सुप्रीम कोर्ट के सीन‍ियर वकील दुष्‍यंत दवे ने न्‍याय प्रक्र‍िया में देरी और बड़ी संख्‍या में लोगों को लंबे समय तक व‍िचाराधीन कैदी के रूप में बंद रखे जाने को न्‍यायपाल‍िका की सबसे बड़ी कमजोर‍ियों में से एक बताया है। जनसत्ता डॉट कॉम के कार्यक्रम ‘बेबाक’ में संपादक विजय कुमार झा से बातचीत में दुष्यंत दवे ने न्यायपालिका की कमियों पर बात करते हुए बड़ी संख्‍या में आरोप‍ियों को बेल नहीं द‍िए जाने को भी बड़ी समस्‍या बताया।

दवे की यह ट‍िप्‍पणी ऐसे समय में आई है जब सुप्रीम कोर्ट में उमर खाल‍िद की जमानत याच‍िका पर सुनवाई लगातार छठी बार (10 जनवरी को) टल गई है। साथ ही, द‍िल्‍ली शराब घोटाले में बंद आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं की जमानत अर्जी भी खारिज की जा चुकी है।

दुष्‍यंत दवे ने कहा, “आज लोगों को न्याय की जरूरत है। लोग न्याय के लिए तरह रहे हैं। अगर एक कामगार अपने वेतन के लिए 20 साल तक लड़ता रहे तो क्या फायदा। आज अंडर ट्रायल कैदी जेल में हैं। हम जानते हैं कि हमारी कानून व्यवस्था कैसी है। हम जानते हैं कि हमारी पुलिस कैसे लोगों को गिरफ्तार करती है। जांच-पड़ताल खराब तरीके से की जाती है, ये सभी जानते हैं। हमारा कन्विक्शन रेट खराब है। आज पांच लाख विचाराधीन कैदी जेल में पड़े हैं बेचारे। कब उनकी सुनवाई होगी।”

द‍िल्‍ली शराब घोटाला: कैश कहां म‍िला है जो आप उन्‍हें बेल नहीं दे रहे- दवे

दिल्ली शराब नीति मामले में जेल भेजे गए आम आदमी पार्टी के नेताओं का उदाहरण देते हुए दुष्‍यंत दवे कहते हैं, “दिल्ली शराब नीति मामले में कोई कैश नहीं मिला। ट्रेल है। लेकिन कैश कहां मिला है किसी के पास से कि आप उन्हें जेल में रख सकते हैं।” नीचे देखें दुष्‍यंत दवे के इंटरव्‍यू का पूरा वीड‍ियो (Dushyant Dave Full Interivew with Vijay Kumar Jha in Jansatta.com Bebaak)

सुप्रीम कोर्ट के सीन‍ियर वकील दुष्‍यंत दवे का पूरा इंटरव्यू

बातचीत में दवे कहते हैं, “आज लोगों को बेल नहीं दिया जा रहा है। विपक्ष के किसी नेता को पकड़कर अंदर डाल दिया जा रहा है और सुप्रीम कोर्ट कह रही है कि हम आपको बेल नहीं देंगे। जबकि बेल तो हक है। सुप्रीम कोर्ट ने खुद कहा है “Bail Is Right, Jail Is Exception” (बेल अधिकार है, जेल भेजना अपवाद)।”

कोर्ट द्वारा बेल न दिए जाने के मुद्दे वह कहते हैं, आज लोगों को बेल नहीं दिया जा रहा है। अगर न्याय प्रणाली न्याय नहीं दे सकती है तो इस प्रणाली का फायदा क्या है। …बहुत से ऐसे जज हैं जो प्रो-प्रॉसिक्यूशन हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये पहले सरकारी वकील रहे हैं। ये सरकार की ही मानते हैं। कभी किसी इंसान को निर्दोष समझते ही नहीं हैं। पुलिस जिसको लाया उसे दोषी मान लेते हैं।”

जेल में बंद 75.8% कैदी अंडर ट्रायल

पहले समझ लेते हैं कि Undertrial Prisoners या विचाराधीन कैदी कौन होते हैं। विधि आयोग की 78वीं रिपोर्ट में विचाराधीन कैदी की परिभाषा मिलती है, जिसके मुताबिक, जाँच के दौरान न्यायिक हिरासत में कैद व्यक्ति को विचाराधीन कैदी माना जाता है। इसके अलावा केस शुरू होने के इंतजार में रिमांड पर रखे गए व्यक्ति को भी विचाराधीन कैदी कहा जाता है।

सरल शब्दों में ऐसे लोग जो अपराध साबित हुए बिना कैद झेलते हैं उन्हें विचाराधीन कैदी कहा जा सकता है। भारतीय जेलों में बंद कुल कैदियों में से 75 प्रतिशत से ज्यादा विचाराधीन हैं। दिसंबर 2023 में NCRB ने ‘प्रिजनर्स स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2022’ का डेटा जारी किया था। इसमें 1 जनवरी 2022 से 31 दिसंबर 2022 तक का डेटा था।

‘प्रिजनर्स स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2022’ के मुताबिक, भारतीय जेलों में 573,220 कैदी हैं, इनमें से अधिकांश (चार में से तीन से अधिक) विचाराधीन कैदी हैं। अधिकांश (तीन में से दो) विचाराधीन कैदी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों सहित उत्पीड़ित जाति समूहों से संबंधित हैं।

2022 में विचाराधीन कैदियों का लगभग पांचवां (21%) दलितों का था। अंडर ट्रायल कैदियों में से 9% अनुसूचित जनजाति और 35% अन्य पिछड़ा वर्ग से थे। ध्यान देने वाली बात है कि भारती की कुल आबादी में दलित 17% और आदिवासी 9% हैं। इस हिसाब से इन दोनों समुदायों की संख्या जेल के भीतर अपनी आबादी के अनुपात में अधिक या बिलकुल बराबर है।

धर्म के आधार पर डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि मुस्लिम भी अपनी आबादी के अनुपात में जेल में अधिक हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 14.2% है, जबकि जेल के विचाराधीन कैदियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी 19.3% है।

इसके अलावा प्रति 100,000 कैदियों पर 20.8 कैदियों की दर से 2022 में 119 कैदियों ने आत्महत्या की। यह संख्या आत्महत्या की अखिल भारतीय दर (12.4) से 67% अधिक है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज संजय क‍िशन कौल ने भी जनसत्‍ता.कॉम के संपादक व‍िजय कुमार झा को द‍िए एक इंटरव्‍यू में कहा था क‍ि बेल द‍िए जाने में अनावश्‍यक सख्‍ती की जरूरत नहीं है। देख‍िए जस्‍ट‍िस कौल के इंटरव्‍यू का पूरा वीड‍ियो

जान‍िए, स‍ितंबर 2020 से उमर खाल‍िद के जेल में होने की वजह

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता उमर खालिद की जमानत याचिका पर बुधवार (10 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी थी। लेकिन अदालत से अनुरोध कर सुनवाई की तारीख को आगे बढ़वा दिया गया। अब छात्र नेता की जमानत याचिका पर सुनवाई को 24 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।

बता दें कि उमर खालिद सितंबर 2020 से ही यूएपीए के तहत जेल में बंद हैं। पिछले साल यानी 2023 में उनकी जमानत याचिका पर एक दिन भी सुनवाई नहीं हुई थी। खालिद पर फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुई हिंसा को भड़काने का आरोप है।

छठी बार क्यों बढ़ी सुनवाई की तारीख?

इस बार उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई की तारीख इसलिए आगे बढ़ाई गई क्योंकि वकीलों ने अदालत से इसकी मांग की थी। खुद उमर खालिद के वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की सुनवाई टालने का अनुरोध किया था। मीडिया रिपोर्ट्स मुताबिक, उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह संवैधानिक पीठ में सुने जाने वाले मामलों में व्यस्त हैं।

दूसरी तरफ सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने भी अदालत से सुनवाई टालने का अनुरोध किया था। सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू आज (10 जनवरी) व्यस्त हैं, इसलिए दूसरी तारीख दी जाए।

रोस्टर के मुताबिक, उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बेला त्रिवेदी को करनी है। उन्होंने 10 जनवरी को दोनों पक्षों से स्पष्ट रूप से कहा कि अब इस मामले को और नहीं टाला जाएगा। सुप्रीम में कोर्ट में उमर खालिद की जमानत याचिका अप्रैल 2023 से लंबित है।