Diwali Firecrackers Ban: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर पटाखों को लेकर कड़ा रुख दिखाया है। मंगलवार (07 नवंबर, 2023) को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पटाखों को लेकर उनका पुराना आदेश सिर्फ दिल्ली-एनसीआर के लिए नहीं था, बल्कि पूरे देश के लिए था।

न्यायालय ने यह स्पष्टीकरण एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए दिया। दरअसल, कोर्ट से यह मांग की गई थी कि वह राजस्थान सरकार को पटाखों को रोक लगाने का निर्देश दे। कोर्ट ने कहा कि नए निर्देश की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने राजस्थान को पिछले आदेशों पर विशेष ध्यान देने का निर्देश दिया और दोहराया कि उसके आदेश देश के सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी हैं।

पिछले कुछ वर्षों से हर बार त्योहार के सीजन, विशेषकर दिवाली के आसपास सुप्रीम कोर्ट को पटाखों को लेकर कुछ न कुछ कहना ही पड़ता है। बावजूद इसके भारत में अब भी पटाखों का खूब इस्तेमाल होता है। पटाखा इंडस्ट्री भी लगातार बढ़ रही है।

भारत में पटाखा इंडस्ट्री

भारत पटाखा उत्पादन के मामले में दूसरे नंबर पर है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के बाद भारत में ही सबसे अधिक पटाखे बनाए जाते हैं। दुनिया के सबसे बड़े पटाखा उद्योगों में से एक होने के नाते हम इसे विदेशी राजस्व में बदलने की क्षमता रखते हैं। लेकिन अधिकांश देशों में पटाखों के आयात के लिए जो दिशानिर्देश हैं, उन्हें भारत पूरा करने में विफल रहता है। यही वजह है कि भारत किसी भी पटाखे का निर्यात नहीं करता है।

देश में कुल जितने पटाखे बनते हैं, उसमें से 85 प्रतिशत का उत्पादन तमिलनाडु के शिवकाशी के पास होता है। 20वीं सदी की शुरुआत में दो चचेरे भाई ए. शनमुगा नादर और पी. अय्या नादर अपने गृह नगर शिवकाशी (वर्तमान विरुधुनगर जिले का एक क्षेत्र) से कलकत्ता गए। उन्हें यह सीखना था कि माचिस का बिजनेस कैसे चलाया जाता है।

जब लौटे तो अपने साथ पटाखे बनाने का ज्ञान भी लेकर आये। उनके उद्यम की बदौलत, शिवकाशी ‘भारत का छोटा जापान’ और आतिशबाजी की राजधानी के रूप में विकसित हुआ। कई दशकों से आतिशबाजी उद्योग स्थानीय लोगों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी साबित हुआ है। अब बिजनेस को अय्या नादर के पोते जी. अबीरुबेन संभालते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीनी पटाखों के आयात पर प्रतिबंध ने घरेलू पटाखा उद्योग को बड़ा प्रोत्साहन मिला।

साथ ही उद्यमियों ने कच्चे माल के उत्पादन की इकाइयां शुरू कर इसका दायरा बढ़ाया। अंग्रेजी अखबार द हिंदू से अबीरुबेन कहते, “वे दिन गए जब फुलझड़ियों के लिए जर्मन तांबे-लेपित माइल्डस्टील तारों वाले धातु के बक्से आयात किए जाते थे।”

शुरुआती दशकों में मुट्ठी भर इकाइयां थीं। 100 साल में 500 से अधिक इकाइयां स्थापित हो गई हैं। अबीरूबेन बताते हैं, “हवाई आतिशबाजी के आगमन ने पिछले 20 वर्षों में उद्योग का चेहरा बदल दिया है। हम विश्व स्तरीय मानक की आतिशबाजी बनाते हैं, और सभी स्वदेशी तकनीक से बनाते हैं।”

हालांकि यह जश्न का समय नहीं है क्योंकि भारत में पूरा पटाखा उद्योग ही वायु प्रदूषण को लेकर कानूनी झगड़े में उलझा हुआ है। ऐसा लगने लगा है कि भारत में इस उद्योग का भविष्य अंधकारमय है।

हालांकि पिछले साल भारत में पटाखा इंडस्ट्री में बूम देखने को मिला था। दिल्ली को छोड़कर पूरे देश में खुदरा पटाखों की बिक्री लगभग ₹6,000 करोड़ तक बढ़ गई थी। पटाखों की कीमत में वृद्धि और महामारी के कारण दो वर्ष की मंदी के बावजूद पिछले वर्ष पटाखा इंडस्ट्री ने शानदार बिजनेस किया था। पिछले साल का ट्रेंड 2016 और 2019 जैसा था।

तमिलनाडु फायरवर्क्स एंड एमोर्सेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TANFAMA) के मुताबिक, 2016 में ₹4,000 करोड़ और 2019 में ₹5,000 करोड़ की बिक्री हुई थी। पिछले साल पटाखों की सबसे अधिक बिक्री महाराष्ट्र में दर्ज की गई थी, इसके बाद उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात का स्थान था।

दुनिया में पटाखा इंडस्ट्री

The Observatory of Economic Complexity (OEC) की एक ऐसी वेबसाइट है, जो व्यापार से जुड़ा डेटा जुटती है। OEC पर पटाखा इंडस्ट्री से जुड़ा 2021 तक का डेटा है। OEC के मुताबिक दुनिया भर में पटाखों का ग्यारह हजार करोड़ रुपये (1,13,25,61,08,000) से ज्यादा का व्यापार होता है। पटाखों का सबसे बड़ा निर्यातक चीन ($912M) और सबसे बड़ा आयातक अमेरिका ($615M) है। यानी चीन सबसे ज्यादा पटाखे बेचता और अमेरिका सबसे ज्यादा खरीदता है। 2020 से 2021 के बीच में पटाखा इंडस्ट्री में 20.7% की उछाल आई थी।