उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अगर कॉलेज के दिनों में अपने वामपंथी जीजा की सलाह मान ली होती, तो शायद वह लेफ्ट की राजनीति कर रहे होते। योगी आदित्यनाथ के छात्र जीवन का यह किस्सा शांतनु गुप्ता द्वारा लिखी जीवनी ‘द मोंक हू बिकेम चीफ मिनिस्टर (The Monk Who Became Chief Minister)’ में मिलता है।

जब अजय मोहन बिष्ट थे योगी

5 जून, 1972 को योगी आदित्यनाथ जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता एक वन रेंजर थे। साल 1991 की बात है। तब सीएम योगी, अजय मोहन बिष्ट हुआ करते थे। उनका दाखिला कोटद्वार के गवर्नमेंट पीजी कॉलेज में था। इसी कॉलेज में योगी आदित्यनाथ के जीजा जयप्रकाश भी थे। वामपंथी रुझान वाले योगी आदित्यनाथ के जीजा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के छात्र संगठन SFI (Students’ Federation of India) से जुड़े हुए थे। उन्हीं दिनों अजय मोहन बिष्ट भी छात्र राजनीति में दिलचस्पी ले रहे थे और काफी सक्रिय भी थे।

जीजा की सलाह

अजय की दिलचस्पी और सक्रियता देख उनके जीजा जय प्रकाश ने उन्हें वामपंथी छात्र संगठन SFI ज्वाइन करने की सलाह दी। जयप्रकाश ने काफी हद तक अजय को अपने विचारों से प्रभावित भी किया था। अजय अपने जीजा की सलाह पर विचार भी कर रहे थे। लेकिन तभी उनकी मुलाकात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमोद रावत उर्फ टुन्ना से हुई। टुन्ना कॉलेज में अजय के सीनियर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के सदस्य थे।

शांतनु गुप्ता अपनी किताब में बताते हैं कि एक रोज कॉलेज की लाइब्रेरी में प्रमोद रावत के साथ अजय की लंबी बातचीत हुई और उन्होंने अजय को एबीवीपी में शामिल होने के लिए राजी कर लिया।

ABVP ने नहीं दिया टिकट

ABVP में शामिल होने के बाद अजय, साल 1992 में अपने कॉलेज में सचिव के पद के लिए छात्रसंघ चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन ABVP ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया क्योंकि किसी अन्य छात्र को वादा किया गया था। इसके बाद अजय ने सचिव पद के लिए निर्दलीय विद्रोही उम्मीदवार के रूप में पर्चा भर दिया। उनके मैदान में उतरने से एबीवीपी का उम्मीदवार हार गया। हालांकि उन्हें भी सफलता नहीं मिली और अपने करियर का पहला और आखिरी (अब तक) चुनावी हार का सामना करना पड़ा।

छात्रसंघ चुनाव हारने और SFI में शामिल न होने पर क्या बोले योगी?   

एक इंटरव्यू में जब योगी आदित्यनाथ से SFI में शामिल न होने और छात्रसंघ चुनाव हारने को लेकर पूछा गया तो उन्होंने कहा, “यह सब चीजें सामान्यत: जीवन में आती हैं। इसका बहुत महत्व नहीं है। महत्व यह है कि आपकी दिशा क्या है। आपका वैचारिक अधिष्ठान (आधार) क्या है। आप अपने उन मूल्यों, उन आदर्शों से भटके तो नहीं हैं। और हम लोग बिना भटके, बिना डिगे, बिना झुके अपने उस पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहे हैं।”

ABVP के रास्ते अवैद्यनाथ से हुआ संपर्क

ABVP के सदस्य के रूप में, योगी आदित्यनाथ राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए। नाथ पंथ की दीक्षा ली। कुछ ही दिनों में आदित्यनाथ को “छोटा महंत” के नाम से जाना जाने लगा। आने वाले वर्षों में वह न सिर्फ गोरखनाथ पीठ के उत्तराधिकारी बने बल्कि अपने गुरु अवैद्यनाथ के राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बने। उन्होंने साल 1998 में 26 साल की उम्र में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और 2017 में मुख्यमंत्री बनाए जाने तक गोरखपुर के सांसद बने रहे।