सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मुंबई मेट्रो कारपोरेशन लिमिटेड (MMRCL) को आरे फॉरेस्ट में 177 पेड़ों को काटने की इजाजत दे दी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई और यहां तक कह दिया कि कोर्ट को इस तरीके से ठग नहीं सकते हैं। मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के अधिकारियों को तो जेल भेज दिया जाना चाहिए।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ‘आप लोग सोचते हैं कि सुप्रीम कोर्ट को इस तरह ठग सकते हैं? आप सुप्रीम कोर्ट को इस तरह ठग नहीं सकते हैं। MMRCLके अधिकारियों को तो जेल भेज देना चाहिए…CEO से कहिये की कोर्ट में मौजूद रहें’।
क्यों नाराज हुए CJI चंद्रचूड़?
चीफ जस्टिस ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ों की कटाई पर स्टे लगाया था तो सुपरिंटेंडेंट ने कैसे इसकी अनुमति दे दी है? हमने तो सिर्फ 84 पेड़ों को हटाने की अनुमति दे दी थी, लेकिन आप इसके बाद 185 पेड़ों को हटाने के लिए प्राधिकरण के पास चले गए और उन्होंने इसकी इजाजत भी दे दी… बिना हमारी मंजूरी के। सुपरिंटेंडेंट और अथॉरिटी दोनों ने न्यायालय की अवमानना की।
तुषार मेहता ने फौरन मांगी माफी
सीजेआई की नाराजगी पर सरकार की तरफ से पेश सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अथॉरिटी ने हमसे ताजा सर्वे करने को कहा था, क्योंकि आखिरी सर्वे 84 पेड़ों को लेकर था। चूंकि कोर्ट में छुट्टी थी, जब तक हम कोर्ट आते तब तक ये अदालत चले गए। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि 84 से ज्यादा पेड़ों को हटाने के लिए आपके क्लाइंट अथॉरिटी क्यों चले गए? जबकि हमने इसकी इजाजत दी थी।
सीजेआई चंद्रचूड़ की नाराजगी पर तुषार मेहता ने फौरन बिना किसी शर्त के माफी मांगी और कहा कि वे नए सिरे से हलफनामा दायर करेंगे।
CJI ने जुर्माना भी लगाया
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम और पेड़ों को हटाने की इजाजत दे देंगे, लेकिन कोर्ट के आदेश की अवहेलना हुई और यह अवमानना है। इसलिए 10 लाख रुपये की पेनाल्टी लगाते हैं। उधर, बेंच के अन्य जज जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि हम कंजरवेटर आफ फॉरेस्ट्स को भी इस मामले को देखने का निर्देश देते हैं।
क्या है विवाद की जड़?
मुंबई के गोरेगांव में स्थिति आरे फॉरेस्ट को लेकर विवाद करीब 4 साल से चल रहा है। 1287 हेक्टेयर में फैले आरे कॉलोनी का कुछ हिस्सा संजय गांधी नेशनल पार्क में भी आता है। साल 2019 में तत्कालीन बीजेपी और शिवसेना की सरकार ने ऐलान किया कि आरे कॉलोनी में कार शेड का निर्माण किया जाएगा। सरकार के इस फैसले के खिलाफ कई एनजीओ और नागरिक संगठन हाईकोर्ट चले गए, हालांकि हाईकोर्ट से उन्हें झटका लगा।
इसी बीच बीएमसी ने मेट्रो कॉरपोरेशन को 2700 पेड़ों को काटने की इजाजत दे दी। मामला इतना बढ़ा कि तमाम लोग सड़कों पर उतर आए और इसका विरोध किया। सरकार को धारा 144 लगानी पड़ी। दो दर्जन से ज्यादा लोग गिरफ्तार भी हुए। बाद में जब उद्धव ठाकरे की सरकार बनी तो कार शेड को आरे से कंजूरमार्ग स्थानांतरित करने का आदेश दे दिया।
सत्ता बदलते ही लौटा आरे का ‘जिन्न’
हालांकि उद्धव की सरकार जाते ही एक बार फिर आरे का जिन्न बाहर आ गया। एकनाथ शिंदे की सरकार ने फिर से कार शेड को आरे कॉलोनी में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। यह फैसला शिंदे के शुरुआती फैसलों में से एक था।
CM बनते ही बदला शिंदे का स्टैंड
हालाांकि यहां गौर करने वाली बात यह है कि जिस वक्त उद्धव ठाकरे की सरकार ने मेट्रो कार शेड को आरे से कंजूरमार्ग स्थानांतरित करने का फैसला लिया था, उस वक्त शिंदे ही शहरी विकास मंत्री थे और खुद इसके पक्ष में थे।
पंडित नेहरू ने रखी थी नींव
आरे कॉलोनी को मिल्क कॉलोनी के नाम से भी जाना जाता है। 50 के दशक में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस कॉलोनी की नींव रखी थी। पूरा इलाका करीब 3200 एकड़ में फैला है। बॉलीवुड की कई मशहूर फिल्में भी आरे में शूट हुई हैं। ग्रीनरी की वजह से 90 के दशक से पहले आरे, फिल्म डायरेक्टर्स का पसंदीदा स्थान हुआ करता था।