दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर स्थित राव स्टडी सर्कल कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भरने से तीन छात्रों की मौत के मामले ने सरकार से लेकर प्रशासन तक पर सवाल खड़े कर दिये हैं। इस मामले में पुलिस ने सोमवार को पांच और लोगों को गिरफ्तार किया है। इसके साथ ही अब तक सात लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इन लोगों में बिल्डिंग का मालिक, बेसमेंट का मालिक और वह व्यक्ति भी है जिसकी गाड़ी से टकराकर बिल्डिंग का गेट टूट गया था। इस मामले में MCD ने JE को बर्खास्त कर दिया है और AE को सस्पेंड कर दिया गया है।

एमसीडी और सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। एक तरफ जहां भाजपा और आम आदमी पार्टी इस मुद्दे पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं वहीं, एमसीडी और एनडीएमसी भी एक-दूसरे पर दोषारोपण कर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर देश की राजधानी होने के बावजूद हर साल जरा से बारिश से ही दिल्ली की सड़कों पर पानी कैसे भर जाता है और कई इलाके जलमग्न हो जाते हैं।

दिल्ली की 1976 के मास्टर प्लान पर निर्भरता

शहर में जलभराव का एक मुख्य कारण यह है कि दिल्ली 1976 में बने जल निकासी मास्टर प्लान पर काम कर रही है, जो केवल 50 मिमी बारिश को संभाल सकता है। यह प्लान तब बनाया गया था जब शहर की आबादी लगभग 60 लाख थी और तब से यह लगभग चार गुना बढ़ गई है।

साथ ही, पिछले कुछ सालों में कंक्रीट क्षेत्र (पक्‍का न‍िर्माण वाले इलाके) में भी वृद्धि हुई है। चूँकि वॉटर ड्रेनेज सिस्टम को अपग्रेड नहीं किया गया है, ऐसे में यह अतिरिक्त पानी को संभालने में असमर्थ है।

पिछले साल दिल्ली में 9-10 जुलाई को 153 मिमी बारिश होने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि शहर का वॉटर ड्रेनेज सिस्टम बारिश के बढ़े स्तर को संभालने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था। हालांकि, एक साल बाद भी हालात नहीं बदले हैं।

नहीं लागू किया जा सका नया ड्रेनेज मास्टर प्लान

दिल्ली सरकार ने 2011 में शहर के लिए ड्रेनेज मास्टर प्लान तैयार करने के लिए आईआईटी दिल्ली के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। इसके साथ ही एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति का भी गठन किया गया था। आईआईटी ने जुलाई 2018 में मैथेमेटिकल मॉडल सहित मास्टर प्लान की अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की, जो शहर में जलभराव का समाधान कर सके।

अगस्त 2021 में तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने विभिन्न मुद्दों का हवाला देते हुए दिल्ली सरकार से ड्रेनेज मास्टर प्लान को स्वीकार न करने को कहा था। अधिकारियों ने यह भी शिकायत की कि मॉडल को अपनाने में कई जट‍िलताएं हैं।

बाद में 2021 में, दिल्ली सरकार ने शहर को तीन अलग-अलग बेसिनों में विभाजित करके वॉटर ड्रेनेज मास्टर प्लान बनाने की द‍िशा में जो कदम उठाया वह भी अब तक रुका हुआ है।

दिल्ली में भारी बारिश से जलभराव

पिछले महीने ही दिल्ली में 24 घंटे में 153 मिमी बारिश हुई थी। यह 25 जुलाई 1982 के बाद से 24 घंटे की अवधि में हुई सबसे अधिक बारिश थी। जिसके बाद कई सड़कें, अंडरपास जलमग्न हो गईं थीं और कई इलाकों में स्कूलों को बंद करना पड़ा था।

शहरी विस्तार से दिल्ली में बाढ़

दिल्ली दुनिया के सबसे तेज़ शहरी विस्तार करने वाले शहरों में से एक है। नासा के अर्थ ऑब्जर्वेटरी के आंकड़ों के अनुसार, 1991 से 2011 तक दिल्ली का भौगोलिक आकार लगभग दोगुना हो गया।

इस विस्तार के परिणामस्वरूप कई ग्रामीण क्षेत्र भी राजधानी के शहरी विस्तार में शामिल हो गए हैं। दिल्ली के बाहर के, लेकिन एनसीआर में आने वाले शहर बहादुरगढ़, गाजियाबाद, फ़रीदाबाद, नोएडा और गुरुग्राम में भी तेजी से शहरीकरण देखा गया है। लेकिन जैसे-जैसे शहर का विस्तार हुआ है शहर की वॉटर ड्रेनेज सिस्टम की क्षमता पर पर्याप्त विचार नहीं किया गया है।

निचले इलाकों में जलभराव

आर्किटेक्ट और अर्बन डिजाइनर के टी रवींद्रन ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “आज अधिकांश पानी कंक्रीट से बने नालों में चला जाता है जो सीवेज डंप में बदल गए हैं।” उन्होंने बताया, “निचले इलाकों में निर्माण से स्थिति और खराब हो जाती है। उदाहरण के लिए, दक्षिणी दिल्ली से लेकर चाणक्यपुरी और आर के पुरम तक के कई नाले यमुना के बगल में दक्षिण पूर्वी दिल्ली के निचले इलाके सराय काले खां में मिलते हैं। यही कारण है कि इन गांवों में हर साल भारी बाढ़ आती है।

2008-2011 तक दिल्ली शहरी कला आयोग के अध्यक्ष रहे रवींद्रन ने कहा कि अर्बन प्लानर्स को “वॉटर मास्टरप्लान” के साथ आने की जरूरत है। वॉटर ड्रेनेज जो बाढ़ प्रबंधन में मदद कर सकते हैं, उन्हें भी नष्ट कर दिया गया है। प्राकृतिक विरासत प्रभाग, INTACH के प्रमुख निदेशक मनु भटनागर ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार दिल्ली में लगभग 1,000 वॉटर बॉडीज हैं लेकिन ज़मीन पर 400 से अधिक नहीं हैं। ये 600 लापता जल निकाय जो शहर में बाढ़ का प्रबंधन कर सकते थे, भर दिए गए हैं और अचल संपत्ति में बदल दिए गए हैं।”

वेटलैंड की कमी के चलते जलभराव

ड्रेनेज मास्टर प्लान की कमी के अलावा, दिल्ली में जलभराव की समस्या में योगदान देने वाले अन्य महत्वपूर्ण कारक भी हैं। सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल मैनेजमेंट ऑफ डिग्रेडेड इकोसिस्टम के प्रमुख प्रोफेसर सीआर बाबू ने टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में इनमें से कुछ कारणों पर प्रकाश डाला है।

प्रोफ़ेसर बाबू के अनुसार, जलभराव से पीड़ित कई निचले इलाके या तो अपनी वेटलैंड खो चुके हैं या बड़े पैमाने पर कंक्रीट से ढक गए हैं। इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियाँ और कच्ची नालियाँ लुप्त हो गई हैं जो वेटलैंड तक पानी ले जाती थीं। जिसके कारण आज कई क्षेत्रों में जलभराव की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।

दिल्ली में अतिक्रमण की समस्या

दिल्ली में बाढ़ का एक अन्य कारण अतिक्रमण है जिससे पानी गुजरने के लिए बहुत कम जगह बचती है। सीडब्ल्यूसी के एक अधिकारी के मुताबिक, “इसका मुख्य कारण अतिक्रमण और गाद हो सकता है। पहले पानी को बहने के लिए अधिक जगह मिलती थी अब यह एक संकुचित क्रॉस-सेक्शन से होकर गुजरता है।”

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) जैसे स्थानीय निकाय और अन्य नागरिक एजेंसियां ​​शहर की जल निकासी और सीवर प्रणालियों को बनाए रखने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। दिल्ली की दो प्रमुख नागरिक एजेंसियां एमसीडी और एमडीएमसी अक्सर सीवेज, गाद प्रबंधन, जल निकासी को अपने अधिकार क्षेत्र का मुद्दा न बताकर एक-दूसरे पर दोषारोपण करती रहती हैं।