सरकार की तरफ से लोकसभा में पेश आंकड़ों से पता है कि साल 2018 से 2020 के बीच देश में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध बढ़ा है। मंगलवार को राज्य मंत्री (गृह) अजय कुमार मिश्रा ने तेलंगाना के सांसद कोमाती रेड्डी वेंकट रेड्डी (कांग्रेस) और मन्ने श्रीनिवास रेड्डी (टीआरएस) के सवालों के लिखित जवाब में इन आंकड़ों को पेश किया।
   
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से बताए आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के 42,793 मामले दर्ज हुए थे। 2020 में यह आंकड़ा 50,000 के पार पहुंच गया। इसी अवधि में अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध के मामले 6,528 से बढ़कर 8,272 हो गए।

उत्तर प्रदेश और बिहार दलित उत्पीड़न में आगे

अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश और बिहार में दर्ज हुए हैं। साल 2018 में यूपी में 11,924 और बिहार में 7061 मामले दर्ज हुए थे। 2019 में यूपी में 11,829 और बिहार में 6,544 मामले दर्ज हुए। 2020 में यूपी में 12,714 और बिहार में 7,368 मामले दर्ज हुए।

मध्य प्रदेश और राजस्थान आदिवासी उत्पीड़न में आगे

आदिवासियों के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश और राजस्थान में दर्ज हुए हैं। साल 2018 में एमपी में 1,868 और राजस्थान में 1,095 मामले दर्ज हुए थे। 2019 में एमपी में 1,845 और राजस्थान में 1,797 मामले दर्ज हुए। 2020 में एमपी में 2,401 और राजस्थान में 1,878 मामले दर्ज हुए।

कितने मामले लंबित?

गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों में यह भी बताया गया है कि कितने मामलों में चार्जशीट दाखिल हुई है और कितने मामले लंबित हैं। साल 2018 में दलित उत्पीड़न के 34,838 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई थी और 16,323 मामले लंबित थे। 2019 में 34,754 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई थी और 19,903 मामले लंबित थे। 2020 में 39,138 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई थी और 19,825 मामले लंबित थे।

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