कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को भरोसा है कि दिल्ली से लगते हुए राज्य हरियाणा में उसकी सरकार बन सकती है। इसके पीछे वजह लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस का शानदार प्रदर्शन है लेकिन हरियाणा कांग्रेस में जिस तरह की भयंकर गुटबाजी देखने को मिल रही है, उससे हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनाने का केंद्रीय नेतृत्व का सपना अधूरा रह सकता है।
बात हो रही है हरियाणा में कांग्रेस की ओर से चलाए जा रहे ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान। इस अभियान की अगुवाई राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे और रोहतक से कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा कर रहे हैं।
लेकिन इस अभियान में अभी तक राज्यसभा सांसद रणजीत सिंह सुरजेवाला नहीं दिखाई दिए हैं। दूसरी तरफ सिरसा से सांसद और हरियाणा कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष कुमारी सैलजा राज्य के शहरी इलाकों में एक अलग पदयात्रा निकालने जा रही हैं।
कुमारी सैलजा कुछ दिन पहले द इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में स्पष्ट रूप से कह चुकी हैं कि हरियाणा कांग्रेस में अभी सब एकतरफा चल रहा है और ऐसा ही चलता रहा तो विधानसभा चुनाव में जैसे नतीजों की उम्मीद है, वैसे नतीजे नहीं आ सकते। उनका इशारा भूपेंद्र हुड्डा गुट की ओर था।

पुरानी है गुटबाजी की समस्या
हरियाणा में कांग्रेस अक्सर गुटबाजी से जूझती रही है। पिछले कुछ सालों की ही बात करें तो हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने 2019 के विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले पार्टी छोड़ दी थी। अशोक तंवर का भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट के साथ 36 का आंकड़ा था।
तंवर के जाने के बाद भी हरियाणा कांग्रेस में दो खेमे हमेशा आमने-सामने रहे। एक खेमे में कुमारी सैलजा, पूर्व मंत्री किरण चौधरी और रणदीप सिंह सुरजेवाला थे। जबकि दूसरा खेमा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष चौधरी उदयभान सिंह को भी हुड्डा का भरोसेमंद माना जाता है।
तंवर के बाद किरण भी गईं
पिछले महीने किरण चौधरी ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। किरण चौधरी ने कांग्रेस छोड़ते वक्त जो पत्र जारी किया था, उसमें स्पष्ट रूप से कहा था कि हरियाणा कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जागीर बन गई है।

टिकट बंटवारे पर उठाया सवाल
लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद कुमारी सैलजा ने टिकट बंटवारे को लेकर खुलकर सवाल उठाया था और कहा था कि अगर टिकट बंटवारा ढंग से हुआ होता तो कांग्रेस हरियाणा में और सीटें जीत सकती थी। उनका सीधा निशाना पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष चौधरी उदयभान सिंह की ही तरफ था। कुमारी सैलजा प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी दीपक बाबरिया को लेकर भी कई बार नाराजगी जता चुकी हैं।
अब जब हरियाणा में विधानसभा चुनाव एकदम सामने हैं तो गुटबाजी का यह भूत कांग्रेस नेतृत्व को डरा रहा है कि शायद कहीं इस बार फिर गुटबाजी की वजह से पार्टी हरियाणा में सरकार बनाने से न चूक जाए। क्योंकि 2019 में अगर गुटबाजी नहीं हुई होती तो पार्टी हरियाणा में सरकार बना सकती थी।
राजनीतिक दल | विधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2014 में मिली सीट | विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2019 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2024 में मिली सीट |
कांग्रेस | 15 | 1 | 31 | 0 | 5 |
बीजेपी | 47 | 7 | 40 | 10 | 5 |
हरियाणा में लोकसभा चुनाव के नतीजे इस बात को बताते हैं कि कांग्रेस यहां विधानसभा चुनाव में कम बैक कर सकती है। इसका पता विधानसभा सीटों और वोट शेयर के आंकड़ों से चलता है।
लोकसभा चुनाव 2024 | बीजेपी रही आगे | कांग्रेस रही आगे | आप रही आगे |
कुल विधानसभा सीटें- 90 | 44 | 42 | 4 |
लोकसभा चुनाव में वोट शेयर
राजनीतिक दल | लोकसभा चुनाव 2019 में मिले वोट (प्रतिशत में) | लोकसभा चुनाव 2024 में मिले वोट (प्रतिशत में) |
कांग्रेस | 28.51 | 43.67 |
बीजेपी | 58.21 | 46.11 |
अपील का नहीं दिखा असर
कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व भी पार्टी के तमाम नेताओं से गुटबाजी से दूर रहते हुए विधानसभा चुनाव में जाने की अपील कर चुका है लेकिन ऐसा नहीं दिखता कि इस अपील का कोई खास असर हुआ हो।
‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान को दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने 15 जुलाई से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की विधानसभा करनाल से लांच किया था और उसके बाद वह इस अभियान के तहत कई विधानसभा क्षेत्रों में जा चुके हैं लेकिन यह हैरान करने वाली बात है कि रणदीप सिंह सुरजेवाला उनके साथ नहीं दिखाई दिए हैं।
रणजीत सिंह सुरजेवाला इन दिनों अपने आधार वाले जिलों- जींद और कैथल में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि इन दोनों जिलों में पिछली बार 9 में से 8 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को हार मिली थी और उनकी कोशिश है कि इस बार कांग्रेस इन दोनों जिलों में जीत हासिल करे।

हरियाणा कांग्रेस में सुरजेवाला के समर्थकों के बीच ऐसी भी चर्चा है कि ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ की अगुवाई केवल दीपेंद्र सिंह हुड्डा को दे दी गई है और इसमें बाकी नेताओं को किनारे कर दिया गया है।
हरियाणा कांग्रेस में पूरी तरह हुड्डा गुट का वर्चस्व दिखाई देता है। पार्टी के अधिकतर विधायक इसी गुट के हैं और जिस तरह की गुटबाजी पार्टी के दिग्गज नेताओं के बीच है, उससे कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के लिए विधानसभा चुनाव में टिकटों का बंटवारा कर पाना आसान नहीं होगा।
सीएम चेहरे के बिना चुनाव में जाएगी कांग्रेस
पार्टी में चल रही गुटबाजी को देखते हुए ही पार्टी का शीर्ष नेतृत्व विधानसभा चुनाव से पहले किसी भी नेता को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में आगे नहीं करना चाहता हालांकि हुड्डा गुट लगातार भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए जाने की मांग कर रहा है लेकिन कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला इसके विरोध में हैं।
लोकसभा चुनाव में जाट समुदाय के दबदबे वाली लोकसभा सीटों- रोहतक, सोनीपत, हिसार में कांग्रेस को जीत मिली है और इसके बाद पार्टी में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और मजबूत होकर उभरे हैं जबकि कुमारी सैलजा ने भी सिरसा सीट पर लगभग ढाई लाख वोटों से जीत हासिल कर अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई है। उनके समर्थक भी उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में आगे करना चाहते हैं।