वर्ष 1988 में प्रधानमंत्री रहते हुए राजीव गांधी ने शरद पवार को गोवा से बुलाकर मुख्यमंत्री बनने को कहा था। यह दूसरा मौका था, जब पवार ने सीएम पद की शपथ ली। दिलचस्प यह है कि दो साल बाद ही राजीव गांधी ने पवार की सरकार गिराने की भी कोशिश की। शरद पवार ने इस प्रसंग को राजकमल से प्रकाशित अपनी आत्मकथा “अपनी शर्तों पर” में विस्तार से लिखा है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने अपनी ही पार्टी के सीएम से मांगा इस्तीफा

1990 की बात है। तब एनसीपी (नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी) अध्यक्ष शरद पवार कांग्रेस नेता हुआ करते थे। महाराष्ट्र कांग्रेस के कुछ नामी नेताओं ने पवार के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाया। विलासराव देशमुख, रामराव आदिक, सरूप सिंह नाइक, शिवाजी राव देशमुख, जवाहरलाल दरदा और जावेद खान जैसे मंत्रिमंडल के सहयोगियों सहित महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुशील कुमार शिंदे, शंकरराव (एस.बी.) चव्हाण, विठ्ठल राव गाडगिल और ए. आर. अन्तुले भी इन विद्रोहियों में शामिल थे। जबकि कुछ दिन पूर्व ही शिंदे ने पवार से हमेशा साथ रहने की सार्वजनिक घोषणा की थी।

विद्रोहियों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि पवार के मुख्यमंत्री बने रहने से राज्य में कांग्रेस को नुकसान होगा और इसलिए वह उनके साथ काम नहीं कर सकते। उन्होंने तत्काल सीएम के इस्तीफे की मांग की।

पवार अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, “इन विद्रोहियों से मुझे थोड़ी सी भी परेशानी नहीं थी, यह सब कार्यवाही दिल्ली के ‘सर्वोच्च नेतृत्व’ के निर्देश पर हो रही थी और इन विरोधियों को राज्य की कांग्रेस इकाई का न्यूनतम समर्थन भी हासिल नहीं था।”

अंत में यह निर्णय हुआ कि इस विवाद का हल राज्य विधानसभा कांग्रेस कमेटी की मीटिंग में निकाला जाए। जी.के. मूपनार और गुलाम नबी आजाद इस मीटिंग में केन्द्रीय पर्यवेक्षक के रूप में दिल्ली से महाराष्ट्र पहुंचे। कांग्रेस विधायकों को पहले ही सूचित कर दिया गया था कि ‘पार्टी हाईकमान’ नेतृत्व में परिवर्तन चाहता है। हालांकि अधिकांश विधायकों ने यह स्पष्ट कर दिया कि बगैर वोटिंग के वह किसी भी थोपे गए फैसले को नहीं मानेंगे। जब शाम को इस विषय पर वोटिंग हुई तो करीब 190 विधायक/एम.एल.सी. पवार के पक्ष में थे जबकि करीब 20 विधायक नेतृत्व परिवर्तन के पक्ष में थे।

पवार लिखते हैं, “पार्टी विधायकों के अलावा मुझे जनता का भी व्यापक समर्थन हासिल था। बैठक का परिणाम जानने के लिए, मीटिंग-स्थल पर भारी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता भी उपस्थित थे। जैसे ही निर्णय की घोषणा हुई वैसे ही कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई और पूरा वातावरण नारों से गूंज उठा। लेकिन विद्रोही गुट के खिलाफ लोगों में गुस्सा भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। कोई अप्रिय घटना न हो, इसलिए विरोधी नेताओं को पुलिस सुरक्षा में उनकी कारों तक पहुंचाया गया।

मूपनार और आजाद ने दिल्ली जाकर हाईकमान को परिणाम बताया। इसके बाद दिल्ली से शरद पवार को एम.एल. फोतेदार का फोन आया कि राजीव गांधी उनसे मिलना चाहते हैं।

राजीव गांधी से वाद-विवाद

शरद पवार जैसे ही राजीव गांधी के कमरे में पहुंचे किया, राजीव ने व्यंग्यात्मक भाव से पूछा, “तो क्या हो रहा है?” पवार ने उत्तर दिया, “आप हमसे अच्छा जानते हैं। आपके निर्देशानुसार मुम्बई में सभी ने पूरी कुशलता से काम किया, लेकिन दुर्भाग्यवश वह समुचित समर्थन नहीं जुटा सके।”

पवार लिखते हैं, “राजीव गांधी के पास स्वीकार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। हालांकि उन्होंने बड़े कुटिल तरीके से यह भी कहा, ‘नहीं, नहीं, वहां कुछ गलत हुआ है। मैंने उनसे वृक्ष को मात्र हिलाने को कहा था, उसे जड़ से उखाड़ने को नहीं।’ इस विषय पर अधिक चर्चा किए बगैर हम लोग अगले विषय पर चर्चा करने लगे।”

सुशील कुमार शिंदे को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटवाने पर अड़े पवार

पवार ने यह निर्णय कर लिया था कि वह सुशील कुमार शिंदे को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर नहीं रहने देंगे। राजीव इस बात पर सहमत नहीं हुए। लेकिन पवार भी अड़ गए थे। उन्होंने राजीव गांधी से पूछा, “जब पार्टी की राज्य कमेटी का प्रेसिडेंट ही प्रेस कांफ्रेंस कर मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने और हटाने की मांग करे तो इसे कैसे बर्दाश्त कर सकता हूँ?”

हालांकि गरमा-गरम बहस के बाद तय हुआ कि शिंदे को हमारे मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाएगा और शिवाजीराव नीलांगेकर को महाराष्ट्र कांग्रेस कमेटी का प्रेसिडेंट नियुक्त किया जाएगा।

“विद्रोहियों को मंत्री नहीं बनाऊंगा”

महाराष्ट्र सरकार के मंत्रिमंडल के पुनर्गठन के समय पवार ने राजीव गांधी से कहा, “मैं विद्रोही मंत्रियों को मंत्रिमंडल में नहीं रखूंगा। उनको दंडित न करने से राज्य में एक गलत संदेश जाएगा और यह राज्य के पार्टी संगठन के हित में न होगा।” राजीव इस विचार से असहमत थे। वह विद्रोही मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल करवाना चाहते थे।

कुछ समय की बहस के बाद अंत में पवार ने कहा, “मैं आपकी परेशानी समझता हूं।” राजीव ने पूछा, “मेरी परेशानी क्या है?” पवार ने उत्तर दिया, “आपके कहने पर उन्होंने विद्रोह किया, आप उनको कैसे छोड़ सकते हैं?” कुछ देर की शांति के बाद राजीव गांधी ने कहा, “ठीक है, जो बीत गया, वह बीत गया। आओ, अब आगे बढ़ें।”

पवार ने भी इसे प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाया। उन्होंने सोचा कि विद्रोहियों की भी कोई गलती नहीं है क्योंकि वे केवल आज्ञा का पालन कर रहे थे। पवार ने विद्रोही नेताओं को मंत्रिमंडल में तो शामिल किया लेकिन विभाग अपनी मर्जी से दी।