हैं, जिनका एक बार इस्तेमाल होता है जबकि बड़े मंच के लिए कुछ ऐसे ड्रोन भी हैं जो कई बार हमले के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इसमें विशेष तरह की सुरक्षा प्रणाली लगी होती हैं। रक्षा के लिए उपयोग किए जाने वाले ड्रोन का दुश्मन को पता नहीं चल सके, इसके लिए भी प्रावधान किए जा सकते हैं।
रूस और यूक्रेन की लड़ाई में आप्टिकल फाइबर केबल के जरिए भी ड्रोन का संचालन किया जा रहा है। दूसरी प्रणाली से अधिक सुरक्षित होने के बावजूद कम दायरा होने की वजह से निगरानी में इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाता है। ड्रोन डेस्टिनेशन के चिराग शर्मा ने बताया कि तार (केबल) से ही ड्रोन को उड़ने के लिए ऊर्जा प्रदान की जाती है। छोटे आकार के ऐसे ड्रोन से पतंग की डोर की तर्ज पर जुड़े ओएफसी केबल के जरिए उन्हें उड़ने के लिए ऊर्जा मिलती रहती है। इसके लिए न तो बैटरी की जरूरत होती है और संचार माध्यम अलग होने की वजह से इसे पहचानना या नुकसान पहुंचाना भी असंभव है।