दक्षिण अफ्रीका की ‘द जैगर्सफोंटीन माइन’ (The Jagersfontein Mine) अपने सर्वश्रेष्ठ हीरों के लिए चर्चित है। इस खदान से अब तक 96 लाख कैरेट से ज्यादा खूबसूरत हीरे निकल चुके हैं। साल 1895 में इस खदान से एक ऐसा हीरा निकला जो कोहिनूर से दोगुना बड़ा था। 245.35 कैरेट का यह चमचमाता हीरा बेहद खूबसूरत था और इसकी शुद्धता अकल्पनीय थी। साल 1896 में इस हीरे को तराशने लिए एम्सटर्डम भेजा गया।
कैसे पड़ा हीरे का नाम जुबली?
अगले साल यानी 1897 में ब्रिटेन की महारानी क्वीन विक्टोरिया की डायमंड जुबली थी और उनके सम्मान में हीरे को नाम दिया गया ‘जुबली’। उस वक्त इस हीरे के मालिक लंदन के तीन व्यापारी हुआ करते थे और वो इसे महारानी को तोहफे में देने की सोच रहे थे, लेकिन नियति ने कुछ और लिखा था। साल 1900 में इस हीरे को पेरिस की एक प्रदर्शनी में रखा गया। टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा भी उस प्रदर्शनी में गए थे।
टाटा ने एक लाख पाउंड में खरीदा
दोराबजी टाटा ने 2 साल पहले ही 1898 में वैलेंटाइन डे पर मेहेरबाई से शादी की थी और। उन्होंने अपनी पत्नी को ‘जुबली’ हीरा तोहफे में देने का फैसला ले लिया था। हरीश भट, पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब ‘टाटा स्टोरीज’ में लिखते हैं कि दोराबजी ने लंदन के व्यापारियों से एक लाख पाउंड में हीरा खरीद लिया। मेहेरबाई टाटा ने इसे प्लेटिनम चेन के साथ प्लेटिनम लॉकेट में गले का हार बना लिया। जब वह पारसी साड़ी के साथ इस हार को पहनती थीं तो खूबसूरती देखते बनती थी।
लंदन में रखते थे हीरा
भट लिखते हैं कि दोराबजी टाटा ने इस हीरे का भारी भरकम बीमा भी कराया था और हीरा लंदन के सेफ डिपॉजिट वॉल्ट में रखा रहता था। मेहेरबाई जब कभी इस हीरे को पहनने के लिए निकालती थीं तो बीमा कंपनी उन पर 200 पाउंड का जुर्माना लगा देती थी।
टाटा स्टील को बचाने के लिए हीरा रख दिया गिरवी
हरीश भट लिखते हैं कि इसी दौर में दोराबजी टाटा, टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने। 1923 आते-आते वित्तीय संकट आ गया और टाटा ग्रुप लड़खड़ाने लगा। 1924 में जमशेदपुर से टेलीग्राम मिला कि स्टील कंपनी के कर्मचारियों को देने के लिए वेतन के पैसे तक नहीं बचे हैं। सब को लगने लगा कि कंपनी बंद हो जाएगी। दोराबजी टाटा और उनकी पत्नी मेहेरबाई ने तय किया कि अपनी पूरी प्रॉपर्टी इंपीरियल बैंक में गिरवी रख देंगे, ताकि टाटा स्टील के लिए धन का इंतजाम किया जा सके। उनकी संपत्ति करीब एक करोड़ रुपए की थी, जो उसे दौर में बहुत बड़ी रकम थी। इस संपत्ति में मेहेरबाई के आभूषण और जुबली हीरा भी शामिल था।
1937 में बेच दिया था
इंपीरियल बैंक ने टाटा को इस संपत्ति के बदले एक करोड़ रुपये का लोन दे दिया। टाटा स्टील की हालत सुधरने लगी। 1930 आते-आते टाटा स्टील फिर समृद्ध होने लगा। हालांकि 1931 में मेहेरबाई टाटा का निधन हो गया। इसके अगले ही साल दोराबजी टाटा भी चल बसे।
उन्होंने अपनी वसीयत में निजी संपत्ति दोराबजी टाटा चैरिटेबल ट्रस्ट को सौंप दी थी, जिसमें जुबली हीरा भी शामिल था। साल 1937 में जुबली हीरा कार्टियर के जरिए बेचा गया और इससे मिली रकम ट्रस्ट को सौंप दी गई।