दिवंगत वकील राम जेठमलानी की जन्म शताब्दी मेमोरियल कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने उनसे जुड़े किस्से सुनाए। शुक्रवार को आयोजित राम जेठमलानी मेमोरियल लेक्चर सीरीज के सेंचुरी एडिशन में सीजेआई चंद्रचूड़ ने बताया कि कैसे 17 साल के युवा जेठमलानी के लिए अंग्रेजों ने अपने नियम में संशोधन कर दिया था।

सबसे पहले अपना ही केस लड़े थे जेठमलानी

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने राम जेठमलानी को याद करते हुए कहा, “वह एक महान व्यक्ति थे जिन्होंने कानून के क्षेत्र में गहरी छाप छोड़ी है। कल (14 सितंबर, 1923) उस कानूनी विद्वान की 100वीं जयंती थी। ऐसा हर दिन नहीं होता कि हमें महानतम व्यक्तित्वों की विरासत का जश्न मनाने का अवसर मिले। उन्हें कई रूपों में देखा गया। वह बेशक भारत के टॉप क्रिमिनल लॉयर थे। वह दो बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा सांसद रहें।”

राम जेठमलानी ने अपना पहला केस 17 साल की उम्र में सिंध उच्च न्यायालय में लड़ा था। खुद को बतौर वकील एनरोल कराने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष थी। इस वजह से राम जेठमलानी अपना कानूनी करियर शुरू नहीं कर पा रहे थे। जेठमलानी ने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष अपना मामला खुद ही पेश किया।

सीजेआई ने कहा, “जब वह कानून के छात्र थे, तब उन्होंने सिंध उच्च न्यायालय में न्यूनतम आयु मानदंड को चुनौती दी थी। उन्होंने सर गॉडफ्रे डेविस के सामने तर्क दिया कि उनके माता-पिता उन्हें कानून का अध्ययन करने की अनुमति नहीं देते अगर उन्हें पता होता कि वह लॉ ग्रेजुएट होने के बाद चार साल तक परिवार की आर्थिक मदद नहीं कर पाएंगे। राम ने अपने तर्क को भावनात्मक स्वर में ढाला और उनका यह तरीका काम कर गया। सर गॉडफ्रे, जो जेठमलानी के कौशल से प्रभावित थे, उन्होंने बार काउंसिल से नियमों में संशोधन करने के लिए कहा। ये वही वक्त था जब राम और उनके आस-पास के लोगों को एहसास हुआ कि वह कानूनी बिरादरी में एक जबरदस्त ताकत बनने जा रहे हैं।”

सिर्फ 10 प्रतिशत केस के लिए फीस लिया

अपने दशकों के कानूनी करियर में राम जेठमलानी कई हाई प्रोफाइल मामलों में बतौर डिफेंस लॉयर पेश हुए। सीजेआई ने कहा, “जब उनसे पूछा गया कि क्या वह हाई प्रोफाइल मामलों को इसलिए चुनते थे क्योंकि उससे उन्हें मोटी रकम मिलती थी। राम का जवाब था- बेशक।” उनका यह भी मानना था कि किसी वकील को किसी व्यक्ति का बचाव इस आधार पर करने से इनकार नहीं करना चाहिए क्योंकि लोग उसे दोषी मानते हैं। वह खुद के लिए कहते थे कि मैं तो स्वयं पेशेवर कदाचार का दोषी हूं।

सीजेआई ने बताया, “राम यह भी समझते थे कि अगर वकील कोर्ट में पेश होने के लिए बहुत ज्यादा फीस लेते हैं तो जस्टिस तक आम लोगों की पहुंच कम हो जाएगी। वह समाज में फैली असमानताओं को पहचानते थे और आम नागरिक के साथ होने वाले अन्याय को लेकर गहराई से चिंतित थे। कुछ अनुमानों के अनुसार, उन्होंने अपने केवल 10 प्रतिशत मुवक्किलों से फीस लिया और 90 प्रतिशत मामले नि:शुल्क निपटाए।”