आपातकाल के बाद का वक्त था। जनता पार्टी की चमक फीकी पड़ रही थी। कांग्रेस एक बार फिर उभर रही थी। 1980 के दशक में कांग्रेस एक के बाद एक राज्यों में पकड़ मजबूत करती जा रही थी। मई 1980 में राजस्थान विधानसभा का चुनाव हुआ। टिकट वितरण से लेकर मुख्यमंत्री चुनने तक का काम संजय गांधी के हाथों में था।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा) यानी कांग्रेस (आई) 200 विधानसभा सीटों वाले राजस्थान में सबसे बड़ी पार्टी साबित हुई। दिल्ली के राजस्थान हाउस में विधायक दल की बैठक हुई, जहां राम किशोर व्यास के नाम की फुसफुसाहट चल रही थी। इतने में संजय गांधी ने एक नाम आगे किया और चर्चा पर विराम लग गया। यह नाम था- जगन्नाथ पहाड़िया।

पहाड़िया को संजय गांधी का बहुत करीबी माना जाता था। वह नेहरू के वक्त से कांग्रेस में सक्रिय थे। लेकिन आपातकाल के दौरान कांग्रेस के मुश्किल वक्त में साथ खड़े होकर वह संजय के खासमखास बन गए थे। जगन्नाथ पहाड़िया ने 6 जून 1980 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और वह राजस्थान के पहले और अब तक के इकलौते दलित मुख्यमंत्री बन गए।

पहाड़िया के सीएम बनने के कुछ दिन बाद ही 23 जून 1980 को संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई। पहाड़िया अकेले पड़ गए। दिल्ली का जो मजबूत हाथ उनके कंधों पर था, वह अब नहीं रहा। ऐसे में पहाड़िया के विरोधी सक्रिय हो गए, जिन्हें एक बड़ा मौका हाथ लगा 10 जनवरी, 1981 को।

Jagannath Pahadia
जगन्नाथ पहाड़िया 25 साल की उम्र में सांसद बन गए थे। (Express archive photo)

महादेवी वर्मा की कविता पर टिप्पणी करना पड़ा भारी

साल 1981 के पहले महीने की 10 तारीख को जयपुर के रविंद्र मंच पर ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का वार्षिक अधिवेशन चल रहा था। कार्यक्रम की अध्यक्षता खुद राज्य के मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया कर रहे थे। मुख्य अतिथि थीं- छायावाद के चार स्तंभों में से एक मानी जाने वाली, आधुनिक हिंदी की मीरा के नाम से प्रसिद्ध कलमकार, समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी महादेवी वर्मा। नेहरू की मुंहबोली छोटी बहन महादेवी वर्मा तब 74 साल की थी। इस रिश्ते की वजह से इंदिरा बचपन में उन्हें बुआ कहती थीं।

ख़ैर, उस वार्षिक अधिवेशन में बड़ी संख्या में लेखक, पत्रकार और आम लोग पहुंचे हुए थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सीएम जगन्नाथ पहाड़िया ने मंच से महादेवी वर्मा की कविता पर बोलना शुरू किया। अपने भाषण में मुख्यमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनके युवा दिनों में उन्हें वर्मा की रचनाएँ कितनी मुश्किल लगती थीं और अब भी उन्हें उनकी कविताएं “समझ से परे” लगती हैं।

सीएम ने कहा, “महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवयित्री हैं। उनकी रहस्यवादी और गूढ़ कविताएं जनसामान्य के सिर के ऊपर से निकल जाती हैं। मुझे खुद आज तक उनकी कविताएं कभी समझ नहीं आईं। आज का साहित्य जन-जन का साहित्य होना चाहिए।”

मुख्यमंत्री के कहने का मतलब यह था कि एक आधुनिक कवयित्री होने के बावजूद वर्मा ने ऐसी पंक्तियां लिखीं जो आम लोगों को समझ नहीं आती। बुजुर्ग कवयित्री की रचनाओं के लिए ऐसी टिप्पणी सुनकर सभा में हंगामा हो गया।

Mahadevi Varma
 महादेवी वर्मा (Express photo by RK Sharma)

इंडिया टुडे के 1981 के अंक में प्रकाशित एक रपट के मुताबिक, कार्यक्रम में भारी संख्या में मौजूद पहाड़िया विरोधी खेमा अभद्र व्यवहार करने लगा और मुख्यमंत्री को गालियां दी जाने लगीं। पहाड़िया तुरंत मंच से नीचे उतरे, ‘जातिवाद’ के बारे में कुछ कहा और गुस्से में चले गए।

बुआ की रचनाओं पर हुई टिप्पणी की खबर भतीजी को भी लगी। पहाड़िया दिल्ली तलब कर लिए गए। सफाई मांगी गई। इस घटना के बाद पहाड़िया के विरोधी अधिक सक्रिय हो गए। वह दिल्ली तक राज्य की हर छोटी-बड़ी बात पहुंचाने लगे।

छह महीने में बाद चली गई कुर्सी

जयपुर की घटना के छह महीने बाद ही 14 जुलाई, 1981 को पहाड़िया की कुर्सी चली गई। सत्ता जाने से पहले पहाड़िया ने एक पुल का उद्घाटन किया था, जिसके बारे में यह मिथक था कि जो भी उस पुल के उद्घाटन का मन बनाता है, उसके साथ बुरा हो जाता है। स्थानीय लोग इस पुल को सीता पुल कहते हैं। यह पहाड़िया के अपने इलाके भरतपुर के वैर तहसील में ही था।

10 जुलाई को पहाड़िया उस पुल का उद्घाटन करने पहुंचे। उन्होंने फीता काटा और पास के रुदावल कस्बा स्थित हनुमान मंदिर चले गए। वहीं उन्हें दिल्ली का एक वायरलेस मैसेज मिला। उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिल्ली बुलाया था। इंदिरा गांधी के फोन करने से पहले, कांग्रेस (आई) संसदीय बोर्ड ने मोहनलाल सुखाड़िया के साथ दिल्ली में मुलाकात की थी। विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में पहुंचे सांसद, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पहाड़िया के कट्टर विरोधी सुखाड़िया से मुलाकात के बाद उस फैसले पर आधिकारिक मुहर लग गई जो जाहिर तौर पर इंदिरा गांधी ने बहुत पहले ही ले लिया था।

दरअसल इंदिरा गांधी पिछले कुछ समय से पहाड़िया से नाराज चल रही थीं। लेकिन नाराजगी ने अंतिम रूप पहाड़िया के कारनामों की वजह से लिया। राज्य में कांग्रेस आई के कुछ विधायक मुख्यमंत्री बदलने की मांग कर रहे थे। इस मांग से आहत पहाड़िया टकराव की भूमिका में आ गए थे। वह अपने समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन करने लगे थे। उन्होंने अपने जिले का दौरा भी तेज़ कर दिया था। इंदिरा गांधी इस मोर्चेबंदी से खुश नहीं थीं। प्रधानमंत्री का संदेश पाकर दिल्ली पहुंचे सीएम पहाड़िया, दिल्ली से पूर्व सीएम होने का आदेश लेकर लौटे।

कुर्सी जाने के बाद उन्होंने कहा था, “जब से हाईकमान ने मुझे मुख्यमंत्री बनाया, मुझे पता था कि मैं राजस्थान जैसे समस्याग्रस्त राज्य को चलाने के लिए उपयुक्त व्यक्ति नहीं होऊंगा। प्रदेश में तो पार्टी समिति भी कभी एकजुट नहीं थी।” बतौर मुख्यमंत्री अपने छोटे से कार्यकाल में ही पहाड़िया ने राजस्थान में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी थी।

मुख्यमंत्री बनने से पहले पहाड़िया लोकसभा और राज्यसभा सांसद रहे थे। वह केंद्र में मंत्री भी रहे थे। राजीव गांधी के कार्यकाल में वह बिहार के राज्यपाल बने। 2009 से 2014 तक हरियाणा के राज्यपाल रहे। 20 मई, 2021 को कोरोना से उनकी मौत हो गई थी।