मौजूदा दौर को कई आलोचक भारतीय राजनीति का बुलडोजर युग बताते हैं। पिछले दिनों ही दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व जज रेखा शर्मा ने बुलडोजर से संविधान को खतरा बताया था। आज बुलडोजर पॉलिटिक्स को भले ही भाजपा से जोड़कर देखा जा रहा हो। लेकिन इसके राजनीतिक इस्तेमाल की शुरुआत का श्रेय कांग्रेस के पास है।

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ये बात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में लगाए आंतरिक आपातकाल के दौर की है। जाहिर है आपातकाल के ज्यादातर किस्से इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी के बिना अधूरे हैं। संजय गांधी जिसे इंदिरा गांधी पर किताब लिखने वाली पुपुल जयकर बेहूदा और आवारा कहकर संबोधित करती हैं।

इंदिरा गांधी संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगा चुकी थीं। प्रशासनिक दृष्टि से देश का सबसे डरावना काल शुरु हो चुका था। इंदिरा के समानांतर प्रधानमंत्री कार्यालय चला रहे संजय गांधी का आतंक अपने चरम पर था। उसी दौरान संजय को पता चला कि दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित कॉफी हाउस में पत्रकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों, उदारवादी चिंतकों आदि की बैठकी होती है। संजय गांधी को मिली जानकारी के अनुसार कॉफी हाउस की बैठकियों में आपातकाल की आलोचना की जाती है। फिर क्या था। अगली ही सुबह कॉफी हाउस को बुलडोजर से पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई की किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में संजय गांधी का एक और किस्सा मिलता है। यह घटना भी दिल्ली के कनॉट प्लेस में ही हुई थी। ‘पंडित पैलेस’ नामक एक कपड़ों का दुकान था। दुकान के 80 वर्षीय मालिक को पुलिस हिरासत में पूरा दिन सिर्फ इसलिए बिताना पड़ा था क्योंकि उनकी दुकान की तौलियों पर कीमत का टैग नहीं लगा था। हालांकि तौलियों के बंडल पर रेट लिखा था।

ये दुकान मालिक पी.एन. हक्सर के अंकल थे। संजय गांधी और हक्सर एक दूसरे पसंद नहीं करते थे, ये छापा उसी का नतीजा था। कश्मीरी पंडित पी.एन हक्सर फिरोज गांधी के दोस्त थे। 1967 में इंदिरा गांधी ने इन्हें अपना प्रमुख सचिव बनाया था। इंदिरा गांधी की समाजवादी नीतियों के पीछे हक्सर का ही हाथ बताया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष अपनी किताब ‘इंदिरा’ में नटवर सिंह के हवाले से बताती हैं कि हक्सर ने आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी को बड़े साफगोई से बता दिया था कि उन्हें प्रधानमंत्री अथवा मां में से किसी एक स्थिति को चुनना होगा।