सबसे कम उम्र में साहित्य का नोबेल पुरस्कार पाने वाले लेखक रुडयार्ड किपलिंग की कालजयी रचना ‘द जंगल बुक’ का प्रमुख पात्र ‘मोगली’ भारत के दीना सनीचर से प्रभावित बताया जाता है। 1894 में लिखी रुडयार्ड किपलिंग की इस किताब पर अब तक कई फिल्मों का निर्माण हो चुका है। किताब का मुख्य पात्र ‘मोगली’ अपने परिवार से बिछड़कर जंगल जानवरों के साथ पला-बढ़ा होता है। वह इंसानों की भाषा न बोलकर, जानवरों जैसी आवाज निकालता है। उसका चाल, चलन और स्वभाव सब कुछ जानवरों की तरह होता है।
जब सैनिक ने भेड़ियों के साथ देखा इंसानी बच्चा
ब्रिटिश सैन्य अफसर सर विलियम स्लीमन की किताब ‘जर्नी थ्रू किंगडम ऑफ अवध’ से पता चलता है कि शिकारियों का जंगल से एक ऐसे बच्चे को लाया था, जो जानवरों की तरह व्यवहार करता और उन्हीं के साथ रहता था। बच्चे का नाम दीना सनीचर रखा गया। स्लीमन के मुताबिक, उस वक्त भेड़िया आए दिन इंसानी बच्चों को उठाकर ले जाते थे। वह ज्यादातर को तो खा जाते। जो बचे वह उन्हीं भेड़ियों के साथ पले। वे उन्हीं की चलते, खाते और बर्ताव करते थे। स्लीमन अपनी किताब में ऐसे कुल 6 बच्चों का जिक्र करते हैं। जबकि दस्तावेज सिर्फ दीना सनीचर के ही उपलब्ध हैं।
सनीचर को एक सैनिक कुछ ग्रामीणों के साथ मिलकर 1872 में उत्तर प्रदेश के जंगल से उठाकर लाया था। वह उन्हें भेड़िये के झुंड के साथ मिला था। उसे सिकंदरा अनाथालय में रेवरेंड एरहार्ट की देखभाल में रखा गया था। स्लीमन अपनी किताब में लिखते हैं:
”सुल्तानपुर में एक लड़का है, जो करीब ढाई साल पहले सुल्तानपुर से करीब दस मील दूर चंदौर के पास भेड़ियों की मांद में जिंदा मिला था। टैक्स वसूलने के लिए जिले के स्थानीय राज्यपाल ने एक सैनिक को चंदौर भेजा था। सैनिक चंदौर के पास नदी के किनारे से गुजर रहा था, तभी उसने एक मांद से बड़ी भेड़िया को निकलते देखा। उसके पीछे तीन भेड़िए और एक छोटा लड़का था। लड़का भी भेड़ियों की तरह ही यानी दोनों हाथ और दोनों पैर का इस्तेमाल कर चल रहा था।
यह देख सिपाही वहां से भागा और चंदौर के कुछ लोगों को बुलाकर लाया। सभी ने मांद को खोदना शुरू किया। लगभग छह या आठ फीट की खुदाई के बाद भेड़िया और बच्चा मिले। उन्होंने वहां से भागने की कोशिश की लेकिन इंसानों ने पकड़ लिया। भेड़ियों को जाने दिया गया और इंसानी बच्चों को अनाथालय लाया गया।” बता दें कि सर विलियम स्लीमन जंगल बुक लिखने वाले किपलिंग के समकालीन थे। किपलिंग का जन्म भी भारत (बॉम्बे) में ही हुआ था।
सनीचर का स्वभाव
सनीचर को किसी बोली भाषा का ज्ञान नहीं था। इंसानों के साथ रहने के बाद भी उसने बोलना नहीं सीखा। वह बस भेड़ियों की आवाज निकालता था। अपने आखिरी समय तक उसे दो पैरों पर चलने में तकलीफ होती थी। कपड़ा पहनना उसे पसंद नहीं था।
खाने में केवल कच्चा मांस पसंद था। हालांकि बाद में पका हुआ भोजन भी खाने लगा लेकिन खाने से पहले खाना को सूंघने की उसकी आदत आजीवन बनी रही। उसकी किसी इंसान के साथ ज्यादा दोस्ती नहीं हुई। उसने इंसानों से सिर्फ धूम्रपान करना सीखा।
क्या सनीचर था किपलिंग का मोगली?
सनीचर की चर्चा 1872 से शुरू हुई। किपलिंग ने द जंगल बुक 1894 में लिखी। उस वक्त भारत के वुल्फ बॉय की दुनिया भर में चर्चा थी। किपलिंग के पिता जॉन लॉकवुड किपलिंग ने मूल “द जंगल बुक” के लिए चित्र बनाया था। जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में वास्तुकला पढ़ाने वाले किपलिंग के पिता ने अपनी किताब “बीस्ट एंड मैन इन इंडिया” में “भेड़िया-बच्चे की कहानियों” का उल्लेख किया। उनकी किताब 1891 में प्रकाशित हुई थी।
हालांकि रुडयार्ड किपलिंग ने कभी यह स्वीकार नहीं किया कि उनका मोगली सनीचर से प्रभावित था। उन्होंने अपनी आत्मकथा “समथिंग ऑफ माय सेल्फ” में बताया है कि वह “मेसोनिक लायंस ऑफ माय चाइल्डहुड मैगजीन” और एच. राइडर हैगार्ड के उपन्यास “नाडा द लिली” से प्रेरित थे, जिसमें एक आदमी और भेड़िये के बीच दोस्ती की कहानी है।
स्नोप्स डॉट कॉम पर प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, 1895 के अपने एक पत्र में किपलिंग बताते हैं कि उन्होंने इतने स्त्रोतों से उधार लिया था कि यह याद रखना असंभव है कि किसकी कहानियों से चोरी की है।