संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित समारोह में देश के मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना ने द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) को 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई। इसके बाद मुर्मू को 21 तोपों की सलामी दी गई। वह भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं।

शपथ ग्रहण समारोह के मौके पर मुर्मू ने कहा, ”मैं जनजातीय समाज से हूँ और वार्ड काउंसलर से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तक का अवसर मुझे मिला है। यह लोकतंत्र की जननी भारतवर्ष की महानता है। ये हमारे लोकतंत्र की ही शक्ति है कि उसमें एक गरीब घर में पैदा हुई बेटी, दूर-सुदूर आदिवासी क्षेत्र में पैदा हुई बेटी, भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती है। राष्ट्रपति के पद तक पहुँचना, मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है। मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है।”

सपना क्या देखें, जब दुःस्वप्न से भी बुरी आदिवासियों की जिंदगी!

जब से द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने की चर्चा शुरू हुई थी, तभी से उनकी आदिवासी पहचान बहस के केंद्र में थी। अब मुर्मू राष्ट्रपति बन चुकी हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि देश में आदिवासियों की स्थिति में सुधार आएगा। जैसा कि पिछली बार कोविंद के राष्ट्रपति बनने परे उम्मीद की गई थी कि दलितों की स्थिति में सुधार आएगा।

मुर्मू अपनी जिंदगी के सफर का उदाहरण देकर आदिवासियों को सपना देखने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। लेकिन वो बेगुनाह आंखें सपना कैसे देखें, जो गुनाह साबित होने के इंतजार में सालों बिता देते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2020 के आंकड़े बताते हैं कि देश की जेलों कुल अंडर ट्रायल कैदियों में से 73% दलित-आदिवासी हैं। आदिवासी भारत की कुल आबादी का करीब 8.6% हैं। लेकिन सभी विचाराधीन कैदियों में आदिवासी लगभग 10% और सभी दोषियों में लगभग 14% हैं।

इसी माह यूएपीए समेत अन्य गंभीर धाराओं में पांच से कैद 121 आदिवासियों को दंतेवाड़ा की एनआईए कोर्ट ने रिहा किया। उन्हें सुकमा के बुरकापाल में हुए माओवादी हमले के बाद गिरफ्तार किया गया था। हालांकि साबित कुछ भी न हो सका। आदिवासियों के लिए कानून लड़ाई लड़ने वाली डॉ बेला भाटिया ने बीबीसी को बताया कि 24 अप्रैल 2017 को 120 आदिवासी बिना किसी जांच पड़ताल गिरफ्तार कर लिए गए थे।

आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लिए ऐसी घटनाएं आम हैं। पांच साल बेगुनाही की सजा काटकर लौटे मड़कम राजा बताते हैं कि उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वह चिंतागुफा थाना के एक गांव में रहते हैं।

प्रतिनिधित्व की कमी से भी जूझ रहा है आदिवासी समाज

अक्टूबर 2021 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने 19 मंत्रालयों का डेटा पेश किया था। उन आंकड़ों के मुताबिक, 19 मंत्रालयों में अनुसूचित जाति के 18,898 (15.34%) और अनुसूचित जनजाति 7,608 (6.18%) नौकरी करते हैं। इन आंकड़ों से पता चलता है कि आदिवासियों को आज भी उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।

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